-समृतिशेष : बात कुमाऊँनी रसोई
व सोशल डिस्टेन्सिंग की –
उधम सिंह नगर: कोरोना काल ने 40 -50 वर्ष पूर्व के सामाजिक परिवेश की याद ताजा करा दी है। सोशल डिस्टेन्सिंग की थ्योरी ने पुरानी छुआछूत की मान्यताओं के वैज्ञानिक पक्ष की अवधारणाओं को प्रबल किया है, जिसका एक पक्ष जातिगत छुआछूत की गलत अवधारणाओं से ग्रसित रहा है। इन सब से परे मैं कुमाऊँनी रसोई में घर के ही सदस्यों के बीच की जाने वाली सोशल डिस्टेन्सिंग की अपनी यादों को वर्तमान पीढ़ी के समक्ष लाना चाहता हूँ।
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बाल्यकाल से ही रसोई से हम सब का गहरा नाता रहा है। पहाड़ी में रसोई को चुल कहते हैं। जो कोई भी रसोई में घुसा रहता था उसे “चुल पन खोसी” कहकर मजाक में चिढ़ाया करते थे। हमारी आमा (दादी) व बूबू (दादाजी) का रसोई पर पूर्ण अधिकार रहता था और वो ही उसका नियमानुसार संचालन किया करते थे। रसियार (खाना पकाने वाला) व भोजन ग्रहण करने वालों के नियम अलग होते थे। जिनको मैं अलग से नीचे प्रस्तुत करूंगा।
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