Ashish Kumar Anshu
केंद्र सरकार 129 साल पुराने जेल कानून को बदल रही है। गृह मंत्रालय के अनुसार प्रिजन एक्ट 1894 को बदल कर मॉडल प्रीजन्स एक्ट 2023 को लाने की तैयारी पूरी की जा चुकी है। इस नए कानून को अंतिम रूप दे दिया गया है। इस नए एक्ट को जेल सुधार पर केन्द्रित किया गया है, जिसमें कैदियों के पुनर्वास से लेकर उन्हें मिलने वाले पैरोल और फर्लो जैसे विषय शामिल हैं। जेलों के आधुनिकीकरण से लेकर तकनीकी के माध्यम से कैदियों को अधिक सुरक्षित वातावरण दिए जाने की भी चर्चा है।
हाल के दिनों में देखा गया है कि जेलों के अंदर हिंसक घटनाओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। जेल के अंदर दिल्ली के एक गैंगस्टर की हत्या, उसके प्रतिद्वन्दी गैंग ने कर दी। जब वे हत्याकांड को अंजाम दे रहे थे, सीसीटीवी की फुटेज में दिखाई पड़ता है कि तिहाड़ के सुरक्षाकर्मी वहीं खड़े होकर यह सब देखते रहे। इतना ही नहीं, कई शातिर अपराधी जेल के अंदर से ही अपना सोशल मीडिया अकाउंट चला रहे हैं। बिहार के एक पूर्व मुख्यमंत्री जब घोटाले के मामले में जेल के अंदर थे, उन दिनों भी उनका ऑफिशियल सोशल मीडिया अकाउंट अपडेट हो रहा था।
जेल के अंदर बैठे अपराधी को पुलिस का भय नहीं है। एक ठग सुकेश ने जेल में रहते हुए बड़ी बड़ी अभिनेत्रियों को जेल के अंदर मिलने के लिए बुला लिया। वह जेल के अंदर बैठकर देश की प्रतिष्ठित मॉडलों से ना सिर्फ बात कर रहा था बल्कि उन्हें उपहार भी भिजवा रहा था। एक अन्य गैंगस्टर ने एक टीवी चैनल को जेल में बैठकर साक्षात्कार देते हुए अभिनेता सलमान खान को जान से मारने की धमकी तक दे डाली। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि जेल में बैठे यह खतरनाक अपराधी किस तरह देश की कानून व्यवस्था का मजाक उड़ा रहे हैं।
जेलों में कैदियों की बढ़ती संख्या और जेलों के अंदर बढ़ते गैंगवार को देखते हुए मॉडल प्रिजन एक्ट 2023 बनाने की घोषणा हुई है। नए प्रिजन एक्ट में महिलाओं और ट्रांसजेंडर कैदियों को लेकर भी विशेष प्रावधान होगा।
फरलो और पैरोल के बीच का अंतर
जेल से मिलने वाली छुट्टी फरलो है। आम तौर पर फरलो लेकर कैदी पारिवारिक समारोह, किसी की अंतिम क्रिया कर्म अथवा अपने सगे संबंधी की बीमारी पर, उनसे मिलने के लिए जाता है। बंदियों को लेकर इस तरह की खबर समाचार पत्रों में आती रहती है। वर्तमान नियम के अनुसार एक वर्ष में कोई कैदी अधिकतम तीन बार फरलो ले सकता है। फरलो की अधिकतम अवधि 14 दिनों की है। आम तौर पर कैदी को यह अपने परिवार और समाज से मेल जोल बढ़ाने के लिए मिलता है। वहीं परोल लेने के लिए कारण बताना जरूरी होता है जबकि पैरोल की अवधि एक महीने तक बढ़ाई जा सकती है।
आपसी रंजिश
जेलों के अंदर होने वाली हिंसा को लेकर नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी भी संशंकित है। पिछले साल उसने गृह मंत्रालय को यह सुझाव भेजा था कि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान की जेलों में बंद खूंखार अपराधियों की निशानदेही करके उन्हें दक्षिण भारत की अलग अलग जेलों में भेज दिया जाए। एनआईए ने ऐसे 25 खूंखार गैंग का जिक्र किया था, जिन्हें दूसरे राज्यों की जेलों में भेजा जाना बहुत जरूरी है। यदि वे उत्तर भारत की जेलों में रहे तो अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करके वे लगातार एक दूसरे गैंग के लोगों का खून बहाते रहेंगे। उन्हें अपने प्रभाव क्षेत्र से अलग थलग किए बिना यह खूनी संघर्ष नहीं रूकने वाला।
ट्रेनिंग और स्किल डेवलपमेंट पर जोर
पुणे की एक ऐतिहासिक घटना के अनुसार, वहां की औंध रियासत के राजा ने एक आयरिश मनोवैज्ञानिक को जेल में बंद दुर्दांत अपराधियों को खुली जेल में रखकर उन पर प्रयोग करने की सुविधा दी थी। कहा जाता है कि उनका यह प्रयोग इतना सफल रहा कि उससे प्रेरित होकर फिल्म निर्माता शांताराम राजाराम वणकुद्रे ने 1957 में ‘दो आंखें बारह हाथ’ फिल्म बनाई थी।
बीसवीं शताब्दी में पूरी दुनिया में यह विचार विकसित होने लगा कि जेल को सिर्फ सजा देने वाली जगह के बदले सुधारगृह में परिवर्तित किया जा सकता है। यदि जेल के अंदर कैदी कोई हुनर सीखता है तो यह काम उसके जीवन यापन में उसे जेल से बाहर निकलने पर मदद दे सकता है। यह अपराधी को जेल से छूटने के बाद पुनः अपराधी बनने से रोकने में कारगर भूमिका निभा सकता है।
विद्वानों के इस मत को विश्व भर की सरकारों ने समझा और जेलों को सुधारगृह के रूप में परिवर्तित करने की कोशिश भी की। इसी कोशिश की श्रृंखला में भारत में मॉडल प्रीजन्स एक्ट 2023 के अन्तर्गत कैदियों की वोकेशनल ट्रेनिंग और स्किल डेवलपमेंट पर जोर दिया जा रहा है। इसके साथ जेलों में पारदर्शिता लाने को लेकर विचार किया गया है। जिसमें कैदियों की शिकायत पर विचार जैसे प्रावधान भी हैं।
हाई सिक्योरिटी जेल बनेंगी
नए मॉडल कानून में जेल के अंदर हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। इसे हाई सिक्योरिटी जेल के कॉन्सेप्ट पर तैयार किया जा रहा है। अमेरिका और यूरोप के कई देशों में इस तरह की जेल मौजूद हैं। उन्हीं की तर्ज पर ओपन और सेमी ओपन जेल खोले जाएंगे। कैदियों की मॉनीटरिंग भी होगी। पिछले दिनों कोर्ट के अंदर पुलिस सुरक्षा में कई विचाराधीन कैदियों पर जानलेवा हमले हुए। कइयों की जान भी गई। कैदियों की सुरक्षा में लगी इस प्रकार की सेंध पर नए एक्ट में ना सिर्फ विचार किया गयाबल्कि कैदियों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेशी की व्यवस्था का प्रावधान रख कर, समस्या का समाधान भी किया गया है। साथ ही यदि कैदी जेल के अंदर मोबाइल फोन जैसी प्रतिबंधित चीजें इस्तेमाल करते पाए गए तो उन्हें सजा देने का भी प्रावधानकिया गया है। पंजाब के अंदर कई खतरनाक अपराधी अपना सोशल मीडिया अकाउंट धड़ल्ले से चला रहे हैं।
प्रारूप हुआ तैयार
गृह मंत्रालय के अनुसार वर्तमान में कारागार अधिनियम के अंदर कई खामियां दिखाई पड़ती हैं। इसलिए आधुनिक समय की आवश्यकता को समझते हुए अधिनियम को संशोधित किया गया। इसके अलावा मंत्रालय ने कारागार अधिनियम 1894 में भी संशोधन करने का निर्णय ले लिया है। कारागार अधिनियम 1894 से संबंधित सिफारिशों की जिम्मेदारी पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो को सौंपी गयी है। मिली हुई जिम्मेवारी का पालन करते हुए ब्यूरो ने राज्य कारागार प्रशासन और कुछ एक्सपर्ट से विचार विमर्श के बाद इसका प्रारूप तैयार कर लिया है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रिजन्स एक्ट 1894 के साथ दो अन्य कानून की भी समीक्षा की है। प्रिजनर्स एक्ट 1900 और ट्रांसफर ऑफ़ प्रिजनर्स एक्ट 1950 की ऐसी धाराएं जो आज के समय में भी प्रासंगिक हैं, उन्हें नए प्रीजन्स एक्ट में शामिल किया गया है।
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।