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लोकसभा चुनाव : क्या RLD और SP की राहें होंगी जुदा?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
16/06/23
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय
लोकसभा चुनाव : क्या RLD और SP की राहें होंगी जुदा?
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की तैयारियों को पुख्ता किया जा रहा है। एक तरफ भारतीय जनता पार्टी महाजनसंपर्क अभियान के जरिए ग्रासरूट के कार्यकर्ताओं को लोकसभा चुनाव के लिए तैयार होने का संदेश दे रही है। मोदी सरकार के 9 साल पूरे होने पर किए गए कार्यों से लोगों को अवगत कराने और किसी प्रकार का असंतोष का भाव आने की स्थिति में उन्हें पार्टी के पक्ष में करने की कोशिश की जा रही है। दूसरी तरफ, विपक्षी दल ऐसे समीकरण की तलाश में है, जिससे केंद्र में 9 सालों से जमी भारतीय जनता पार्टी की सरकार को सत्ता से बाहर किया जा सके।

इसके लिए समीकरणों को नए सिरे से तैयार करने की भी कोशिश की जा रही है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने भले ही अब तक चुनावी तैयारियों को शुरू नहीं की हो, लेकिन समीकरणों को साधने का प्रयास बड़े स्तर पर चल रहा है। ताजा सूचना समाजवादी पार्टी अध्यक्ष की चिंजा बढ़ाने वाली हो सकती है। यूपी चुनाव 2022 में साथ आए राष्ट्रीय लोक दल के सपा गठबंधन से बाहर जाने के कयास लगाए जा रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो फिर मुश्किलें अखिलेश की बढ़ेंगी। दावा यह किया जा रहा है कि जयंत चौधरी लोकसभा चुनाव 2024 में राहुल गांधी के साथ जा सकते हैं।

क्यों उठा है मामला?

राष्ट्रीय लोक दल के सीनियर नेता और प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले समाजवादी पार्टी के साथ रालोद का गठबंधन टूट सकता है। पार्टी अपनी अलग रणनीति पर काम करती दिख रही है। पिछले दिनों कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में जयंत चौधरी शामिल हुए थे। इसके बाद भी रालोद और कांग्रेस की नजदीकी का मु्द्दा गरमाया था। रामाशीष राय ने पिछले दिनों कहा था कि वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव विशेष परिस्थितियों में होने वाला है। देश में अभी जिस प्रकार की परिस्थितियां हैं, उसमें कांग्रेस को किनारे रखकर परिवर्तन की बात नहीं हो सकती है। दरअसल, कांग्रेस को लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का रुख साफ नहीं है। वे एक समय में ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, के. चंद्रशेखर राव और शरद पवार के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। इनके लिए कांग्रेस प्रायोरिटी लिस्ट में नहीं है। ऐसे में रालोद अपनी राह अलग कर सकती है।

पश्चिमी यूपी को साधने की कोशिश

कांग्रेस ने भले ही यूपी की 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य में चुनावी तैयारियों को जमीनी स्तर पर शुरू न की हो, लेकिन पार्टी का शीर्ष नेतृत्व प्रदेश में जीत के समीकरण को तलाशने में जुटा हुआ है। यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने बसपा को सीटों की संख्या के मामले में पीछे छोड़ दिया है। पार्टी की ओर से प्रदेश के कई पॉकेट्स में पिछले दिनों इंटरनल सर्वे कराए गए। इसमें दावा किया गया कि प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का जनाधार कमजोर हुआ है। बसपा के मुकाबले में कांग्रेस की स्वीकार्यता एक बड़े वोट बैंक में बढ़ने की बात कही जा रही है। हालांकि, बसपा ने यूपी चुनाव 2022 में कांग्रेस के मुकाबले अधिक वोट शेयर हासिल किया था।

यूपी चुनाव 2022 में 255 सीटें जीतने वाली भाजपा को सबसे अधिक 41.29 फीसदी वोट मिले। 32.06 फीसदी वोट शेयर के साथ सपा दूसरे स्थान पर रही। सपा ने कुल 403 सीटों में 111 पर जीत हासिल की। वोट प्रतिशत के मामले में तीसरे नंबर पर सिर्फ एक सीट जीतने वाली बसपा रही। पार्टी ने 12.88 फीसदी वोट हासिल किए। कांग्रेस के हिस्से महज 2.33 फीसदी वोट शेयर आया। हालांकि, पार्टी दो सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही। पार्टी अब पश्चिमी यूपी को साधने की कोशिश करती दिख रही है।

हर दल के लिए यूपी है अहम

80 लोकसभा सीटों वाला राज्य उत्तर प्रदेश हर पार्टी के लिए अहम है। लोकसभा चुनाव 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने 71 एवं एनडीए ने 73 और 2019 के आम चुनाव में भाजपा ने 62 एवं एनडीए ने 64 सीटों पर जीत दर्ज कर केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनवाने में बड़ी भूमिका निभाई। लोकसभा चुनाव से पहले तमाम राजनीतिक दलों की कसरत लखनऊ को साधकर दिल्ली पर कब्जे की है। केंद्र और प्रदेश में सरकार होने की स्थिति में भाजपा की तैयारियां निश्चित तौर पर पुख्ता हैं। तैयारियां लगातार चल रही हैं। तमाम नेता अपने स्तर पर कार्य करते दिख रहे हैं। वहीं, समाजवादी पार्टी की भी तैयारी चल रही है। अखिलेश यादव स्वयं जिला स्तर पर हो रहे कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर का हिस्सा बन रहे हैं। भाजपा के खिलाफ सपा को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में पेश कर रहे हैं। वहीं, अखिलेश फॉर्मूले को साधकर कांग्रेस अब प्रदेश में भाजपा के विकल्प के रूप में खुद को खड़ा करने की कोशिश कर रही है।

क्या बदल रहा है समीकरण?

यूपी चुनाव 2022 और इससे पहले लोकसभा चुनाव 2019 में पश्चिमी यूपी में भाजपा को झटका लगा था। सपा-बसपा गठबंधन के कारण पश्चिमी यूपी में वर्ष 2019 में भाजपा को कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ा था। यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 16 सीटों पर पार्टी को हार मिली थी। वहीं, यूपी चुनाव 2022 में सपा और रालोद गठबंधन ने भाजपा की चुनौती बढ़ाई है। पिछले दिनों कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा की तो यह पश्चिमी यूपी से होकर गुजरी। इस इलाके में पार्टी अपने जनाधार को बढ़ाने की कोशिश कर रही है। ऐसे में रालोद अपने वोट शेयर में कोई झटका नहीं लगने देने की रणनीति पर काम कर रही है। यूपी नगर निकाय चुनाव 2023 में जिस प्रकार से सपा और रालोद उम्मीदवार आमने-सामने आए। इस स्थिति ने जमीन पर दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच खाई बढ़ाई है। इस प्रकार की स्थिति में अगर महान दल, सुभासपा की तरह रालोद भी सपा से अलग हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

अखिलेश को लग सकता है झटका

राष्ट्रीय लोक दल के सपा गठबंधन से अलग होने की स्थिति में अखिलेश यादव को बड़ा झटका लग सकता है। अखिलेश यादव पश्चिमी यूपी में माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण के साथ जाट वोट बैंक को जोड़कर लोकसभा चुनाव का विनिंग कॉम्बिनेशन तैयार करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। जयंत का साथ होने के कारण अभी तक सपा पश्चिमी यूपी पर अधिक फोकस करती नहीं दिखी है। लखीमपुर खीरी और सीतापुर के नैमिषारण्य के कार्यकर्ता शिविरों के जरिए पार्टी भाजपा के मजबूत गढ़ों को भेदने की कोशिश कर रही है। लेकिन, रालोद का साथ छोड़ने की स्थिति में अखिलेश को उनकी तर्ज के मजबूत साथी की जरूरत होगी। सबसे बड़ी बात है सपा ने अपने कोटे से जयंत को राज्यसभा तक भेजा। महान दल के गठबंधन छोड़ने के बाद जिस प्रकार से पार्टी अध्यक्ष केशव देव मौर्य से गाड़ी वापस लिए जाने की चर्चा गरमाई थी। क्या रालोद के साथ छोड़ने की स्थिति में अखिलेश, जयंत चौधरी से राज्यसभा की सदस्यता को वापस करने की मांग करेंगे? इन तमाम सवालों के बीच यूपी का राजनीतिक पारा अब हाई होने लगा है।

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