नई दिल्ली। राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच एक सवाल अक्सर ही उठता है कि क्या सपा और कांग्रेस की दोस्ती लंबी चलेगी? या फिर पूर्व की तरह चुनाव होते ही गठबंधन बिखर जाएगा? इन सब चर्चाओं के बीच सपा और कांग्रेस लंबी दोस्ती के लिए रणनीति बना रहे हैं।
एक जून को दिल्ली में इंडिया के प्रमुख घटकों की बैठक होगी, जिसमें भविष्य की कार्ययोजना भी तैयार होगी। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन हुआ था। लेकिन, परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए। चुनाव होते ही यह गठबंधन तार-तार हो गया।
दोनों पार्टियों के नेताओं ने एक-दूसरे पर खूब तीर चलाए। इसी तरह वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव सपा और बसपा ने मिलकर लड़ा। इस चुनाव में सपा को कुछ अधिक हासिल नहीं हुआ।
पिछले लोकसभा चुनाव के तत्काल बाद दोनों पार्टियों के बीच शीत युद्ध प्रारंभ हो गया, जोकि इस समय चरम पर है। बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव दोनों एक-दूसरे पर शब्द-बाण चला रहे हैं। विगत इतिहास को देखते हुए यूपी में सपा और कांग्रेस के रिश्तों के भविष्य को लेकर सवाल उठना लाजिमी है।
नतीजे तय करेंगे मियाद
इन दिनों पूर्वांचल में मतदाताओं के बीच सर्वे कर रहे लखनऊ विवि के राजनीति शास्त्र के प्रो. संजय गुप्ता मानते हैं कि काफी हद तक गठबंधन चुनाव परिणामों पर निर्भर करता है। उनका कहना है कि इस बार के चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन बेहतर स्थिति में रहने की संभावना है।
इसलिए यह गठबंधन लंबा चल सकता है। जेएनयू के पूर्व शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अरशद आलम कहते हैं कि कांग्रेस और सपा का सामाजिक आधार (वोट बैंक) आपस में टकराता नहीं है। इसलिए इस गठबंधन की उम्र लंबी हो सकती है।
वहीं, भाजपा के प्रमुख नेता सार्वजनिक मंचों से बार-बार कह रहे हैं कि विपक्षी गठबंधन चुनाव बाद तार-तार होकर बिखर जाएगा। उधर, इंडिया गठबंधन के सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस चाहती है कि जिन दलों के साथ चुनाव मिलकर लड़ा है, उनके साथ अच्छे रिश्ते भविष्य में भी कायम रहें।
इसलिए एक जून को दिल्ली में होने वाली बैठक में सरकार बनाने की संभावनाओं के साथ-साथ आपसी रिश्तों को मजबूत करने पर भी बात होगी। ताकि, भाजपा के खिलाफ लंबी लड़ाई के लिए खुद को तैयार कर सकें।