गौरव अवस्थी
अयोध्या: अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की भव्य तैयारियों के बीच देश के विभिन्न भागों में स्थित राम मंदिरों और उनके इतिहास से गुजरना व्यक्ती जरूरत है। आइए, चलें तमिलनाडु।
तमिलनाडु के चेंगलपट्टु जनपद के मदुरंथकम शहर में स्थित एरी-कथा रामर मंदिर दक्षिण के सर्वाधिक पुराने राम मंदिरों में से है।मंदिर पल्लव शासकों द्वारा करीब 16 सौ वर्ष पूर्व निर्मित माना जाता है। मंदिर में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियां विराजमान हैं। यह मंदिर एक विशालकाय झील (जलाशय) के किनारे स्थित है। यह झील तेरह वर्ग मील ( करीब 34 वर्ग किमी.) में फैली हुई है। इसकी गहराई करीब 21 फिट है। इतिहास के मुताबिक चोल राजाओं ने भी इस मंदिर को दिव्यता-भव्यता प्रदान की। चोल राजाओं के शिलालेख आज भी मंदिर में देखने को मिलते हैं।
सदियों पुराने राम मंदिर के नाम में ‘एरी-कथा’ शब्द जुड़ने की एक रोचक कथा पूरे तमिलनाडु में प्रचलित है।1795 और 1799 के बीच चेंगलपट्टु जिले का कलेक्टर कर्नल लियोनेल ब्लेज़ नामक एक ब्रिटिश अधिकारी था। अपने कार्यकाल में ब्लेज़ ने विशाल जलाशय में दो बार दरारें देखीं। उसे अंदेशा हुआ कि मूसलाधार बारिश से जलाशय का तटबंध टूट सकता है। जनहानि बचाने के लिए वर्ष 1798 में कलेक्टर ने मदुरंथकम में डेरा डाला। वह ऐसी खोज में थे कि बांध में दरार आते ही तत्काल मरम्मत की जा सके।
कहा जाता है कि निरीक्षण के दौरान उन्हें राम मंदिर परिसर में ग्रेनाइट और अन्य पत्थर बड़ी संख्या में दिखे। यह पत्थर जनकवल्ली (जानकी) थयार मंदिर निर्माण के लिए एकत्र किए गए थे लेकिन धन की कमी से निर्माण प्रारंभ नहीं हो पाया थ। उसने सोचा कि इनका उपयोग तटबंध के जीर्णोद्धार में किया जा सकता है। यह सुनकर मंदिर के पुजारियों ने कहा कि पत्थर जनकवल्ली थयार मंदिर के लिए हैं। यह सुनकर कलेक्टर ने टिप्पणी की कि एक अलग मंदिर की क्या आवश्यकता? कहते हैं कि कलेक्टर ने मज़ाक में पुजारियों से यह भी कहा कि भगवान जलाशय की रक्षा क्यों नहीं कर पाते? पुजारियों ने कहा कि भगवान हमेशा दिल से की गई सच्ची प्रार्थना स्वीकार करते हैं। उस वर्ष मूसलाधार बारिश हुई। कुछ ही दिनों में जलाशय पूरी तरह भर गया। चिंतित कलेक्टर ने जलाशय के पास डेरा डाल दिया ताकि बांध टूटने पर तत्काल मरम्मत कराई जा सके।
जनश्रुति है कि जलाशय के निरीक्षण करते वक्त ही कलेक्टर कर्नल ब्लेज़ को चमत्कारी दृश्य दिखा। उसने दो योद्धाओं को धनुष और तरकश लिये बांध की रक्षा करते देखा। जनश्रुति है कि यह देखकर ब्रिटिश अधिकारी अपने घुटनों पर बैठ गया और प्रार्थना करने लगा। उसे विश्वास हो गया कि यह कोई और नहीं बल्कि भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण हीथे। यह भी आश्चर्यचकित करने वाली बात थी कि कलेक्टर के किसी भी अनुचर में यह दृश्य नहीं दिखा। थोड़ी ही देर बाद वह दृश्य उसकी दृष्टि से ओझल हो गया और अचानक बारिश भी रुक गई। इसके बाद कलेक्टर ने जनकवल्ली थायार के लिए मंदिर के निर्माण का कार्य स्वयं कराया। तभी से यह राम मंदिर एरिकथा रामर (राम जिन्होंने जलाशय (एरी) को बचाया ) मंदिर के नाम से जाना जाने लगा। कलेक्टर के नाम के साथ भगवान राम को परोपकारी बताने वाला शिलालेख आज भी मदुरंथकम मंदिर में मौजूद है।