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मजदूर वर्ग में चेतना जागृत करने वाले महावीर प्रसाद और माधव राव सप्रे हिंदी के पहले लेखक

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
01/05/23
in राष्ट्रीय, साहित्य
मजदूर वर्ग में चेतना जागृत करने वाले महावीर प्रसाद और माधव राव सप्रे हिंदी के पहले लेखक
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गौरव अवस्थी


भारत में मजदूर दिवस मनाए जाने का यह शताब्दी वर्ष है। मई दिवस की शुरुआत 1 मई 1886 को अमेरिका से हुई थी लेकिन 1923 में भारत में आज ही के दिन चेन्नई से मई दिवस मनाए जाने की परंपरा प्रारंभ हुई थी। इसकी औपचारिक शुरुआत भारतीय मजदूर किसान पार्टी के नेता कामरेड सिंगरावेलु चेट्टियार ने की थी। पहले-पहल इसे मद्रास दिवस के रूप में प्रमाणित किया गया। इस दिन मद्रास हाईकोर्ट के सामने आयोजित प्रदर्शन में यह संकल्प पारित किया गया कि इस दिवस को भारत में भी ‘कामगार दिवस’ के रुप में मनाया जाए। श्रमिकों को अवकाश प्रदान किया जाए।

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और कृती-वृती पंडित माधव राव सप्रे हिंदी के पहले लेखक थे, जिन्होंने अपने लेखों के माध्यम से मजदूर वर्ग की चेतना जागृत करने का प्रयास शुरू किया था। दोनों ही मजदूर संगठन की समस्या से चिंतित थे और मजदूरों के संगठन बनाने पर जोर दे रहे थे। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती में मजदूर वर्ग के लिए खुद भी लेख लिखे और वर्ष 1907 में माधव राव सप्रे का लेख ‘हड़ताल’ भी सरस्वती में प्रकाशित किया।

‘महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण’ में डॉ रामविलास शर्मा लिखते हैं-अपने साहित्यिक जीवन के आरंभिक काल में ही द्विवेदी जी ने राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं का अध्ययन किया। शुरू से ही मजदूरों के संगठित होने की समस्या से उन्हें गहरी दिलचस्पी थी। उन्होंने मांगों को लेकर मजदूरों द्वारा किए जा रहे संघर्ष के साथ-साथ पूंजी और श्रम के द्वंद को हल करने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों पर पर्याप्त लेखनी चलाई।

बीसवीं सदी के आरंभ में ही मजदूरों ने हड़ताल कर चुके थे। यह हड़ताल है सीधे अंग्रेजी राज के विरुद्ध मजदूरों का संघर्ष थी। द्विवेदी जी ने अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक संपत्ति शास्त्र में मजदूरों के संगठन पर जोर दिया। उन्होंने सरस्वती में माधव राव सप्रे के अतिरिक्त जनार्दन भट्ट का लेख वर्ष 1914 में ‘हमारे गरीब किसान और मजदूर’ भी प्रकाशित किया।

आचार्य द्विवेदी और पंडित माधव राव सप्रे चाहते थे कि पश्चिमी देशों की तरह ही भारत में भी मजदूरों के ट्रेड यूनियन बनें ताकि श्रमिक वर्ग को उनके वाजिब अधिकार प्राप्त हों। दोनों को ही यह विश्वास था कि मजदूरों के हक की रक्षा के लिए किसी न किसी दिन भारत में भी ट्रेड यूनियन जरूरी स्थापित होंगी। उस समय तब बिरादरी के पुराने आधार पर चौधरी लोग ही जहां-तहां मजदूरों के मुखिया बने हुए थे।

अपने लेख हड़ताल में माधव राव सप्रे ने इस बात को महत्वपूर्ण तरीके से रेखांकित किया कि मजदूरों को अपने स्वत्व की रक्षा करने का पूरा अधिकार है। मजदूरों के संघर्ष को नैतिक दृष्टि से समर्थन देते हुए उन्होंने लिखा-‘नीति दृष्टि से हड़ताल के लिए मजदूर तब तक दोषी नहीं कहे जा सकते, जब तक और लोगों की स्वाधीनता भंग न करें’। दोनों ही मानते थे कि स्वाधीनता आंदोलन की सफलता के लिए किसानों और मजदूरों का संगठन और संघर्ष आवश्यक है लेकिन स्वाधीनता आंदोलन के अगुआ इस पक्ष में नहीं थे।

आचार्य द्विवेदी और माधव राव सप्रे दोनों ने ही पूंजीपतियों और मजदूरों के बीच के झगड़े समाप्त करने के लिए सुझाव भी अपने-अपने लेखों के माध्यम से सुझाए थे। दोनों ही मानते थे कि जब तक पूंजीपति रहेंगे, मुनाफा रहेगा, तब तक वर्ग विरोध भी रहेगा। इसलिए पूंजीवादी उत्पादन के लिए मजदूरों द्वारा सहकारिता के आधार पर उत्पादन का समर्थन करना चाहिए। सहोद्योग (सहकारिता) रीति से व्यापार व्यवसाय करने में किसी तरह का हित विरोध नहीं होगा। इससे संपत्ति की उत्पत्ति और उसके विभाग में भी बहुत लाभ होगा।
भारत में भले ही मई दिवस का प्रारंभ दक्षिण भारत के प्रमुख नगर चेन्नई से हुआ हो लेकिन हिंदी भाषा-भाषी समाज में मजदूरों की एकता और संघर्ष के सवाल को बीसवीं सदी के आरंभ में महावीर प्रसाद द्विवेदी और माधव राव सप्रे ने उठाया था। इस लिहाज से भारत के कामगारों और कामगार संगठनों को दोनों ही लेखकों और संपादकों एक प्रति कृतज्ञ रहना ही नहीं बल्कि दिखना भी चाहिए।

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