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यात्रा संस्मरण-3 : मैहर मंदिर : आरती का समय अनिश्चित क्यों?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
28/11/21
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय, साहित्य
यात्रा संस्मरण-3 : मैहर मंदिर : आरती का समय अनिश्चित क्यों?
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गौरव अवस्थी “आशीष”


मैहर यात्रा की शुरुआत शारदा माई के दर्शन से हुई। तड़के 3 बजे हम दोनों ने बिस्तर छोड़ दिया। दर्शन की लालसा लिए 4 बजे मंदिर की ओर प्रस्थान हुआ। 20 मिनट के इंतजार के बाद मंदिर कमेटी की वैन से मंदिर की आखरी डेढ़ सौ सीढ़ियों के पहले पहुंचे। सुबह 5 बजे माई के दरबार में हाजिर। मंदिर के पट खुले 6 बजे। माई का श्रंगार, आरती और दर्शन के बाद रोपवे का आनंद लेते हुए वापस। शारदा माता मंदिर पहली बार करीब तीन दशक पहले आया था। दूसरी बार मां (श्रीमती मोहिनी अवस्थी) के साथ दो दशक पहले। तब यहां भक्तों के लिए ऐसी सुविधाएं नहीं थीं।

अब मंदिर तक पहुंच पहले से बहुत ज्यादा आसान हो चुकी है लेकिन मंदिर में सुबह की आरती हो या शाम की, समय सुनिश्चित न होना अनुचित है। महाकालेश्वर हो या नर्मदा माई का मंदिर या कोई अन्य तीर्थ। सभी जगह आरती के समय सुनिश्चित हैं। समय से कोई समझौता नहीं लेकिन यहां समय अनिश्चित है। मंदिर में कभी 5:00 बजे आरती कभी 6 बजे कभी 5: 30 बजे। शाम को कभी 7 बजे पट बंद होते हैं। भक्तों की भीड़ है तो 8 भी बज सकते हैं, पट बंद होने में। यह अनिश्चितता प्रबंधन की बहुत बड़ी कमी महसूस कराती है। मध्य प्रदेश सरकार को इस प्रबंध पर गौर से विचार करना ही चाहिए।

इच्छापूर्ति मंदिर
चाय-नाश्ते के बाद मैहर में अगला पड़ाव केजेएस मंदिर रहा। मैहर से करीब 8 किलोमीटर दूर केजेएस सीमेंट फैक्ट्री के परिसर में बहुत ही खूबसूरत दक्षिण की वास्तुशिल्प वाले मंदिर में मां दुर्गा, राम दरबार, राधा कृष्ण, स्फटिक के शिवलिंग और हनुमान जी की मनमोहक मूर्तियों के दर्शन का सौभाग्य भी आज दिन विशेष (विवाह की वर्षगांठ) पर हम लोगों के जीवन में आया। मैहर का दूसरा आकर्षण केजेएस सीमेंट फैक्ट्री की ओर से बनाया गया इच्छापूर्ति मंदिर बन रहा है। इसे नहीं देखा तो समझिए मैहर में कुछ विशेष छूट गया। मंदिर परिसर में पार्क और प्लांटेशन का रखरखाव विशेष सुकून दायक है। 20 मालियों की फौज मंदिर परिसर को हरा-भरा और सुंदर बनाने में तैनात है। इन्हीं में एक हमें मिले भैया लाल कुशवाहा। भाई भैयालाल ने हम दोनों की साथ-साथ फोटो खींची। हम तो संकोच में थे। माई की कृपा से ऐसे भाई संकोच के बाड़े तोड़कर मिल ही जाते हैं।

इचोल आर्ट सेंटर
यहां से करीब 15 किलोमीटर दूर हम वंदना गुप्ता जी के बताए हुए इचोल आर्ट सेंटर पहुंचे। टिकट तो ₹80 का था लेकिन कला के एक से एक नायाब नमूने देखकर पैसे वसूल से लगे। अपने पापा की याद में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से सम्मानित अंबिका बेरी ने सतना रोड पर करीब 3 एकड़ भूमि पर ख्यात आर्किटेक्ट सूरज पी, सभरवाल और पत्थरों को तराश कर मूर्त रूप देने वाले कलाकार नारायण सिन्हा की मदद से इचोल आर्ट सेंटर बनाया है। वेस्ट मटेरियल को कलात्मक रूप देने का नया प्रयोग यहां आप हर कदम देख सकते हैं। रेलवे के पुराने जमाने के कबाड़ हो गए स्लीपर पर बने गमले के स्टैंड, वेस्ट पेपर से मानव आकृति, पैरों की ठोकरें खाने वाले साधारण और कीमती पत्थरों को सुदर्शनीय बनाने वाली कला के दर्शन भी आपको मोहित करते हैं।

यहां टर्की, लातविया, आयरलैंड, स्विटजरलैंड सहित देश-विदेश के नामचीन आर्टिस्ट्स की कला के विभिन्न रूप इचोल आर्ट सेंटर में संग्रहीत है। बेकार से समझे जाने वाले बांस के झुरमुट की ठंडी छाया भी आपको यही नसीब होगी और कहीं नहीं। इचोल ऑल सेंटर भी मैहर का नया आकर्षण बन चुका है। इसे देखने के लिए विशेष रूप से कला के शौकीन और पारखी रोज पहुंचते हैं। आप मैहर जाएं तो इचोल आर्ट सेंटर जाना न भूलिएगा। यहां न आने का मतलब आपसे बहुत कुछ छूट गया।

 

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