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क्रांति की चिंगारी जलाने वाले मंगल पांडे को 10 दिन पहले क्यों दी गई थी फांसी?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
08/04/25
in राष्ट्रीय, समाचार, साहित्य
क्रांति की चिंगारी जलाने वाले मंगल पांडे को 10 दिन पहले क्यों दी गई थी फांसी?
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नई दिल्ली। भारत की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले क्रांतिकारियों में सबसे पहला नाम मंगल पांडे का आता है. अंग्रेजों पर पहली गोली चलाने वाले बलिया के इस सपूत का डर अंग्रेजों के मन में ऐसा घर कर गया था कि विद्रोह के आरोप में उनको सजा सुनाई गई तो 10 दिन पहले ही आठ अप्रैल को फांसी पर लटका दिया था. पुण्यतिथि पर आइए जान लेते हैं क्रांतिकारी मंगल पांडे के किस्से.

भारत में क्रांति की चिंगारी जलाने वाले मंगल पांडे का जन्म यूपी के बलिया जिले में स्थित नगवा गांव में हुआ था. तारीख थी 19 जुलाई 1827. उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और मां का नाम अभय रानी था. केवल 22 साल की उम्र में वह अंग्रेजों की सेना में सिपाही के रूप में भर्ती हो गए. 1446 नंबर के सिपाही मंगल पांडे को तैनाती मिली कलकत्ता (कोलकाता) के पास स्थित बैरकपुर की छावनी में.

चर्बी वाले कारतूसों के इस्तेमाल से भड़के थे सिपाही

उस वक्त अंग्रेजों ने सिपाहियों के लिए एनफील्ड पी-53 नाम की राइफल के लिए नए कारतूस लांच किए थे. उन कारतूसों में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया गया था. बताया जाता है कि कारतूसों में सुअर और गाय की चर्बी का इस्तेमाल हुआ था. इससे धार्मिक भावनाओं के चलते कई सिपाहियों ने इन कारतूसों को राइफल में डालने से मना कर दिया. इनको बंदूक में भरने से पहले मुंह से छीलना पड़ता था.

अंदर ही अंदर सुलग रही थी चिंगारी

इसके चलते अंदर ही अंदर अंग्रेजी सेना में भर्ती भारतीय सिपाहियों के भीतर नाराजगी भी थी. इसलिए गुपचुप तरीके से 31 मई 1857 को अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की शुरुआत की योजना बनाई गई. इसी बीच दो फरवरी 1857 की शाम को बैरकपुर में परेड के दौरान सिपाहियों ने नए कारतूसों को लेकर अपनी असहमति प्रकट कर दी. इसकी जानकारी अंग्रेजों के पिट्ठुओं ने उनको दे दी. यह भी बताया कि हिन्दुस्तानी सैनिक अंग्रेज अफसरों को रात में मारने की योजना बना रहे हैं. इसके अलावा असहमति जताने वाले सैनिक ही बैरकपुर में टेलिग्राफ के एक दफ्तर को फूंक चुके थे और अंग्रेजों के घरों पर आग जलते तीर भी छोड़े थे.

आखिरकार मंगल पांडे ने कर दिया खुला विद्रोह

यह सब चल ही रहा था कि बैरकपुर की शांत छावनी में 29 मार्च 1857 की शाम को सिपाही मंगल पांडे ने हलचल पैदा कर दी. मशहूर इतिहासकार रुद्रांशु मुखर्जी की किताब डेटलाइन 1857 रिवोल्ट अगेंस्ट द राज में इस घटना का वर्णन मिलता है. उन्होंने लिखा है कि मंगल पांडे अपनी रेजिमेंट के कोट के साथ धोती पहन कर नंगे पैर ही एक भरी बंदूक लेकर पहुंचे और वहां मौजूद सैनिकों को गाली देने लगे. कहा कि यहां पर फिरंगी हैं. तुम सब तैयार क्यों नहीं हो रहे? इन कारतूसों को दांतों से काटने से हम धर्मभृष्ट हो जाएंगे. तुम लोगों ने मुझे यह सब करने के लिए उकसा दिया और अब मेरा साथ नहीं दे रहे हो.

खुद के सीने पर चला दी गोली

इसकी सूचना पाकर पहुंचे अंग्रेज अफसरों पर मंगल पांडे ने हमला कर दिया पर एक गद्दार शेख पलटू ने उनको पकड़ लिया. हालांकि, उसको धक्का देकर पांडे हमले करते रहे. अंग्रेज अफसरों ने दूसरे भारतीय सिपाहियों से मंगल पांडे को पकड़ने के लिए कहा पर वे नहीं माने. इस पर उनको गोली मारने की धमकी दे दी. सिपाही मंगल पांडे की ओर बढ़े तो उन्होंने अपनी बंदूक अपने ही सीने से सटा कर गोली चला दी. वह जिंदा अंग्रेजों के हाथ नहीं आना चाहते थे पर गोली पसली से लगकर फिसल गई और वे केवल घायल हुए. अंग्रेजों ने उनको पकड़ लिया और छह अप्रैल को फांसी की सजा भी सुना दी.

जल्लादों ने फांसी देने से कर दिया मना

मंगल पांडे को फांसी देने के लिए अंग्रेजों ने 18 अप्रैल 1857 की तारीख तय की थी. हालांकि, उनको इस बात की भी आशंका थी कि देर करने पर बगावत और भी भड़क सकती है. इसलिए सजा सुनाए जाने के अगले ही दिन यानी 7 अप्रैल को ही फांसी देने की योजना बना ली.

मंगल पांडे विचार मंच के प्रवक्ता बब्बन विद्यार्थी के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि दो जल्लादों को 7 अप्रैल की तड़के बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे को फांसी देने के लिए बुलाया गया था. उन दोनों को पता चला कि मंगल पांडे को फांसी देनी है तो मना कर दिया.

इसके बाद अंंग्रेजों ने कलकत्ता से जल्लाद बुलवाए और बैरकपुर के परेड ग्राउंड में अगले दिन आठ अप्रैल की सुबह मंगल पांडे को फांसी दी जा सकी. भारत अपने इस लाल की याद में आठ अप्रैल को शहादत दिवस के रूप में मनाता है.​

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