नई दिल्ली: पहलगाम आतंकी हमले (22 अप्रैल, 2025) के बाद जम्मू-कश्मीर में जिस तरह की एकजुटता और एकता देखने को मिली है वो मिसाल बन गई है. जिस तरह कश्मीरी लोगों और नेताओं ने पर्यटकों पर हमले के बाद रिएक्ट किया है वैसा पहले कभी नहीं देखा गया. इस हमले में 26 लोगों की मौत हो गई थी. स्थानीय कश्मीरियों, राजनीतिक दलों, और देशभर के लोगों ने आतंकवाद के खिलाफ एक स्वर में आवाज उठाई, जो कश्मीर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है. श्रीनगर के जामा मस्जिद में पहली बार मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए मौन रखा गया. राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा में जो स्पीच दिया उसमें राजनीति नहीं थी बल्कि भारत और भारतीयों के प्रति एक समर्पण भाव था. जाहिर है कि नेता की स्पीच अपने समर्थकों के लिए होती है. उमर अब्दुल्ला ने जिस तरह का भाषण दिया वह बदलते कश्मीर के अवाम की आवाज है.
1-पहलगाम हमले के बाद कश्मीर में एकजुटता के कारण
अभी तक कश्मीर में आतंकवादियों को लेकर सहानुभूति रही है.याद करिए बुरहान वानी जैसे आतंकी लोगों के बीच पोस्टर बॉय बनकर उभर रहे थे. आतंकी हमले के बाद कभी भी यहां की अवाम के मुंह से विरोध के स्वर नहीं निकलते थे. पर पहलगाम अटैक के बाद जिस तरह का विरोध कश्मीरियों ने किया है वो बताता है कि कश्मीर बदल चुका है या बदल रहा है.पर्यटकों पर हुए क्रूर हमले ने कश्मीरियों के बीच गहरा दुख और गुस्सा पैदा किया. स्थानीय कश्मीरियों ने इसे न केवल पर्यटकों पर हमला माना, बल्कि कश्मीर की शांति, पर्यटन, और अर्थव्यवस्था पर हमला माना. पर्यटन कश्मीर की अर्थव्यवस्था का रीढ़ है, कोई भी कश्मीरी नहीं चाहता है कि फिर पुराना दौर लौटे. कश्मीर घाटी में पहली बार स्थानीय लोगों ने बड़े पैमाने पर आतंकवाद के खिलाफ प्रदर्शन किए. सबसे बड़ी बात यह रही कि श्रीनगर और अन्य क्षेत्रों में कश्मीरियों ने हम हिंदुस्तानी हैं… हिंदुस्तान हमारा है! जैसे नारे लगाए और आतंकवादियों की निंदा की. हो सकता है कि बहुत मामूली लेवल पर ऐसा हुआ हो पर यह शुरूआत शुभ है. यह एक ऐतिहासिक बदलाव है, क्योंकि पहले कश्मीर में आतंकवाद के प्रति बहुत हद तक मौन समर्थन या तटस्थता देखी जाती रही है.
एक 20 वर्षीय स्थानीय युवक, सय्यद आदिल हुसैन शाह, ने हमले के दौरान पर्यटकों को बचाने की कोशिश में अपनी जान गंवा दी. उनकी वीरता ने कश्मीरियों की देशभक्ति और मानवता को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया.
हमले के बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस और सुरक्षा बलों ने 15 ठिकानों पर छापेमारी की, जिसमें स्थानीय लोगों ने सहयोग किया. यह एक बदलाव है, क्योंकि पहले स्थानीय लोग अक्सर सुरक्षा बलों के प्रति संदिग्ध रहते थे. एनआईए की टीम ने पहलगाम में जांच शुरू की, और स्थानीय समुदायों ने आतंकियों की जानकारी देने में मदद की.
2-पाकिस्तान की खस्ता हालत और पीओके की दुर्दशा भी कश्मीरियों में बदलाव का कारण
पाकिस्तान की हालत किसी से छुपी हुई नहीं है. सोशल मीडिया और इंटरनेट ने पाकिस्तान की रोजमर्रा की परेशानियों को आम कश्मीरी भी समझने लगा है. पीओके की हालत भी कश्मीरियों को पता है. पीओके में हर रोज पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं. पीओके से सरकार जमकर उगाही करती है पर वहां निवेश के नाम पर धेला भी नहीं खर्च करता है पाकिस्तान. पीओके के कई नेताओं ने भारत में शामिल होने की इच्छा जगाई है. दुनिया की जियो पॉलिटिक्स में भारत का बढ़ता दबदबा भी कश्मीरियों को समझ में आ रहा है. पिछले 10 सालों में जिस तरह कश्मीर में विकास हुआ है उसका असर साफ देखने को मिल रहा है. जितने टूरिस्ट पिछले 3 सालों में कश्मीर पहुंचे हैं उतना आजादी के बाद कुल मिलाकर भी कश्मीर में नहीं पहुंचे होंगे. यही कारण है कि आम कश्मीरी भी पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगा है.
3-कश्मीर का हर दल केंद्र सरकार के हर फैसले के समर्थन में खड़ा
हमले के बाद नई दिल्ली में बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस, पीडीपी, और अन्य दलों ने केंद्र सरकार के हर फैसले का समर्थन करने का वादा किया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, यह समय पार्टीबाजी का नहीं है, जो राष्ट्रीय एकता का प्रतीक था.
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने सावधानी बरतने की अपील की, लेकिन आतंकवाद की निंदा की और स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग की वकालत की.
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा- मेजबान होने के नाते मैं सुरक्षा के लिए जिम्मेदार था। इन लोगों के परिजन से मैं कैसे माफी मांगू. मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं.
उमर ने कहा- जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा लोगों की चुनी हुई हुकूमत की जिम्मेदारी नहीं है, लेकिन CM और टूरिज्म मिनिस्टर होने के नाते मैंने इन्हें बुलाया था. मेजबान होने के नाते मेरी जिम्मेदारी थी कि इन्हें सुरक्षित भेंजू, नहीं भेज पाया.
उमर अब्दुल्ला ने कहा, उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक पूरा देश इस हमले की चपेट में आया है. यह पहला हमला नहीं था. हमने कई हमले होते हुए देखे हैं. हमने अमरनाथ यात्रा, डोडा के गांवों में हमले देखे, कश्मीरी पंडितों की बस्तियों पर हमले देखे, सिख बस्तियों पर हमले देखे.
विधानसभा में पास प्रस्ताव में कहा गया कि ऐसे आतंकी हमले ‘कश्मीरियत’, देश की एकता, शांति तथा सद्भावना पर सीधा हमला है. विधानसभा ने पीड़ितों और उनके परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए उनके दुख में सहभागी बनने का संकल्प जताया.
4-पाकिस्तान को जवाब देने में ओवैसी सबसे आगे
हैदराबाद के सांसद और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पाकिस्तान पर लगातार हमले करके खुद को सबसे बड़ा देशभक्त साबित किया है. असदुद्दीन ओवैसी के विरोधी उन पर सांप्रदायिक और विभाजनकारी होने का आरोप लगाते रहे हैं. हाल ही वक्फ संशोधन विधेयक पर बहस के दौरान संसद में उन्होंने बिल की कॉपी फाड़कर गुस्से इजहार किया था. पहलगाम हमले के बाद उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ जैसी बयानबाजी की है वो उन्हें सुनकर कई कांग्रेसी नेताओं की नींद उड़ सकती है.
ओवैसी ने पहले बयान में साफ कर दिया था कि वह आतंकियों को गाली देने भी नहीं चूकेंगे. उन्होंने कहा कि ये कुत्ते कमीने नाम पूछकर निर्दोष लोगों को मार रहे थे.उनका बयान आया, लश्कर-ए-तैयबा पाकिस्तान हुकूमत की नाजायज़ औलाद है, भारत के खिलाफ पाकिस्तान लंबे समय से आतंकियों को ट्रेनिंग दे रहा है.
ओवैसी ने कहा कि आप हमारे देश में आकर टूरिस्टों का धर्म पूछकर उन्हें गोली नहीं मार सकते. पाकिस्तान को समझना चाहिए कि वह किस देश के खिलाफ ऐसी हरकतें कर रहा है. हमारे रक्षा मंत्रालय का सालाना बजट पाकिस्तान के पूरे बजट से भी ज्यादा है. वे भारत से 30 मिनट नहीं, 30 साल पीछे हैं. पाकिस्तान को बलूचिस्तान और टीटीपी मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए. वे दवाइयां भी नहीं बना सकते हैं. ओवैसी ने बिलावल भुट्टो को भी निशाने पर लिया. उन्होंने कहा कि उनकी मां को घरेलू आतंकवादियों ने मार डाला. जब आपकी मां को गोली मारी तो वह आतंकवाद है और हमारी मां-बेटियों को मारा जाए तो वह आतंकवाद नहीं है क्या? पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी की टिप्पणी पर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, वह कौन है? आप मेरे सामने इन जोकरों का नाम क्यों ले रहे हैं?