गौरव अवस्थी l
महापुरुषों की जन्मतिथि को लेकर अक्सर मत-विमत और मतभेद होते आए हैं। ऐसा ही एक मतभेद हिंदी के युग प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की जन्मतिथि को लेकर भी हिंदी पट्टी में अरसे से चला आ रहा है। कुछ विद्वानों का मानना है कि आचार्य द्विवेदी की जन्म तिथि ६ मई है। कुछ विद्वान 5 मई या 15 मई को भी उनकी जन्मतिथि के रूप में मान्यता देते हैं। हालांकि अधिकतर विद्वान ९ मई को ही प्रामाणिक जन्मतिथि मानते-जानते हैं। यह अलग बात है कि आज के इंटरनेटिया ज्ञानी ‘गूगल बाबा’ और ‘विकीपीडिया’ ‘कुछ’ विद्वानों की मान्यता को बल देते हुए आचार्य द्विवेदी की जन्मतिथि १५ मई देश और दुनिया को बताते चले जा रहे हैं। वैसे भी, माना जाता है कि इन इंटरनेटिया ज्ञानियों को वास्तविक और प्रामाणिक तिथि से कोई लेना-देना नहीं होता। जिसने जो बता दिया वह हमेशा के लिए फीड कर दिया। हालांकि, बिना छानबीन और पुख्ता आधार के गलत जानकारी पाठकों तक पहुंचाना अक्षम्य अपराध है।
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की जन्मतिथि को लेकर उठे विवाद के मूल में भारतीय पंचांग के अनुसार उनकी जन्मतिथि का हर जगह लिखा होना है। भारतीय पंचांग के अनुसार, आचार्य द्विवेदी का जन्म वैशाख शुक्ल चतुर्थी संवत १९२१ को हुआ था। तिथि का उल्लेख स्वयं आचार्य द्विवेदी ने भी किया है। भारतीय पंचांग के अनुसार की तिथि को अंग्रेजी कैलेंडर से परिवर्तित करने को लेकर ही जन्मतिथि को लेकर भ्रम पैदा हुआ।
जन्मतिथि के विवाद के आधार के रूप में आचार्य द्विवेदी का 13 मई 1932 को प्रयागराज से प्रकाशित होने वाले पत्र ‘भारत’ में प्रकाशित आचार्य द्विवेदी का वह पत्र ही उपयोग किया जाता रहा है। यह पत्र आचार्य द्विवेदी ने भारत के संपादक पंडित ज्योति प्रसाद मिश्र ‘निर्मल’ को लिखा था। दरअसल, 1932 में काशी से नए निकलने वाले पाक्षिक ‘जागरण’ के प्रस्ताव पर आचार्य द्विवेदी की 68 वीं वर्षगांठ देश के कई नगरों में धूमधाम से मनाई गई थी। इस संबंध में ‘कृतज्ञता ज्ञापन’ के लिए आचार्य द्विवेदी ने स्वयं एक पत्र भारत के संपादक पंडित ज्योति प्रकाश मिश्र ‘निर्मल’ को लिखा। कहा जाता है कि इस पत्र को प्रकाशित करते समय मुद्रण की गलती से ९ मई की जगह ६ मई प्रकाशित हो गया। या बाद के वर्षों में आचार्य द्विवेदी का वह पत्र प्रकाशित करने में दूसरे पत्र या पत्रिकाओं में मुद्रण की गलती से ९ मई की जगह 6 मई टाइप हो गया। यह गलती ही आचार्य द्विवेदी की जन्मतिथि को लेकर भ्रम पैदा करने में सहायक सिद्ध हुई।
कुछ विद्वान मानते हैं कि अपने समय की महत्वपूर्ण मासिक पत्रिका सरस्वती का संपादन करते हुए 10 करोड़ हिंदी भाषा-भाषियों का साहित्यिक अनुशासन करने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की जन्मतिथि को लेकर हिंदी वालों में कई मतभेद और भ्रम जानबूझकर पैदा किए गए हैं। अपने समय के कुछ विद्वानों ने अपनी बात को मनवाने के लिए ही अपनी- अपनी अंग्रेजी तिथियों पर जोर देना शुरू किया। विद्वानों की इसी अखाड़ेबाजी से हिंदी भाषा भाषी समाज में आचार्य द्विवेदी की जन्मतिथि को लेकर भ्रम बढ़ता गया और इसे दूर करने की कोशिशें न के बराबर ही हुईं। आचार्य द्विवेदी के बाद सरस्वती का संपादन का भार संभालने वाले पंडित देवी दत्त शुक्ल के पौत्र और प्रयागराज निवासी पंडित वृतशील शर्मा भी ९ मई को ही मान्यता देते हैं। आचार्य द्विवेदी की जन्म तिथि को लेकर उठे विवाद से वह अपने को आज तक आहत महसूस करते हैं। उनका कहना है कि आचार्य जी की जन्म तिथि से जुड़ा यह विवाद निर्मूल और अकारण है।
वर्तमान में हिंदी समालोचना के सशक्त हस्ताक्षर एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष आचार्य डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित ९ मई को ही आचार्य द्विवेदी की वास्तविक और प्रामाणिक जन्मतिथि मानते हैं। इस लेखक से उन्होंने स्वयं यह बात अधिकार पूर्वक कहीं की सब लोग 9 मई को जन्मतिथि मानने की बात पर सहमत हैं। वह कहते हैं कि आचार्य द्विवेदी की जन्म तिथि से जुड़े विवाद के निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए उन्होंने स्वयं कई किताबों का अध्ययन किया और पाया कि 9 मई ही आचार्य द्विवेदी की प्रामाणिक जन्मतिथि है क्योंकि अपने कृतज्ञता ज्ञापन में भी उन्होंने 9 मई का ही उल्लेख किया है।
आचार्य द्विवेदी पर शोधपरक पुस्तक ‘आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी’ लिखने वाले रायबरेली के साहित्यकार केशव प्रसाद बाजपेई की मान्यता भी ९ मई पर ही केंद्रित है। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति द्वारा पिछले ११ वर्षों से प्रकाशित की जा रही स्मारिका ‘आचार्य पथ-2021’ के अंक में प्रकाशित अपने लेख में श्री बाजपेई कहते हैं कि जन्मतिथि के विवाद के निराकरण के लिए सबसे उपयुक्त उपाय संवत 1921 के पंचांग को देखने से जुड़ा था। इस विषय में खोजबीन करने पर पता चला है कि सन 1864 में 10 मई को हिंदू पंचांग के अनुसार संवत १९२१ के वैशाख मास की पंचमी तिथि थी और दिन मंगलवार था। इस दिन आदि गुरु शंकराचार्य जी की जयंती पड़ी थी। उसके अनुसार वैशाख शुक्ल चतुर्थी दिन सोमवार 9 मई 1964 को पड़ता है।
वह अपने इस लेख में लिखते हैं- ‘इस विवेचना में अंग्रेजी की तिथि 6 मई असंगत है तथा 9 मई ही संगत है। 6 मई या तो मुद्रण की भूल से पत्र में अंकित हुई है या आचार्य जी का ध्यान ही कभी इस ओर नहीं गया कि पंचांग से इसकी संगति नहीं बैठती मेरी समझ में मुद्रण की त्रुटि से ही यह भ्रम पैदा हुआ है इनसे इतर तिथियां विचारणीय ही नहीं है। अतः यह निर्णय हुआ कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की वास्तविक जन्मतिथि अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से 9 मई 1864 है, जो हिंदू पंचांग के संवत १९२१ बैशाख शुक्ल चतुर्थी दिन सोमवार से पूरी तरह मेल खाती है। एक दिन गणितीय विधि के अनुसार 9 मई 1864 को सोमवार का दिन आता है और आचार्य जी का जन्मदिन सोमवार ही है। अतः इस से भी उनकी जन्मतिथि 9 मई 1864 होनी ही पुष्टि होती है।’
इन प्रमाणों के आधार पर हिंदी भाषा भाषा समाज को खड़ी बोली हिंदी का उपहार देने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की जन्म तिथि को लेकर जानबूझ कर पैदा किए गए विवाद से बचते हुए 9 मई को ही जन्मतिथि की मान्यता देकर अपने इस महापुरुष के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए। हालांकि, महापुरुष के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन के लिए खास तिथि का कोई महत्व नहीं है। वर्ष पर्यंत हम उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते रह सकते हैं लेकिन दिन विशेष की बात आने पर हमें अपने इस पूर्वज को 9 मई (जन्मतिथि) और 21 दिसंबर 1936 (निर्वाण तिथि) को ही याद रखना होगा।