नई दिल्ली: बांग्लादेश में मुक्ति योद्धाओं के परिवारों को मिल रहे आरक्षण के खिलाफ देशभर में छात्रों और युवाओं का प्रदर्शन जारी है. इन प्रदर्शनों में अब तक 131 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. इसी बीच बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने मामले मे हस्तक्षेप करते हुए बड़ा फैसला दिया है. माना जा रहा है कि कोर्ट के इस फैसले से बवाल धीरे- धीरे शांत हो सकता है. कोर्ट ने अपने फैसले में मुक्ति योद्धाओं के परिवारो को दिए जा रहे आरक्षण में काफी कटौती कर दी.
सुप्रीम कोर्ट ने घटाया आरक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अब देश में सभी सरकारी नौकरियों में 93 प्रतिशत रिक्तियां ओपन मेरिट के आधार पर भरी जाएंगी. जबकि 7 प्रतिशत रिक्तियां बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में लड़ने वालों के रिश्तेदारों और अन्य श्रेणियों के लिए रिजर्व रहेंगी. इससे पहले मुक्ति योद्धाओं के लिए नौकरियों में आरक्षण 30 प्रतिशत तक था.
बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था में सुधार की मांग को लेकर कई दिन से प्रदर्शन हो रहे हैं. उनका तर्क है कि आरक्षण की यह प्रणाली भेदभावपूर्ण है. इस व्यवस्था से प्रधान मंत्री शेख हसीना के समर्थकों को लाभ पहुंचता है, जिनकी अवामी लीग पार्टी ने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया था. वे चाहते हैं कि इसकी जगह योग्यता आधारित प्रणाली लागू की जाए.
देश में लागू किया गया कठोर कर्फ्यू
वहीं पीएम शेख हसीना ने आरक्षण व्यवस्था का यह कहकर समर्थन किया है कि देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने वालों के परिवार सर्वोच्च सम्मान के पात्र हैं और उन्हें यह हक मिलना ही चाहिए. हालात बिगड़ने पर शनिवार को पूरे देश में कठोर कर्फ्यू लगा दिया गया.
सैन्य बलों ने राजधानी ढाका के विभिन्न हिस्सों में गश्त की. दंगे पर उतारू प्रदर्शनकारियों को काबू करने के लिए अधिकारियों ने पुलिस और सेना को दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए हैं. बांग्लादेशी अधिकारियों ने मृतकों और घायलों की कोई आधिकारिक संख्या साझा नहीं की है लेकिन समाचार दैनिक ‘प्रोथोम अलो’ में शनिवार को प्रकाशित एक खबर में बताया गया कि अब तक कम से कम 103 लोग मारे गए हैं.
बांग्लादेश बवाल में रजाकारों की एंट्री
इसी बीच बांग्लादेश में जारी बवाल में रजाकारों की एंट्री भी हो गई है. पीएम शेख हसीना ने मुक्ति योद्धाओं को आरक्षण का विरोध कर रहे उपद्रवियों को रजाकार करार दिया है. हसीना ने कहा, मैं देश के लोगों से पूछना चाहती हूं कि अगर हमारे मुल्क में अगर स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को रिजर्वेशन का लाभ नहीं मिलेगा तो क्या रजाकारों के पोते- पोतियों को मिलेगा. आप इस पर सोचें. प्रदर्शनकारी अगर इस पर विरोध करना चाहते हैं तो करें लेकिन अगर वे हिंसा करेंगे तो कानून अपना काम करेगा.
शेख हसीना के बयान से प्रदर्शनकारी छात्र और भड़क गए हैं. उन्होंने अब नया नारा बुलंद कर दिया है. तुई के, अमी के, रजाकार, रजाकार! (आप कौन हैं? मैं कौन हूं? रज़ाकार, रज़ाकार). इसके बाद से प्रदर्शनकारियों ने युद्ध घोष के साथ विरोध को दोगुना कर दिया है.
आखिर कौन थे रजाकार, जिससे नफरत करते हैं भारतीय-बांग्लादेशी?
रजाकार असल में भारत में हैदराबाद के मुस्लिम शासक की निजी सेना थी. इस सेना में सभी कट्टरपंथी मुसलमान शामिल थे. उन्होंने निजाम के शासन के खिलाफ आवाज उठाने हिंदुओं का बेदर्दी से कत्लेआम किया था. भारतीय सेना ने जब 1961 में हैदराबाद में पुलिस अभियान चलाया तो लोगों को निजाम और रजाकारों से मुक्ति मिली. इसके बाद काफी रजाकार पश्चिम पाकिस्तान और कुछ पूर्वी पाकिस्तान में चले गए.
वर्ष 1971 में जब बांग्लादेश के लोगों ने पाकिस्तान से मुक्ति अभियान शुरू किया तो पाकिस्तानी सेना ने उन पर कहर ढहाना शुरू कर दिया. भारत से पूर्वी पाकिस्तान गए मुसलमानों ने भी ‘रजाकार’ नाम का मिलिशिया संगठन बनाकर इस दमन में पाकिस्तानी सेना का साथ दिया. इनका गठन पाकिस्तानी सेना ने किया था.
पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर ढहाया था कहर
रिपोर्ट के मुताबिक मई 1971 में, जमात-ए-इस्लामी के एक वरिष्ठ सदस्य मौलाना अबुल कलाम मुहम्मद यूसुफ ने पूर्वी पाकिस्तान के खुलना में रजाकारों का पहला समूह बनाया. इस संगठन में भारत छोड़क गए सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित गरीब लेकिन कट्टरपंथी मुसलमान शामिल थे. वे बंगाली नागरिकों के खिलाफ सामूहिक हत्याओं, बलात्कार और अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन सहित अत्याचारों में शामिल थे.
बांग्लादेश बनने के बाद वहां रजाकार शब्द को एक गाली और देशद्रोही शब्द की तरह माना जाने लगा. वर्ष 2010 में, हसीना सरकार ने 1971 के युद्ध अपराधियों को सजा दिलवाने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण का गठन किया. इसके बाद 2013 में यूसुफ को अरेस्ट करके केस चलाया गया. हालांकि एक साल बाद ही कार्डियक अरेस्ट से उसकी मौत हो गई. वर्ष 2019 में पीएम हसीना ने ऐसे 10,789 गद्दार रजाकारों की लिस्ट जारी की, जिन्होंने 1971 में पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर बंगालियों पर कहर ढहाया था.