नई दिल्ली: प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को “एक देश एक चुनाव” पैनल रिपोर्ट को मंजूरी दे दी। उच्च स्तरीय समिति का गठन सितंबर 2023 में एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया को तेज करने के लिए किया गया था।
यह रिपोर्ट हितधारकों, विशेषज्ञों के साथ परामर्श और 191 दिनों के शोध कार्य का परिणाम है, जो 2 सितंबर, 2023 को इसकी स्थापना के बाद से किया गया था।
आपको बता दें कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का कांसेप्ट भारत में नया नहीं है। आजादी के बाद हमारे देश में सालों तक एक साथ चुनाव होते आए हैं लेकिन कुछ सालों बाद कुछ कारणों से अलग-अलग चुनाव होने शुरू हो गए। आइए जानते हैं भारत में कब तक एक साथ चुनाव होते रहे और कब से और क्यों अलग-अलग चुनाव होना आरंभ हुआ।
कब तक भारत में एक साथ होते थे चुनाव?
आजादी के बाद, भारत 1950 में एक गणतंत्र राज्य बन गया। इसके परिणामस्वरूप 1951 से 1967 तक हर पांच साल में चुनाव होने लगे। इस दौरान राज्य विधानसभा और लोकसभा दोनों के चुनाव एक साथ हुआ करते थे। साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव का आयोजन एक साथ किया गया था।
इन शुरुआती वर्षों के बाद, राज्यों के पुनर्गठन और नए राज्यों के निर्माण ने चुनावी परिदृश्य को बदल दिया। परिणामस्वरूप, विभिन्न राज्यों में अलग-अलग अंतराल पर चुनाव होने लगे। यह बदलाव देश भर में एक साथ चुनाव कराने की पिछली प्रथा से अलग था।
राज्यों के पुनर्गठन के कारण चुनावी कार्यक्रमों में समायोजन की आवश्यकता हुई। परिणामस्वरूप, प्रत्येक राज्य की चुनाव समय-सीमा अलग हो गई, जो उसकी विशिष्ट प्रशासनिक आवश्यकताओं और परिस्थितियों पर केंद्रित थी। इस बदलाव ने यह सुनिश्चित किया कि चुनाव प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
किस-किस देश में एक साथ होते हैं चुनाव?
भारत की तरह ही, फ्रांस की संसद में एक निचला सदन है जिसे नेशनल असेंबली के नाम से जाना जाता है। संघीय सरकार के नेता, राष्ट्रपति, साथ ही राज्य प्रमुखों और प्रतिनिधियों के लिए नेशनल असेंबली के चुनाव हर पांच साल में एक साथ होते हैं। इसी तरह, स्वीडन में, संसद और स्थानीय सरकार दोनों के चुनाव हर चार साल में एक साथ होते हैं। हालांकि, कनाडा के हाउस ऑफ कॉमन्स के चुनाव हर चार साल में निर्धारित होते हैं, लेकिन केवल कुछ प्रांत संघीय चुनावों के साथ-साथ स्थानीय चुनाव आयोजित करते हैं।