राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने केंद्र सरकार की सिफारिश पर जम्मू-कश्मीर में गुर्जर मुस्लिम समुदाय के ‘गुलाम अली’ को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव से पहले, गुलाम अली के चयन को भाजपा के लिए ‘तुरुप का इक्का’ बताया जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि वे जम्मू कश्मीर में ‘भगवा’ लहराने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। राज्य में अभी तक गुर्जर मुस्लिम बक्करवाल, जैसे पहाड़ी लोगों का विधानसभा में प्रतिनिधित्व न के बराबर रहा है। अब ये लोग खुद को चुनावी प्रक्रिया से दूर महसूस नहीं करेंगे। राजौरी और पुंछ में गुर्जर बक्करवाल समुदाय के लोगों की बड़ी संख्या है। जम्मू कश्मीर परिसीमन आयोग की रिपोर्ट में नौ सीटें अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए आरक्षित की गई हैं। इनमें से छह सीट जम्मू में तो तीन सीट, कश्मीर क्षेत्र में हैं। गुर्जर और पहाड़ी जैसे कई समुदाय, जो खुद को विकास रेखा से अभी तक दूर मान रहे थे, अब वे खुश हैं। दूसरा, गुर्जर बक्करवाल समुदाय को कट्टर राष्ट्रवादी बताया जाता है। कारगिल युद्ध में यह समुदाय अपने ‘राष्ट्रवादी’ होने का पुख्ता सबूत दे चुका है।
‘हरे रुमाल और पाकिस्तानी नमक’ का विरोध …
जम्मू कश्मीर में गुलाम अली ने शुरु से ही राष्ट्रवाद की राह पकड़ रखी थी। जब वहां पर दूसरे राजनीतिक दल, पाकिस्तान की तरफ झुकाव रख रहे थे, तब वे कट्टरता के साथ राष्ट्रवाद का झंडा उठाते रहे। स्थानीय लोग उन्हें इंजीनियर गुलाम अली कह कर पुकारते हैं। वे राष्ट्रवाद के मोर्चे पर सदैव ‘हरे रुमाल और पाकिस्तानी नमक’ की सियासत का कड़ा विरोध करते रहे। उन्हें स्थानीय एवं सीमा पार के कट्टरपंथियों द्वारा खूब धमकियां दी गई, लेकिन वे कभी झुके नहीं। आजादी के दिन तिरंगा फहराते रहे। जब घाटी में सार्वजनिक तौर भाजपा का कोई नाम लेने के लिए भी तैयार नहीं था, तब गुलाम अली अकेले ही ‘भगवा’ मुहिम को आगे बढ़ाते रहे। अगर आज जम्मू कश्मीर के गुर्जर मुस्लिम या दूसरे पहाड़ी समुदाय, भाजपा की तरफ आए हैं तो उसका श्रेय गुलाम अली को जाता है। एक बार उन्होंने कहा था, अगर किसी को राष्ट्रवाद और हिंदुस्तान को समझना है तो उसे ‘आरएसएस’ में कुछ समय जरुर बिताना चाहिए। कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की घुसपैठ को सबसे पहले गुर्जर बक्करवाल समुदाय के लोगों ने ही देखा था। उन्होंने सही जगह तक सूचना भी पहुंचाई। इसके अलावा यह समुदाय अनेक अवसरों पर भारतीय सेना के लिए, खासतौर पर इंटेलिजेंस को लेकर ‘आंख और कान’ साबित हुआ है।
भाजपा के लिए यूं मददगार बन सकते हैं गुलाम अली …
कुछ माह पहले सार्वजनिक हुई जम्मू कश्मीर परिसीमन आयोग की रिपोर्ट में नौ सीटें अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए आरक्षित की गई हैं। इनमें से छह सीट जम्मू में हैं, बाकी की तीन सीट, कश्मीर क्षेत्र में आती हैं। जम्मू कश्मीर के राजनीतिक एवं सुरक्षा मामलों के जानकार कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) बताते हैं, साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, कश्मीर में 68 लाख से ज्यादा मुस्लिम हैं। अगर इसे प्रतिशत में देखें तो यह आंकड़ा करीब 96 फीसदी है। जम्मू क्षेत्र में कुल आबादी की बात करें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक वह संख्या लगभग 54 लाख है। इनमें 34 लाख हिंदू हैं। यहां पर भी 35 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है। पुंछ एवं राजौरी इलाके, जम्मू संभाग के अंतर्गत आते हैं। यहां पर गुज्जर मुस्लिम एवं बक्करवाल बड़ी तादाद में रहते हैं। ये लोग अनुसूचित जनजाति में शामिल हैं। अभी तक यहां के लोगों को कोई खास पहचान नहीं मिली थी। तीन दशक बाद इन लोगों को विधानसभा में प्रतिनिधित्व का अवसर मिला है। पुंछ और राजौरी में अब एसटी समुदाय के लिए पांच सीट आरक्षित हो गई हैं। इनकी संख्या 14 लाख से अधिक है। पहाड़ी लोग, अब खुद को चुनावी प्रक्रिया से दूर महसूस नहीं करेंगे। ऐसे में गुलाम अली का राज्यसभा में पहुंचना, विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए फायदे का सौदा बन सकता है।
अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद लिया ये बड़ा निर्णय …
नए परिसीमन में विधानसभा में सीटों की संख्या 90 हो गई है। कश्मीर संभाग में 47 तो जम्मू संभाग में 43 सीटें हैं। अनुसूचित जाति के लिए 7 तो वहीं अनुसूचित जनजाति के लिए 9 सीट रिजर्व की गई हैं। आज तक राजनीति एवं विकास के मामले में इस समुदाय को दरकिनार किया जाता रहा। अनिल गौर के अनुसार, ये पहाड़ी लोग हैं। इन्हें खानाबदोश की तरह रहना और चलना होता है। पहाड़ों में जंगलों के बीच रहे इन लोगों को पहले वन अधिनियम के तहत अधिकार भी नहीं मिला था। अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद सरकार ने इनकी सुध ली है। अब ये लोग नौकरी में भी आ रहे हैं। स्टेट में आरक्षण मिला है। 2021 में गुज्जर बक्करवाल और गद्दी सिप्पी समुदायों के लाभार्थियों को वनाधिकर अधिनियम 2006 के तहत वन संपदा पर निजी व सामुदायिक अधिकार का प्रमाणपत्र सौंपा गया। सरकार के इस फैसले ने गुज्जर बकरवाल व गद्दी सिप्पी समुदाय सहित 14 लाख लोगों को विकास का सुनहरा अवसर प्रदान किया है। ये लोग दशकों से जंगलों में बिना किसी अधिकार के रहते आए थे। अब इनकी शिक्षा एवं साक्षरता का स्तर बढ़ाने की योजना शुरु की गई है।
मौजूदा समीकरणों में 35 से 40 सीटों तक जा सकती है भाजपा …
गुलाम अली के जरिए भाजपा, एससी और एसटी सीटों पर बढ़त ले सकती है। राजनीतिक जानकार के अनुसार, अभी तक नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी इनके वोटों के लिए जोर लगाते थे। कांग्रेस भी इन्हें अपना बताती रही है। विधानसभा की सात सीट बढ़ने और अब गुलाम अली को राज्यसभा में भेजना, ये सब भाजपा को सत्ता के करीब तक पहुंचा सकता है। पहले भाजपा का ग्राफ 32 सीटों के आसपास हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी को 28 और भाजपा को 25 सीटें मिली थी। नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास 15, कांग्रेस 12 और अन्य के खाते में 9 सीटें गई थी। अब भाजपा को 35 से अधिक सीट मिल सकती हैं। दूसरे दल, जैसे कांग्रेस व एनसी के नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं। गुलाम नबी आजाद के खेमे में भले ही कांग्रेस के हारे हुए नेता ज्यादा हैं, लेकिन वे जनता के लिए परिचित हैं। चुनाव के बाद गुलाम नबी आजाद व ‘अपनी पार्टी’ भी भाजपा के पक्ष में जा सकती है।
इन लोगों को मिलेगा वोट देने का अधिकार …
गोरखा, वाल्मीकि और वेस्ट पाकिस्तान से आए शरणार्थी, जिनके पास अभी तक वोटिंग राइट नहीं था, अब उन्हें वोट का अधिकार मिल रहा है। हालांकि 2011 वाली जनगणना में इन्हें वोट का अधिकार नहीं था। परिसीमन आयोग की रिपोर्ट तैयार करने के लिए 2011 की जनगणना को ही आधार बनाया गया है। उस सूची में इन लोगों का नाम शामिल नहीं है। 15 सितंबर से वोटर लिस्ट का अपग्रेडेशन शुरु हो रहा है। चुनाव में इसका लाभ, भाजपा को मिल सकता है। परिसीमन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, जेएंडके की 56 प्रतिशत आबादी कश्मीर में निवास करती है, लेकिन यहां के लोगों को विधानसभा में 52 प्रतिशत हिस्सेदारी मिलेगी। जम्मू क्षेत्र में कुल आबादी का 44 प्रतिशत हिस्सा निवास करता है। वहां के लोगों को अब विधानसभा में 48 प्रतिशत प्रतिनिधित्व मिलेगा। जम्मू क्षेत्र में लगभग सवा लाख की आबादी पर एक विधायक चुना जाएगा तो कश्मीर में 1.46 लाख वोटरों पर एक एमएलए रहेगा।