देहरादून: प्रदेश में कई विद्यालयों में छात्र बिना शिक्षक बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। कहीं, शिक्षक नहीं हैं, जहां हैं वे भी लंबित मांगों के लिए पिछले कई दिनों से आंदोलनरत हैं। आंदोलनरत शिक्षकों का कहना है कि वे छात्र-छात्रों की पढ़ाई का नुकसान नहीं चाहते, लेकिन उनकी मांगों की अनदेखी कर उन्हें आंदोलन के लिए मजबूर किया गया है।
प्रधानाचार्य के पद पर विभागीय सीधी भर्ती के विरोध में शिक्षक 2 सितंबर से चरणबद्ध रूप से आंदोलनरत हैं। दो सितंबर को शिक्षकों ने प्रदेश भर में चॉक डाउन कर कार्यबहिष्कार किया। जिससे विद्यालयों में पढ़ाई बुरी तरह से प्रभावित हुई। वहीं, पांच सितंबर को शिक्षकों ने काली पट्टी बांधकर शिक्षक दिवस का बहिष्कार किया।
10 सितंबर से क्रमिक अनशन पर
9 सितंबर को शिक्षकों ने शिक्षा निदेशालय में प्रदर्शन के बाद 10 सितंबर से क्रमिक अनशन शुरू कर दिया। हर दिन दो से तीन जिलों के शिक्षक शिक्षा निदेशालय में क्रमिक अनशन पर हैं। जिस दिन जिस जिले के शिक्षक क्रमिक अनशन में बैठ रहे हैं, उस दिन संबंधित जिलों के विद्यालयों में छात्रों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है।
राजकीय शिक्षक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष राम सिंह चौहान के मुताबिक अन्य विभागों में कर्मचारियों और अधिकारियों की पदोन्नतियां हो रही हैं, लेकिन शिक्षा विभाग में 25 से 30 साल से शिक्षक पदोन्नति न होने से एक ही पद पर कार्यरत हैं। प्रधानाचार्य के शत प्रतिशत पदों को पदोन्नति से भरा जाए।
शिक्षक संघ के प्रांतीय मीडिया प्रभारी प्रणय बहुगुणा बताते हैं कि सरकार शिक्षकों की मांगों के प्रति गंभीर नहीं है। सीआरपी, बीआरपी के मामले का सरकार ने निपटारा करा लिया, लेकिन शिक्षकों के मामले को कोर्ट में बताते हुए उन्हें पदोन्नति से वंचित किया जा रहा है। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक उत्तराखंड बोर्ड की 10 वीं और 12 वीं की परीक्षा के लिए बहुत कम समय बचा है। शिक्षकों के आंदोलन से बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है।