भोपाल: बीजेपी ने अभी तक मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जितने भी उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं, उनमें से 18 सांसद हैं। इनमें से कई तो केंद्र सरकार के बड़े चेहरे और ओहदेदार मंत्री भी हैं। पहले बीजेपी ने जिस तरह से एमपी में तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 लोकसभा सांसदों को टिकट दिया, तो यह कहा गया कि इनके जरिए पार्टी ‘मुश्किल सीटों’ के जीतना चाहती है। लेकिन, धीरे-धीरे जब मामला छत्तीसगढ़ और राजस्थान तक पहुंचा तो साफ समझ में आने लगा कि मुद्दा कठिन सीटों’ को जीतने से ज्यादा है।
सांसदों को टिकट देने के पीछे क्या है बीजेपी का मकसद?
अब लग रहा है कि इसके माध्यम से पार्टी कुछ नेताओं के या तो पर कतरना चाह रही है, या फिर कुछ को प्रदेश में नई लीडरशिप की भूमिका में लाने की कोशिश कर रही है। अगर मध्य प्रदेश के मामले में देखें तो लगता है कि अगर भाजपा फिर से सत्ता में वापस आई तो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रह्लाद पटेल और पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संभावित विकल्प हो सकते हैं। हालांकि, विजयवर्गीय का नाम सांसदों की लिस्ट से अलग है।
पार्टी के पक्ष में सकारात्मक माहौल बनने की उम्मीद
इन तीनों नेताओं को अपने-अपने इलाकों में और खास तबकों पर एक खास प्रभाव है और पार्टी को लगता है कि वह आसपास के कई क्षेत्रों या पूरे प्रदेश में भी पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने में मददगार साबित हो सकते हैं। पार्टी के एक केंद्रीय पदाधिकारी ने नाम नहीं जाहिर होने देने की शर्त पर बताया है कि एमपी के मामले में तोमर, पटेल और विजयवर्गीय सीएम के चेहरे के तौर पर देखे जा रहे हैं, इससे उन इलाकों में पार्टी के प्रति एक सकरात्मक महौल बनने की उम्मीद है।
प्रदेश की राजनीति तक सीमित करना हो सकता है मकसद
लेकिन, वहीं यह भी चर्चा है कि पार्टी इसी बहाने इन सांसदों को प्रदेश की राजनीति तक ही सीमित करना चाहती है। अगर ये चुनावों में जीतते हैं तो राज्य की राजनीति में रहेंगे और अगर पार्टी जीती और सीएम बदलने का फैसला हुआ तो इनमें से किसी एक को ही तो वह जिम्मेदारी मिल पाएगी। इसी तरह से अन्य चार सांसदों को भी चुनाव जीतने और पार्टी की जीत की स्थिति में राज्य में मंत्री बनाया जा सकता।
एंटी-इंकंबेंसी फैक्टर को तोड़ने की पहल
एक और बात ये कहा जा रहा है कि जिन सांसदों को पार्टी ने विधानसभा चुनाव लड़ाने का फरमान सुनाया है, उनमें से कुछ की लोकसभा सीटों पर उनके खिलाफ एंटी-इंकंबेंसी की रिपोर्ट मिल रही हैं। ऐसे में उन सीटों पर पार्टी को नए चेहरे को उतारने में मदद मिलेगी और इससे लोकल एंटी-इंकंबेंसी को आसानी से निपटाया जा सकता है।
पार्टी कई चुनावों में यह प्रयोग कर भी चुकी है और उसकी सफलता के आंकड़े भी मजबूत रहे हैं। दूसरी तरफ अगर उन सीटों पर प्रदेश सरकार के खिलाफ एंटी-इंकंबेंसी का दबाव है तो उसकी भी धार मोड़ने में सहायता मिल सकती है।
राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी जारी है प्रयोग
राजस्थान में भाजपा ने 41 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में ही 7 सांसदों को टिकट दिया है। यह संख्या और भी बढ़ सकती है, क्योंकि 159 नाम अभी सामने आने बाकी हैं। छत्तीसगढ़ में भी 4 सांसदों को दांव पर लगाया गया है। इनमें से एक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भतीजे और दुर्ग से लोकसभा सांसद विजय बघेल भी हैं।
हालांकि, बघेल का मामला अलग है, जिन्हें पार्टी ने चाचा के मुकाबले में ही टिकट दिया है। यहां अगर ये हार भी जाते हैं तो भी न इनके कद और राजनीतिक प्रतिष्ठा को कोई खास नुकसान की आशंका है, लेकिन अगर जीत जाते हैं तो पार्टी की जीत की स्थिति में प्रदेश में उसे सीएम पद का एक युवा चेहरा भी हाथ लग सकता है।