नई दिल्ली: हाल ही संभल की जामा मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष की याचिका पर निचली अदालत ने ASI से सर्वे कराने का आदेश दिया था, जिसके चलते संभल में हिंसा और विवाद हो गया था। वहीं अजमेर दरगाह को लेकर भी याचिका निचली अदालत ने स्वीकार कर ली है। इसको लेकर जारी विवाद के बीच मुस्लिम संगठन, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पूर्व सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ के फैसलों को जिम्मेदार ठहराया है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश के संभल की जामा मस्जिद से लेकर अजमेर दरगाह पर जारी विवाद के बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और समाजवादी पार्टी के कई सांसदों ने पूर्व सीजेआई को टारगेट किया है। दोनों का ही कहना है कि 2023 में चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने ज्ञानवापी मामले में सर्वे की याचिका को मंजूरी देकर विवाद को हवा दी थी।
सपा सांसद ने पूर्व CJI को बताया विवादों का जिम्मेदार
इस मामले में समाजवादी पार्टी के नेता जिया-उर-रहमान बर्क और मोहिबुल्लाह नदवी ने कहा है कि चंद्रचूड़ का फैसला गलत था। इससे और सर्वे की याचिकाओं का रास्ता खुल गया है। सुप्रीम कोर्ट को इस पर संज्ञान लेना चाहिए और ऐसे सर्वे रोकने चाहिए।
समाजवादी पार्टी के सांसद ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को इन विवादों पर संज्ञान लेना चाहिए और इस तरह के सर्वे रोकने के लिए आदेश देना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस तरह की याचिकाएं स्वीकार न करने के लिए निचली अदालत को निर्देश देने चाहिए।
AIMPLB ने दिया बड़ा बयान
इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी बयान जारी किया और कहा कि यह फैसला प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की भावना के खिलाफ है। बोर्ड ने कहा है कि बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम का हवाल देकर कहा था कि किसी भी पूजा स्थल की स्थिति 15 अगस्त 1947 के अनुसार बदला नहीं जा सकता है, लेकिन ज्ञानवापी मामले में अदालत ने सर्वे की अनुमति देकर अपनी स्थिति नरम कर दी थी।
ओवैसी बोले- इन सर्वे का उद्देश्य क्या है?
इस विवाद को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और विपक्ष का कहना है कि इन सर्वेक्षणों से सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है। इस मामले में AIMIM प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि 1991 के कानून के अनुसार पूजा स्थल की स्थिति नहीं बदली जा सकती है। ऐसे में इन सर्वे सा क्या उद्देश्य है।
क्या बोले Hindu पक्ष के वकील?
वहीं हिंदू पक्ष का प्रतिनिध्व करने वाले वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि 1991 का कानून ASI द्वारा संरक्षित स्थलों पर लागू ही नहीं होता है। उन्होंने 1950 के प्राचीन स्मारक अधिनियम का हवाला दिया।