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‘मेरा जीवन, मेरी रचना’

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
20/05/20
in मुख्य खबर, साहित्य
‘मेरा जीवन, मेरी रचना’
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Kannika Jainकनिका जैन
काउंसलर
थैरेपिस्ट कोच व हीलिंग प्रैक्टीशनर
पति व पुत्र के साथ नई दिल्ली में निवास


यह ब्रह्मांड बड़े विचित्र तरीके से कार्य करता है। जब हम खुले रूप से स्वीकार करते हैं, तब हमें ऐसे पुरस्कार मिलते हैं, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होती।

सन 2005 में,
मैं 25 वर्षीय नवविवाहिता अपने जीवन के मधुरतम क्षणों में मस्त होकर अपने कैरियर की उज्जवल सीढ़ी पर चढ़ रही थी, तभी मुझे भयंकर शारीरिक और मानसिक आघात की सूचना मिली। मेरी कमर में असहनीय दर्द होने लगा और मैं यहाँ-वहाँ कई कुशल डॉक्टरों से सलाह लेती रही। अंततः मुझे पता लगा कि मेरे दोनों किडनी, कुछ कम कुछ ज्यादा, अपना काम नहीं कर रही हैं, जिसे सीकेडी फाइव(CKD-5) कहते हैं। वो अपना मुख्य कार्य करने में असमर्थ होती जा रही हैं। परंतु मुझे दिलासा दिया गया कि दवाई और डायलिसिस इसका इलाज हैं परंतु अंततः किडनी का बदलाव ही इसका पूर्ण समाधान है।

Kannika Jain

मेरे पति स्तब्ध थे। यह जीवन में पूर्णतया अति निराशाजनक सूचना थी। मै तड़प उठी और मेरी आत्मा चीखी कि प्रभु यह ये मेरे साथ ही क्यों हुआ?

अत्यधिक दुखभरी परिस्थितियों में, मेरे अंतरंग ने जाना कि मेरा जीवन अच्छे अर्थों के लिए बना है। यह बात बेमानी है कि इस जीवन का अंत कैसा होगा। तब मैं, अपने परिवार के साथ, एक खुशहाल भविष्य की आशा को खोजने के लिए प्रबल प्रयास करने लगी। जैसे-जैसे मेरा इलाज चलता गया, मुझे दृढ़ विश्वास होता गया कि मेरी खोज की सफलता मेरे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ, मेरे दृढ़ मानसिक तथा भावनात्मक बल पर अधिक निर्भर करती है। अतः डॉक्टर और दवाइयों के साथ, मैंने स्वयं को मानसिक व भावनात्मक रूप से दृढ़ और दृढ बनाना प्रारंभ कर दिया।

सबसे पहले मैंने अपने जीवन के प्रति उत्तरदायित्व निभाने का संकल्प लिया। सब कुछ इतनी तीव्रता से बदल रहा था कि भाग्य पर क्रोध और दोष लगाने से कुछ हासिल नहीं था, जबकि अपने जीवन के प्रति सजगता से कटिबद्ध रहने से, मुझे सफलता की ऊंचाईयां प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। तब मैंने अपनी मानसिक शक्ति के बल को जाना, पहचाना और विश्वास किया कि किस तरह मैं अपने शारीरिक कष्टों को जीत पाऊंगी। अंततः मैंने अपने मन को तैयार किया कि वह इस कठिन, बदले हुए जीवन को स्वीकार करें।
परिणामस्वरूप मेरे अंतरंग की इस नई चेतना के नए बल ने मेरा डायलिसिस सात साल आगे धकेल दिया। जोकि उस समय में अधिक से अधिक एक साल में ही हो जाता।

डायलिसिस मेरे जीवन की सुखद यात्रा नहीं थी। मेरे लिए आसान नहीं था, निरंतर गिरते हुए स्वास्थ्य, टूटते हुए आत्मबल, खाली होती अंतरंग की भावना को बटोर कर जीना

परंतु फिर भी मैंने दृढ़ निश्चय में खुद को बांधा। हर प्रकार से हर स्तर पर अपने अंतर बल को दृढ़ बनाए रखने के लिए, लगातार प्रयत्न करती रही। उस समय मैं, अपने शरीर की प्रबल स्वामिनी बन गई, इससे पहले यह निर्बल शरीर मेरा मालिक बन जाता।

ऐसे ही एक वर्ष बीता और किडनी ट्रांसप्लांट की तैयारी का समय था। अब मुझे पूर्ण विश्वास था कि हर परिस्थिति मेरे साथ होगी, मेरे पक्ष में होगी।

मैं गर्व के साथ कहती हूं कि मैं भाग्यशाली हूं कि मेरे पिता ने मुझे अपनी किडनी दान दी, दान नहीं उपहार दी। माता के उदर में हर बच्चे के अंग बनते हैं, जीवन मिलता है, पर मेरा सौभाग्य की मेरे पिता ने अपना अंग देकर मेरा जीवन प्राणवान बनाया। किडनी ट्रांसप्लांट से पहले हम दोनों को ही बहुत से लंबे-लंबे टेस्ट से गुजरना पड़ा। मैं अपने शरीर में एक और नए सदस्य का स्वागत करने को तैयार थी और नए जीवन को पाने को तत्पर थी।

Kannika Jain

बड़ी रोमांचक बात है कि मुझे अपनी शादी की आठवीं सालगिरह के दिन अस्पताल में दाखिल किया गया। उस सुबह मैंने अपना घर छोड़ने से पहले एक सुंदर से बॉक्स को अपने पति को दिया जिसमें बहुत ही सुंदर एक घड़ी थी, जो मैंने कुछ दिन पहले खरीदी थी। यह घड़ी मेरे पति को उन घड़ियों के लिए हार्दिक धन्यवाद दे रही थी जब वह इन 8 सालों में मेरे साथ दुख भरे क्षणों में दृढ़ता से खड़े रहे, साथ ही ये घड़ी संकेत दे रही थी कि खुशियों के पल बहुत शीघ्र आने वाले हैं।

मेरा ऑपरेशन बहुत सफल रहा। अनजान चेहरों के बीच मैंने आंख खोली। अर्ध सुप्तावस्था में, मैं अपने पति और भैया को दूर से देख रही थी। मैं सुन पा रही थी कि मूत्र, भली प्रकार अच्छी मात्रा में आ रहा है जो कि ऑपरेशन की सफलता का अच्छा संकेत था।

मेरे सभी डॉक्टर चकित थे, जब मैं ऑपरेशन के मात्र 48 घंटे बाद ही अपने पैरों पर खड़ी हो गई थी जबकि इस तरह के मरीज बहुत ही कम होते हैं। उनके अनुसार ये मेरे दृढ़ सकारात्मक मानसिक बल का प्रभाव था। इन बातों को यहीं विराम देती हूँ, यह कहकर कि ऑपरेशन की सफलता के साथ, सब कुछ अच्छा था और मुझे अस्पताल से घर भेज दिया गया।

अब अगला एक साल बहुत ही विशेष था। इस एक साल में संपूर्ण जीवन शैली बदल रही थी। अत्यधिक अनुशासन व संयम से जीना था। मुझे यह सुनिश्चित रखना था कि मेरी नई किडनी भली प्रकार कार्य करती रहे। इस यात्रा में, मैं शुरू से ही भाग्यशाली थी। एक अत्यंत प्यार करने वाला पति मेरे साथ हर पल था। मेरे माता-पिता, मेरे भैया-भाभी जो मुझे हर पल मेरी शक्ति के बारे में याद कराते रहते थे। इन सबके अतिरिक्त संसार के सभी आर्थिक तथा अन्य साधन, जिनको मैं प्राप्त कर रही थी, वह मेरी आत्मा को मजबूती से आगे बढ़ा रहे थे।

Kannika Jain

आज मैं इन 15 वर्षों पर विचार करती हूं तो पाती हूँ, ये वर्ष खुशियों के जीवन परिवर्तन की सुखद यात्रा थी। यद्यपि बहुत पीड़ादायक भी थी।

मैं हर समय भय और क्रोध में घिरी रहती। ये मेरा दुख भरा समय था, जब मैं बिस्तर से उठने की इच्छा शक्ति खोती जा रही थी। मुझे दी जाने वाली दवाइयों का दुष्प्रभाव मेरे शरीर का साथ छोड़ने पर जोर दे रहा था, मानो मेरा शरीर कह रहा था कि यह लड़ाई छोड़ो और मुझे मृत्यु शय्या पर सो जाने दो। तब साहस बटोरते-बटोरते एक ऐसा समय आया जब मैंने अनुभव किया कि यह जीवन की धारा है और फिर मैं बहती गई।

आज ऑपरेशन के सात सालों बाद मुझे कुछ सुखद अनुभव याद आए, मानो सब कल की ही बात हो।

बहुत तड़के सुबह ऑपरेशन वाले दिन जब ऑपरेशन की सब तैयारी हो चुकी थी, मैं शांतिपूर्वक बिस्तर पर, पहिए वाले पलंग पर लेटी हुई थी और नर्सों ने मुझे धीरे से पलंग को चलाते हुए ऑपरेशन के कमरे की ओर ले जा रही थी। खुद ही खुलते हुए दरवाजे में जब मेरा पलंग धीरे से धकेला गया तो अपने सामने खड़े तीन व्यक्तियों के चेहरे को देख पाई जो मुझे ही देख रहे थे। वह मेरी आंखों में देख रहे थे मानो उनकी नजरें चुपचाप मुझसे कुछ कह रही हो। मेरे पति कह रहे थे कि तुम शीघ्र लौटोगी, क्योंकि वह मेरा इंतजार कर रहे होंगे। मेरा भाई कह रहा था कि उसे मुझ पर बहुत गर्व है। मेरी माँ मुस्कुरा कर शक्ति दे रही थी, यद्यपि उसकी भीगी आंखें बता रही थी कि उनकी दो जिंदगिया पति और पुत्री बराबर संकट में हैं।

मैंने दृढ़ता से सिर उठाकर मुस्कुराते हुए उनकी भावनाओं का अभिवादन किया और विश्वास दिलाया कि सब कुछ अच्छा ही होगा। यह सब कुछ, कुछ पलों में खामोशी से हो गया। मात्र एक दूसरे को हमने मानसिक शक्ति दी और तब हमारे बीच का दरवाजा बंद हो गया। उस क्षण मुझे दृढ़ विश्वास हुआ कि यह एक जंग थी, जो मैं अब जीत चुकी हूँ।

आज विनम्रतापूर्वक, गर्व से आपको बता रही हूं कि इस प्रकार के अनुभवों ने मेरा साहस परखा और दिनों-दिन बढ़ाया। ब्रह्मांड ने मुझे यह समझाया कि मुझ में मेरे जीवन की रचना करने की शक्ति है। मैं जिस प्रकार चाहूँ अपने जीवन को बना सकती हूँ। मैंने तो बस सहजता से अपनी बाहें फैलाई और इस सूचना को खुले दिल से स्वीकार किया। यही मेरे जीवन का पाठ है, जो मैं हर दिन अपने पुत्र को पढ़ाती हूँ कि वह मेरा बहादुर, हर जंग को जीतने वाला वीर है, जो मेरे ऑपरेशन के बाद अभी दो वर्ष पहले मैंने जन्मा है।

मेरे पुत्र की ईश्वर स्वरूप पवित्र आत्मा ही मुझे हर दिन याद दिलाती है कि मैं प्रभु की छाया में सुरक्षित, स्वास्थ्य तथा समृद्ध हूँ।

Kannika Jain


आर्टिकल को इंग्लिश में पढ़े – 

My Life, My Design!

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