देहरादून। जंगलों को आग से बचाने के लिए अंग्रेजों के जमाने की तकनीक अब जंगलों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने लगी है। फायर सीजन से पहले कंट्रोल बर्निंग के नाम पर वन विभाग की ओर से लगाई गई आग हर साल जंगलों को बड़ा नुकसान पहुंचा रही है।
वन विभाग जनवरी से जंगलों में आग लगाता है। वैसे तो ये आग जंगलों को बचाने के लिए लगाई जाती है, लेकिन अनुमान के मुताबिक हर साल वनाग्नि से होने वाले नुकसान में 20 फीसदी कंट्रोल बर्निंग से होता है।
वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल वनाग्नि की जितनी भी घटनाएं हुईं, उनमें करीब चार फीसदी कंट्रोल बर्निंग के लिए लगाई गई थी। अब विभाग में ही इसे लेकर सवाल उठने लगे हैं। इसके अलावा पर्यावरण प्रेमी भी इसे बंद करने की सिफारिश कर रहे हैं।
उनका कहना है कि ये बेहद पुराना तरीका है, जो कि फायदा कम और नुकसान ज्यादा कर रहा है। पर्यावरण प्रेमी अनिल कक्कड़ ने बताया कि इस मामले को लेकर वे जल्द ही एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालने की तैयारी में हैं। दून विवि के पर्यावरण वैज्ञानिक प्रो. विजय श्रीधर का कहना है कि जंगलों की आग पर्यावरण के लिए नुकसान दायक साबित हो रही है।
इससे वातावरण में ब्लैक कार्बन काफी बढ़ रहा है। आग चाहे लगी हो, इससे पर्यावरण में ब्लैक कार्बन जैसे घातक कण आ रहे हैं। एपीसीसीएफ वनाग्नि प्रबंधन निशांत वर्मा कहते हैं कि कंट्रोल बर्निंग जंगलों में फ्यूल लोड कम करने के लिए इस्तेमाल होता है।
कोशिश होती है कि जंगलों और पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो। इसे कम करने के लिए चीड़ के पिरूल से ब्रिकेट बनाने और अन्य पत्तों से खाद आदि बनाने को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
2024 में वनाग्नि से करीब दो हजार हेक्टेयर जंगल को नुकसान हुआ है। पिछले साल राज्य में बीस हजार हेक्टेयर जंगलों में कंट्रोल बर्निंग की गई। जिसमें बड़ी संख्या में पेड़, पौधे, झाड़ियां, सूखी लकड़ियों सहित वन संपदा का नुकसान हुआ। विभागीय आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल करीब सात हजार किलोमीटर की फायर लाइन में ही 12 हजार हेक्टेयर के आसपास कंट्रोल बर्निंग की गई। जिससे पर्यावरण को भी भारी नुकसान हुआ।