पता लिखने वाले कॉलम हमेशा
उसे मुँह चिढ़ाते
वो चाहती कि सिर्फ फोन नंबर से
ही आ जाया करें
लोग, राशन और दफ़्तर के कागज़ात
पर सबको पूरा पता चाहिए
पता बाद में लिख दूंगी कह कर
ऑफिस की फ़ाइल खिसका कर
ठंडी चाय के कसैलेपन को लोगों के सवालों सा
फिर लिया हलक़ में उतार
वो नीलकंठ नहीं हो सकती
वो अब भी रहेगी सीता या काली माई
पितृसत्ता के साज़िशों पर थोड़ा झल्लाई
पति और पिता जिनके दोनों लापता हों
उनका भी क्या कोई पता होता होगा!
उसे सबसे सुंदर घर वो लगते थे
जहाँ हों औरतों के नाम की लिखी तख्तियां
औरतों के नामों से रौशन हों जिनके खम्भों की बत्तियां
‘कविता आर्या’ने अपने घर पर
अपनी मां के नाम का पत्थर लगाया था
नेमप्लेट लगाना भी अकेली औरत के लिए भारी ज़ुर्रत का काम है
किसी सुबह पाए अपने नाम पर कालिख पुता हुआ
कुछ नहीं तो नाम के आगे रंडी जुड़ा हुआ
बड़ी आजादी है…बड़ी बराबरी है…
इस मुल्क़ में
तमाम ‘फेमिनायें’अपना भला कर रही हैं
पर कोई पते की बात नहीं करता
क्यों न औरतें पते को भी पति की तरह ही
छोड़ दें!
नए रिवाज़ो में शामिल
सबसे खूबसूरत रिश्ते
महज़ फोन नंबर और मेल आईडी में
बदले रिश्ते
क्या पता!यही रिश्ते इन लापता लोगो को
पता छोड़ने की उम्मीद दें!
गति उपाध्याय