गौरव अवस्थी
रायबरेली
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्थापित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का यह हीरक जयंती वर्ष है. आज ही के दिन 18 अप्रैल 1946 मैं हेग (अब नीदरलैंड) मैं अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना हुई थी. बहुत कम लोग जानतेे हैं कि यह अंतरराष्ट्रीय न्यायालय पहले “राष्ट्रीय न्यायालय” था. द्वितीय शांति सम्मेलन के बाद 1907 मैं इसका नाम अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार न्यायालय और 1922 मैं अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय कर दिया गया. राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना मैं देशों और स्वतंत्र रियासतों का नहीं बल्कि उस समय के यूरोप के विचारशील विद्वानों और दयालु लोगों का महत्वपूर्ण योगदान था. उन्हीं केेेे सम्मिलित प्रयाासों से राष्ट्रीय न्यायालय के गठन का रास्ता साफ हुआ था.
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने अब अंतरराष्ट्रीय न्याय के स्थाई न्यायालय का स्थान जरूर ले लिया है. आज 193 देश अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के निर्णयों को खुशी खुशी मानते हैं लेकिन लेकिन राष्ट्रीय न्यायालय के गठन के समय केवल 35 देशों या स्वतंत्र रियासतों ने इसे मान्यता प्रदान की थी. 50 देशों या रियासतों ने तब राष्ट्रीय न्यायालय के गठन के विचार के खिलाफ वोट दिए थे. हेग में राष्ट्रीय न्यायालय का भवन तब के दानवीर Andrue कार्नेगी द्वारा दिए गए ढाई लाख रुपए के दान से बना था. इसका नाम शांति निवास रखा गया था.
हेग में “राष्ट्रीय न्यायालय” का इतिहास
आपसी झगड़ों में होने वाले खून खराबा और युद्धों की तैयारियों में होने वाले लंबे चौड़े खर्च से बचने के लिए वर्ष 1899 मैं हेग में प्रथम शांति सम्मेलन मैं जर्मनी इंग्लैंड अमेरिका आदि राज्यों के शासकों का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए यूरोप के विद्वान, विचारशील और दयालु लोग आगे आए. प्रथम शांति सम्मेलन में बनी सहमति के बाद लंदन, ब्रूसेल्स, बुडापेस्ट क्रिस्चियानिया आदि नगरों में शांति सभाएं आयोजित कर खूब विचार किया गया. विचारशील पुरुषों की इन बातों पर गिरजाघरों में भी इस संबंध में उपदेश होने लगे. इसके बाद जर्मनी, फ्रांस, इटली, रूस, ऑस्ट्रिया-हंगरी, जापान, ग्रेट ब्रिटेन और अमेरिका की स्वतंत्र रियासतों के शासकों का ध्यान राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना की तरफ गया और 1902 दो में राष्ट्रीय न्यायालय अस्तित्व में आया.
राष्ट्रीय न्यायालय के भवन का नाम रखा गया “शांति निवास”
विचार विमर्श के बाद इन 8 देशों के शासकों को इस काम को सुव्यवस्थित रूप देने के लिए एक अच्छे दफ्तर की जरूरत महसूस हुई. इसके लिए हेग में राष्ट्रीय न्यायालय का भवन बनाया जाना तय हुआ. भवन के लिए जगतसेठ Andrue कार्नेगी ने ढाई लाख रुपए का दान दिया. वर्ष 1902 में इस रकम से एक में आलीशान इमारत तैयार हुई और इसका नाम “शांति निवास” रखा गया. आज इसी आलीशान इमारत में अंतरष्ट्रीय न्यायालय संचालित है. संयुक्त्त राष्ट्र संघ के 6 प्रमुुुख संस्थानों में अकेला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ही है जो अमेरिका के बाहर हेग ( नीदरलैंड) में स्थापित है.
35 राष्ट्र या राज्यों को पसंद आई थी स्थापना
8 राज्यों या स्वतंत्र रियासतों के सामूहिक निर्णय पर हेग में स्थापित राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना का विचार उस समय दुनिया भर के 35 राष्ट्र या राज्य को पसंद आया था. इन राज्यों ने राष्ट्रीय न्यायालय से अपने पारस्परिक झगड़े निपटाने स्वीकार किए. 50 राज्यों ने उस समय इस न्यायालय की दी हुई व्यवस्था मानना मंजूर नहीं किया. जिन 35 राज्यों और देशों ने राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना स्वीकार की उस समय उनकी आबादी 1,28,52,72,000 ( एक अरब 28 करोड़ 52 लाख 72000) थी और जिन 50 राष्ट्र या राज्य ने ऐसे न्यायालय की व्यवस्था माननी मंजूर नहीं की उनमें 16,74,36000 (16 करोड़ 70 लाख 36 हजार) लोग निवास करते थे. तब चार राज्यों ने राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना के संबंध में न ‘हां’ कहा और न ‘नहीं’. ऐसे देशों या राज्यों की कुल जनसंख्या 55,62,000 थी. ऐसा भी इतिहास बताया जाता है कि तब राष्ट्रीय न्यायालय के गठन के लिए दुनिया भर के देशों में रायशुमारी कराई गई थी. हालांकि सरस्वती में राष्ट्रीय न्यायालय पर प्रकाशित लेख में इसका कोई जिक्र नहीं है.
पहले राष्ट्रीय न्यायालय के यह थे नियम
राष्ट्रीय न्यायालय में कोई ऐसा नियम नहीं रखा गया कि विभिन्न राज्यों में आपस में जो संधिपत्र या दस्तावेज लिखे गए हैं, उन सबके संबंध के विवादों का निस्तारण इस न्यायालय से ही होगा. तब नियम बनाया गया कि कोई भी राज्य हर विवादों का निर्णय राष्ट्रीय न्यायालय से कराने को विवश नहीं किया जाएगा. राज्यों को यह छूट दी गई कि जिस विवाद का वह निपटारा राष्ट्रीय न्यायालय में कराना चाहते हैं उसकी सूची पहले से उपलब्ध करा दें ताकि बाद में कोई बखेड़ा न खड़ा हो. इस पर कई देशों और स्वतंत्र रियासतों ने अपने आपसी झगड़ों की सूची राष्ट्रीय न्यायालय को भेजी थी. इसमें-इंग्लैंड- 12, पुर्तगाल-10, स्विट्जरलैंड-10, इटली, नार्वे, स्पेन और फ्रांस ने 9-9, अमेरिका की संयुक्त रियासतों ने 7, रूस और हालैंड ने 4-4, ऑस्ट्रिया हंगरी ने तीन, अर्जेंटीना और मैक्सिको ने 2-2 बेल्जियम स्वीडन और डेनमार्क ने 8-8 जर्मनी ब्राजील ग्रीस पेरू और रोमानिया ने 1-1 झगड़े की सूची राष्ट्रीय न्यायालय को उपलब्ध कराई थी.
पहली पंचायत “केलिफोर्नियन पायस फंड” पर हुई
हेग में राष्ट्रीय न्यायालय गठन के बाद देशों और रियासतों के बीच झगड़े के संबंध में पहली पंचायत 1902 में ही हुई. “कैलिफोर्निया पायस फंड” से संबंध रखने वाले एक मामले के विषय में अमेरिका की संयुक्त रियासतों और ब्राजील के मध्य झगड़ा पैदा हो गया था. यह विवाद न्यायालय के सामने पेश हुआ और न्यायालय ने संयुक्त रियासतों के पक्ष में निर्णय किया. उसे दोनों पक्षों ने कबूल किया. इस तरह दोनों देशों के बीच युद्ध होना बच गया और दोनों देशों के बीच पैदा हुआ वैषम्य भी हमेशा के लिए दूर हो गया.
राष्ट्रीय न्यायालय में सुना गया दूसरा विवाद
राष्ट्रीय न्यायालय में दूसरा विवाद वेनेजुएला देश के संबंध में था. इस देश पर कई राज्यों का कर्ज था. इन राज्यों में ग्रेट ब्रिटेन, इटली और जर्मनी भी थे. सब राज्य अपना-अपना रुपया मांगने लगे पर उनमें से इन तीनों देशों ने बड़ा ही सख्त तकाजा शुरू किया. इसके चलते तीनों में लड़ाई की नौबत आने के लक्षण दिखने लगे. यह मामला शांति मंदिर को भेजा गया. फैसला इस बात का मांगा गया कि वेनेजुएला पर कई देशों का कर्ज है. सब अपना-अपना कर्ज पहले अदा करने का तकाजा कर रहे हैं. तीनों देश आपस में भिड़ने पर तैयार है. इस कारण से क्या यह न्याय होगा कि औरों का रुपया न देकर पहले इन्हीं तीनों का रुपया दे दिया जाए? मालूम नहीं इस मामले का क्या फैसला हुआ? जरूर सब पक्षों के अनुकूल हुआ होगा अन्यथा इस विषय की कोई विपरीत घटना जरूर ही घटित होती.
(सरस्वती-1 जनवरी 1911- से साभार)
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना का सार-संक्षेप
18 अप्रैल 1946 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्थापित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय को तब कुछ विकसित देश ही महत्व देते थे और उनके निर्णय को स्वीकार करते थे लेकिन 1980 के बाद विकासशील देशों ने भी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को महत्त्व देना शुरू किया और आपस के छोटे-मोटे झगड़ों को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के माध्यम से सुलझाने और निस्तारित करने पर बल दिया.
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रधान न्यायिक अंग है और संघ के छह मुख्य अंगों ( महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, न्याय परिषद तथा सचिवालय) में से एक है. आज के दौर में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का महत्व बहुत ही बढ़ गया है. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय मानने को अधिकांश देश मजबूर हो चुके हैं. यह इतिहास सब जानते हैं कि वर्ष 1943 में चीन सोवियत संघ अमेरिका और ब्रिटेन ने एक संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया जिसमें कहा गया कि सभी शांतिप्रिय राष्ट्रो की संप्रभुता एवं समानता के आधार पर एक अंतरराष्ट्रीय संगठन की स्थापना किए जाने की आवश्यकता है. यह अंतरराष्ट्रीय संगठन शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने के लिए सभी राष्ट्रों के लिए खुला होगा.
वर्ष 1945 में जी एच हैकवर्थ समिति (USA) को अंतरष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना के लिए मसौदा बनाने का कार्य सौंपा गया. सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन ने समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए एक नए न्यायालय की स्थापना के पक्ष में निर्णय लिया. इसके बाद 18 अप्रैल 1946 को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का उद्घाटन हुआ. अल सल्वाडोर के जोस गुस्तावो गूरेरो को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का प्रथम अध्यक्ष चुना गया. इसके साथ ही राष्ट्र संघ द्वारा 30 जनवरी 1922 को हेग में ही स्थापित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का अस्तित्व समाप्त हो गया. वर्ष 1907 में द्वितीय शांति सम्मेलन के बाद अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार न्यायालय ( इंटरनेशनल प्राइस कोर्ट) स्थापित हुआ था. अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार न्यायालय के कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय न्याय प्रशासन की कार्य प्रणाली एवं गतिविधि में काफी प्रगति हो ही चुकी थी. 15 वर्ष तक कार्य करने के बाद अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार न्यायालय अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में परिवर्तित हुआ था.
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