नवरात्रि शुरू हो गई है. पूरा भारत हर साल 10 दिनों तक शक्ति की देवी की उपासना करता है. पर क्या भारत एकमात्र देश है जहाँ देवी की पूजा होती है? नवरात्रि हिंदू धर्म में पवित्र देवियों की उपासना का त्योहार है जो अमूमन पूरे भारत में मनाया जाता है. मुख्य देवी के तौर पर शक्ति की देवी की उपासना होती है. माना जाता है कि दुनिया की हर चीज़ उन पर निर्भर है.
यह भी दावा किया जाता है कि भारत में महिलाओं को देवी का स्थान प्राप्त है. लेकिन यह दावा सच नहीं है कि भारत एकमात्र देश है जहां देवी की पूजा होती है. दुनिया भर में अधिकांश संस्कृतियों और सभ्यताओं ने किसी न किसी रूप में देवी की की पूजा होती है. लेकिन इसे आजकल नारीवादी नज़रिए से देखने का चलन शुरू हुआ है.
कुछ देवियां प्रेम और जीवन की प्रतीक हैं, कुछ दया, मुक्ति, समृद्धि की प्रतीक हैं और कुछ न्याय, युद्ध और विनाश की भी प्रतीक हैं. यह भी देखा गया है कि कुछ देवियों का कुछ देवताओं के महत्व में उल्लेखनीय योगदान है.
हालांकि, धर्म और आध्यात्मिकता में देवियों का स्थान, समाज में महिलाओं के स्थान की तुलना में बहुत अलग होता है.
फिर भी अक्सर इन देवी-देवताओं की कहानियां, उनके आस-पास जमा हुए मिथक भी उस जगह की लोक संस्कृति में महिलाओं के महत्व को दर्शाते हैं.
मिस्र की आइसिस और हाथोर
‘आइसिस’ को प्राचीन मिस्र में सबसे प्रमुख और सबसे शक्तिशाली देवी के रूप में जाना जाता है. आइसिस का सिर इस तरह दिखता है मानो उन्होंने गिद्ध के आकार का हेलमेट पहन रखा हो या गाय के सींगों के बीच सूर्य निकल आया हो. प्राचीन मिस्रवासियों की राय में आइसिस ने लोगों को खेती के तौर तरीक़ों के बारे में बताया. उन्हें पृथ्वी के देवता गेब और आकाश की देवी नट की बेटी के तौर पर देखा जाता है.
आइसिस को न्याय व्यवस्था, मातृत्व, जीवन और चिकित्सा की भी देवी भी माना जाता है. आइसिस की कहानियों में उनकी जादुई शक्तियों, उसके पति ओसिरिस के प्रति उनकी भक्ति और उनके बेटे होरस का उल्लेख है.
इस देवी की लोकप्रियता से लगता है कि उन्होंने ग्रीक और रोमन संस्कृति को भी प्रभावित किया है. कला के इतिहास में, शताब्दियों से हम ‘माँ और बच्चे’ के कई चित्रण देख सकते हैं. यह खूबसूरत पेंटिंग और मूर्तिकला में भी नज़र आता है. माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति आइसिस से हुई है. बेटे होरस को स्तनपान कराने वाली आइसिस की छवियां प्राचीन काल से जानी जाती हैं.
मिस्र में एक और देवी ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण हैं. उनका नाम ‘हाथोर’ है और उन्हें प्रेम, आनंद, संगीत और नृत्य का प्रतीक माना जाता है. उन्हें आकाश, संतानों की उत्पति और महिलाओं की देवी भी माना जाता है.
हाथोर का नाम मिस्र की रानी हत्शेपसट से जुड़ा है, जिन्हें अक्सर ज्ञात इतिहास में पहली महिला शासक के रूप में उद्धृत किया जाता है. हत्शेपसट पहली महिला शासक थीं और उन्होंने सिंहासन पर अपना अधिकार साबित करने के लिए हाथोर की बेटी होने का दावा किया था.
हाथोर को गाय के रूप में चित्रित किया गया है और कभी-कभी उनके प्रतीक के रूप में गाय की पूजा की जाती है. हाथोर कभी-कभी भारत में काली माता के समान एक योद्धा देवी, सेखमेट के अवतार के रूप में भी देखा जाता है.
ग्रीक और रोमन देवी
आपने इतिहास की किताबों में ग्रीस और रोम की सभ्यताओं के बारे में पढ़ा होगा या किसी संग्रहालय में उनके देवियों की मूर्तियां देखी होंगी. एथेना को ग्रीक संस्कृति में देवी माना जाता है. इस देवी को रोमन देवी मिनर्वा के साथ मिलाकर देखा जाता है. एथेना को ज्ञान, कला, युद्ध, देवताओं और संस्कृति, सभ्यता, न्याय और गणित की जननी माना जाता है.
एथेना को ग्रीक संस्कृति में देवी माना जाता है
ग्रीक पौराणिक कथाओं में एथेना को अक्सर सफ़ेद कपड़े पहने हुए दिखाया गया है. रात के अंधेरे में भी देखने की क्षमता रखने वाला उल्लू एथेना का प्रतीक है. इसी एथेना से यूनान की राजधानी का नाम ‘एथेंस’ पड़ा. ग्रीक देवी एफ़्रोडाइट को अभी भी प्रेम और काम इच्छा की देवी के रूप में जाना जाता है. इस देवी का उल्लेख मुख्य रूप से बसंत के आगमन से जुड़े त्योहारों में किया जाता है.
रोमन संस्कृति में उन्हें वीनस नाम मिला. वीनस को सबसे सुंदर देवी भी माना जाता है. वीनस के समुद्र मंथन से निकलने के चित्र बहुत प्रसिद्ध हैं.
अमेतरासु, जापान की सूर्य देवी
कई संस्कृतियों में, सूर्य को मर्दाना कहा जाता है या पुरुष रूप में देवता माना जाता है. लेकिन जापान के शिंटो धर्म में, सूर्य को एक देवी, अमातेरासु के रूप में दर्शाया गया है. माना जाता है कि वह स्वर्ग से चमकने वाली देवी हैं.
किवदंती के अनुसार, अमेतरासु का छोटा भाई सुजानो समुद्र और तूफ़ानों का देवता है. एक बार उनका झगड़ा हो गया और उसके बाद अमेतरासु जाकर एक गुफा में छिप गईं. इससे पूरी दुनिया में अंधेरा फैल गया. काफी अनुनय विनय के बाद ही वह बाहर आयीं और तब जाकर दुनिया में रोशनी हुई.
चीनी ताओवाद में, देवी कुआन यिन (गुआनिन) को ज्ञान और पवित्रता की देवी के रूप में जाना जाता है. उनके भक्तों का मानना है कि कमल में विराजमान कुआन यिन दयालु हैं और उनके हज़ार हाथ दया के प्रतीक हैं. उन्हें लोगों की मनोकामना पूरी करने वाली और बीमारियों को दूर करने वाली देवी के रूप में भी जाना जाता है. उन्हें भगवान बुद्ध के देवी अवतार के तौर पर भी देखा जाता है.
इश्तार, इनान्ना और इश्चेल
असीरियन और सुमेरियन सभ्यताओं का विकास मेसोपोटामिया (अर्थात वर्तमान इराक और सीरिया) में लगभग साढ़े चार हज़ार साल पहले हुआ था. इश्तार इस इलाक़े की प्रमुख देवी थीं जिन्हें कुछ लोग इनान्ना के नाम से भी पुकारते हैं जबकि कुछ लोगों के मुताबिक ये दोनों अलग-अलग देवियां थीं.
देवी इश्चेल
इश्तार और इनान्ना, दोनों ही इस क्षेत्र की प्रमुख प्राचीन देवी थीं. वे प्रेम, शक्ति और युद्ध की प्रतीक हैं. किंवदंती के अनुसार, आठ-बिंदु वाला तारा और शेर इश्तार देवी के प्रतीक हैं. वहीं मौजूदा मेक्सिको और मध्य अमेरिकी हिस्से की माया संस्कृति में भी, इश्चेल को प्रसव और युद्ध की देवी के रूप में पूजा जाता था.
उनके बारे में कहानियां आज के मेक्सिको और दक्षिण अमेरिका में सुनी जा सकती हैं. इश्चेल चंद्रमा से जुड़ी देवी हैं. उनके पंजे और कान जगुआर की तरह हैं, और वह अपने सिर पर सांप लपेटती हैं.
इसके अलावा, दुनिया की कई अन्य संस्कृतियों में, महिला देवताओं को अक्सर जल, पृथ्वी, अग्नि या प्रेम और क्रोध जैसे भावनाओं जैसे सिद्धांतों के देवी के रूप में पूजा जाता है. लेकिन धर्म और अध्यात्म में देवी-देवताओं का स्थान और समाज में महिलाओं के साथ व्यवहार हर जगह एक जैसा नहीं होता.