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सातवें चरण में एनडीए को लग सकता है झटका, कैसे बिगड़ गया जातीय समीकरण?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
28/05/24
in बिहार, राजनीति
सातवें चरण में एनडीए को लग सकता है झटका, कैसे बिगड़ गया जातीय समीकरण?
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नई दिल्ली। बिहार में सातवें या अंतिम चरण में 8 सीटों पर 1 जून को चुनाव है। ये सारी सीटें 2019 में एनडीए ने जीती थीं। लेकिन, इस बार मगध-शाहाबाद इलाके में सत्ताधारी गठबंधन को बदले हुए जातीय समीकरणों की वजह से मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

जब इस साल लोकसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिर से पलटी मारकर अपना जेडीयू लेकर एनडीए में वापस हो गए तो लग रहा था कि एनडीए ने जातीय राजनीति से तय होने वाली बिहार की सियासत पर फिर से अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। लेकिन, राजनीति में दो और दो हमेशा चार ही हो जाए, इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती।

काराकाट के समीकरण ने कुशवाहा समाज को किया नाखुश!

बीजेपी ने कुशवाहा समाज के सम्राट चौधरी को प्रदेश में पार्टी का कमान दिया। फिर उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक मोर्चे को अपने साथ लिया। बाद में जब नीतीश भी आ ही गए तो लगा कि अब कुशवाहा जाति का वोट एनडीए के लिए पक्का हो गया है। लेकिन, काराकाट लोकसभा सीट पर ऐसा समीकरण बना कि सत्ताधारी खेमे को इस वोट बैंक को अपने साथ जोड़े रखने के लिए अभी नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं।

पवन सिंह की उम्मीदवारी ने बढ़ा दी एनडीए की चिंता

बिहार में राजनीति के जानाकारों को लगता है कि बीजेपी ने भले ही उपेंद्र कुशवाहा को काराकाट सीट से एनडीए प्रत्याशी बनाया हो, लेकिन भाजपा से एक भी कुशवाहा को टिकट नहीं मिलने से इस जाति में उसके प्रति एक तरह मायूसी पैदा हुई है। ऊपर से काराकाट में भाजपा के पूर्व नेता और भोजपुरी अभिनेता पवन सिंह ने निर्दलीय ताल ठोकर उनकी मायूसी को और भी बढ़ा दिया है।

हालांकि, बीजेपी ने पवन सिंह को पार्टी से निकाल दिया है, लेकिन माना जा रहा है कि अभी तक राजपूत वोटरों का दिल उनके लिए ही धड़क रहा है। ऐसे में कुशवाहा समाज में एक यह भावना पैदा हुई है कि पवन सिंह सिर्फ उपेंद्र कुशवाहा को हराने के लिए मैदान में उतरे हैं और बाद में बीजेपी में शामिल हो सकते हैं।

काराकाट का असर कई और सीटों पर पड़ने की आशंका

अगर 1 जून या मतदान वाले दिन तक एनडीए की ओर से इस डैमेज को कंट्रोल नहीं कर लिया गया तो इसका असर आरा, जहानाबाद, बक्सर और पाटलिपुत्र लोकसभा सीटों पर भी पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता।

जहानाबाद सीट पर बिगड़ ने जाए एनडीए का गणित!

इसी तरह से जहानाबाद लोकसभा सीट के बारे में कहा जा रहा है कि यहां भूमिहारों का एक वर्ग जेडीयू के मौजूदा सांसद चंद्रेश्वर चंद्रवंशी से नाखुश है। ऐसे में उनके बारे में चर्चा है कि वह बसपा प्रत्याशी अरुण कुमार या निर्दलीय आशुतोष कुमार का समर्थन कर सकते हैं। यही वजह है कि भाजपा की टॉप लीडरशिप अंतिम चरण में मुश्किल होती जा रही सीटों पर डैमेज कंट्रोल के लिए पूरा जोर लगा रही है।

यहां एक बात और गौर करने वाली है कि सातवें चरण की 8 में से 5 सीटें 2019 में बीजेपी ने और 3 जेडीयू ने जीती थी। लेकिन, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में इस इलाके में आरजेडी की अगुवाई वाले महागठबंधन अपना जलवा दिखा चुका है। हालांकि, विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मतदान का पैटर्न एक हो यह जरूरी नहीं है।

पाटलिपुत्र में भी एकतरफा नहीं लग रही लड़ाई

पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से बीजेपी ने लगातार तीसरी बार पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव को उतारा है। लालू के पूर्व करीबी को तीसरी बार भी टक्कर देने के लिए आरजेडी ने पार्टी सुप्रीमो की बड़ी बेटी मीसा भारती को ही उम्मीदवार बनाया है।

मनोवैज्ञानिक रूप से दो-दो बार लालू की बेटी को हराने, स्थानीय होने और मोदी फैक्टर की वजह से भाजपा प्रत्याशी का मनोबल यहां स्वाभाविक रूप से ऊंचा है। लेकिन, जानकारी ये भी है कि उनकी उम्मीदें राजद में भीतरघात की संभावनाओं पर भी टिकी हुई हैं।

बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व लगातार झोंक रहा है ताकत

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को पाटलिपुत्र, बक्सर और काराकाट में रैलियां कर चुके हैं। शुक्रवार को गृहमंत्री अमित शाह भी एनडीए उम्मीदवारों के लिए आरा और जहानाबाद में सभा करके गए हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी लगातार बिहार दौरे पर आ रहे हैं और सभाएं कर रहे हैं।

कुल मिलाकर इस दौर में एनडीए की चुनावी संभावनाएं अब बहुत हद तक मोदी फैक्टर पर ही निर्भर लग रही हैं। क्योंकि, सिर्फ इसी से आखिरी उम्मीद है कि अंतिम वक्त में भी सभी जातीय समीकरणों का गुणा-गणित ठीक किया जा सके।

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