पटना। बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने मंगलवार को विधानपरिषद के लिए फिर अपना नामांकन दाखिल कर दिया. उनका विधान परिषद सदस्य चुना जाना तय है. 11 रिक्त सीटों में जेडीयू के हिस्से में जो दूसरी सीट आनी है उससे खालिद अनवर चुने जाएंगे. यह लगातार चौथा मौका होगा जब नीतीश कुमार एमएलसी बनेंगे. सबसे खास बात ये है कि अब तक नीतीश कुमार नौ बार सीएम पद की शपथ ले चुके हैं, लेकिन एक बार भी विधायक रहते हुए सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठे, हर बार उन्होंने विधान परिषद को ही चुना. एक बार फिर नीतीश कुमार वही करने वाले हैं.
सुशासन बाबू के तौर पर पहचाने जाने वाले नीतीश कुमार बिहार की सत्ता पर लगातार 20 साल से काबिज हैं, जीतनराम मांझी को सीएम बनाकर नीतीश ने 278 दिन के लिए सीएम की कुर्सी छोड़ी जरूर लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता की बागडोर खुद ही थामे रहे थे. इतने सालों में नीतीश ने अपनी छवि एक विकास पुरुष के तौर पर स्थापित की, लेकिन चुनाव में उतरने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. राजनीतिक विशेषज्ञ इसके पीछे कारण उस सदमे को मानते हैं जो उन्हें 2004 के चुनाव में लगा था. आइए समझते हैं कि आखिर इतने साल बिहार के सीएम रहने के बावजूद नीतीश कुमार चुनाव में क्यों नहीं उतरते?
जनता पार्टी से की थी सक्रिय राजनीति की शुरुआत
नीतीश कुमार ने सक्रिय राजनीति की शुरुआत 1977 में जनता पार्टी से की थी. मूल रूप से नालंदा जिले से ताल्लुक रखने वाले नीतीश कुमार के पिता पेशे से वैद्य थे. एनआईटी पटना से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही वह राजनीति में सक्रिय हुए और जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. इस आंदोलन में नीतीश के साथी बिहार के कद्दावर नेता लालू प्रसाद यादव और सुशील कुमार मोदी थे. 1977 में ही वह जनता पार्टी से जुड़े और चुनावी राजनीति में किस्मत आजमाई. हालांकि लगातार दो बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
1985 में पहली बार बने विधायक
नीतीश कुमार पहली बार 1985 में विधायक बने थे, उस समय उन्होंने हरनौत विधानसभा सीट से चुनाव जीता था. नीतीश कुमार के हौसले बुलंद थे, पार्टी ने भी भरोसा जताया और 1989 में लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर नीतीश कुमार ने केंद्र की राजनीति में कदम रखा. 1994 में नीतीश कुमार ने जनता दल को अलविदा कहकर जॉज फर्नांडिस के साथ समता पार्टी का गठन किया. इसके बाद 1999 तक लगातार चुनाव जीता और एनडीए सरकार में रेल मंत्री बने. हालांकि एक बड़ी रेल दुर्घटना के बाद नीतीश को इस्तीफा देना पड़ा. 2003 में तीन दल, समता पार्टी, जनता दल और लोक शक्ति पार्टी ने विलय कर जनता दल यूनाइटेड का गठन किया.
जब बने पहली बार सीएम
नीतीश कुमार की किस्मत सन् 2000 में बदली जब एनडीए ने उन्हें बिहार के सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट किया. वह 7 दिन सीएम रहे. विश्वास मत हासिल न कर पाने पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और राबड़ी देवी प्रदेश के सीएम बन गईं. यह वो दौर था जब बिहार जंगलराज के दौर से गुजर रहा था. ऐसे में बिहार की नजर नीतीश कुमार पर थी. नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति पर फोकस किया और 2005 में जेडीयू भाजपा गठबंधन की सरकार बनी.
20 साल पहले लगा था वो सदमा
नीतीश के चुनाव में न उतरने की प्रमुख वजह वो सदमा है जो उन्हें 20 साल पहले लगा था. दरअसल नीतीश कुमार आखिरी बार 2004 में लोकसभा चुनाव में उतरे थे. यह वो चुनाव था जिसमें नीतीश कुमार दो सीटों पर चुनाव लड़े थे. दरअसल नीतीश कुमार 1989 से लेकर 1999 तक लगातार बाढ़ लोकसभा सीट से चुनाव जीत रहे थे, इस लोकसभा क्षेत्र से उनका गहरा नाता रहा था, लेकिन 2004 में उन्हें अहसास हुआ कि इस बार शायद यहां से उनकी एमपी की कुर्सी खतरे में है. ऐसे में नीतीश कुमार बाढ़ के साथ-साथ नालंदा सीट से भी चुनाव मैदान में उतरे. नीतीश का डर सच साबित हुआ और वह बाढ़ लोकसभा सीट से चुनाव हार गए. 2005 में जब वह सीएम बने तब वह नालंदा सीट से सांसद थे, उन्होंने यह सीट छोड़ दी और विधानपरिषद से चुने गए, तब से लगातार वह विधान परिषद के सदस्य हैं.