पटना : साथ चले सात महीने भी नहीं हुए कि बिहार के महागठबंधन से ऐसे संकेत मिलने शुरू हो गए हैं, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू का नेतृत्व इस समय जॉब फॉर लैंड केस में सीबीआई की पूछताछ का सामना कर रहे आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव के परिवार से हाथ छुड़ाता दिख रहा है।
सोमवार को रेलवे में नौकरी के बदले जमीन लिखवाने के मामले में पूर्व सीएम राबड़ी देवी से करीब पांच घंटे की सीबीआई पूछताछ के बाद मंगलवार को लालू यादव से भी पूछताछ हो गई है, लेकिन अब तक सीबीआई के एक्शन पर जेडीयू से कोई रिएक्शन नहीं आया है। ना तो नीतीश कुमार ने कुछ कहा है और ना ही जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने। ले-देकर केसी त्यागी ने सोमवार को एक बयान दिया कि उनकी पार्टी को जांच से दिक्कत नहीं है, लेकिन उसका नतीजा निकलना चाहिए।
ललन सिंह ने मंगलवार को डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का एक ट्वीट शेयर किया है, जिसमें तमिलनाडु में बिहार के लोगों की पिटाई को लेकर तमिलनाडु बीजेपी के उपाध्यक्ष ने ये कहा है कि अफवाह बिहार बीजेपी ने फैलाई। लेकिन ललन सिंह ने सीबीआई की पूछताछ पर कुछ नहीं कहा है। नेता जेडीयू में और भी हैं जो बोलते हैं, बयान देते हैं, लेकिन वो सब भी खामोश हैं। यह खामोशी प्रयोग है या संयोग, इसका जवाब ललन सिंह ही दे सकते हैं।
2017 में जब महागठबंधन पहली बार टूटा था तब भी रेलवे में नौकरी के बदले जमीन के मामले को लेकर ही डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव घिरे थे और तब नीतीश ने कहा था कि आरोप पर सफाई आनी चाहिए। बात ये थी कि नीतीश उस समय तेजस्वी यादव का इस्तीफा चाहते थे, लेकिन लालू इसके लिए तैयार नहीं थे। नीतीश ने रास्ता बदल लिया और फिर से बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया।
अगस्त 2022 में बिहार में जब जेडीयू एनडीए को छोड़कर महागठबंधन में आ गई थी और बहुमत परीक्षण से पहले आरजेडी के कई नेताओं पर छापा पड़ा था, तब ललन सिंह ने कहा था कि सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स बीजेपी के तोते हैं और वो इनसे डरते नहीं हैं।
10 दिन पहले पूर्णिया में विपक्षी एकता के गीत गा रहे थे नीतीश और तेजस्वी
सीबीआई की टीम जब समन के बाद राबड़ी देवी के दिए समय पर पूछताछ के लिए सोमवार को उनके आवास पर पहुंची तो आरजेडी के कार्यकर्ता बाहर प्रदर्शन कर रहे थे, नारेबाजी कर रहे थे। जेडीयू के कैंप से उनको कोई समर्थन नहीं मिला। ना नेता का, ना कार्यकर्ता का। जबकि दोनों पार्टियों के नेता दस दिन पहले ही पूर्णिया में रैली करके सड़क पर साथ में संघर्ष करने का विपक्षी एकता गीत गा रहे थे।
सात महीने पुरानी महागठबंधन सरकार में कई मौके पर जेडीयू और आरजेडी एक-दूसरे के पीछे खड़े नजर आए हैं। आरजेडी के मंत्री रहे सुधाकर सिंह या मौजूदा मंत्री चंद्रशेखर के बयान पर विवाद में भले दोनों पार्टी के बीच तनाव बना रहा लेकिन केंद्रीय राजनीति या बीजेपी विरोध की राजनीति में दोनों एक-दूसरे के बयान के साथ बने रहते थे।
यह पहला मौका है जब आरजेडी का प्रथम परिवार सीबीआई के लपेटे में है और जनता दल यूनाइटेड का कोई नेता खुलकर नहीं बोल रहा है। वैसे जेडीयू ने दिल्ली के डिप्टी सीएम रहे मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद पीएम नरेंद्र मोदी को लिखे विपक्षी नेताओं की चिट्ठी से भी खुद को दूर रखा है।
यह याद दिला दें कि दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने एक समय नाम लिए बिना नीतीश की विपक्षी दलों की एकजुटता की कोशिशों को लेकर कहा था कि बीजेपी को हराने का ठेका आपने कैसे ले लिया, बीजेपी को जनता हराएगी।
वैसे, पिछले एक सप्ताह में नीतीश को एक राहत मिली है कि तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने की तारीख बता रहे आरजेडी के नेता और विधायक शांत हो गए हैं। थोड़ी शांति शायद इससे भी आई है कि नीतीश ने खुद ही सार्वजनिक कर दिया कि अलग-अलग मसलों को लेकर उनकी गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से बात हुई है। नीतीश चाहते तो गोपनीय रख सकते थे लेकिन बता गए कि बीजेपी लीडरशिप से उनकी बात होती रहती है। और अब सीबीआई के एक्शन पर जेडीयू नेतृत्व का कोई रिएक्शन नहीं है।
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जेडीयू से कल को ये भी कहा जा सकता है कि इस चुप्पी का मतलब नहीं निकाला जाए, लेकिन राजनीति में बेमतलब ना कोई बोलता है, ना चुप रहता है। नीतीश ने शाह और राजनाथ से बातचीत को जाहिर किया, इसका भी एक मतलब है। सीबीआई पूछताछ पर वो नहीं बोल रहे तो उसका भी मतलब है। जेडीयू की यही खासियत है कि हर चीज का मतलब एक को ही पता रहता है, नीतीश कुमार। जब तक खुद नीतीश मतलब ना बता दें, तब तक कोई माने-मतलब का हिंट देने का भी रिस्क नहीं लेता है।