पटना: केंद्रीय बजट में बिहार की बल्ले-बल्ले हो गई है। नीतीश कुमार के अलावा जेडीयू के नेता काफी खुश हैं। इसके अलावा प्रदेश के लोग भी खुश हैं। उधर, नीतीश कुमार ने विपक्ष पर अपने हमले तेज कर दिए हैं। नीतीश कुमार विपक्ष की खुल कर आलोचना कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने अबकी बार 225 सीट का नारा दे कर विपक्षी दलों को मनोवैज्ञानिक वार में उलझाते हुए बिहार विधानसभा का चुनावी बिगुल फूंक दिया है। हालांकि, नीतीश कुमार ने पीएम नरेंद्र मोदी की राह ही पकड़ी है। वह भी इसलिए कि नंबर गेम में विपक्ष न केवल उलझा रहे बल्कि वोटिंग के दिन तक 225 सीट का दबाव भी झेलता रहे।
एनडीए का चुनावी इतिहास
सत्ता का इतिहास एनडीए का अक्टूबर 2005 के साथ पुख्ता हुआ। तब जदयू 139 सीटों पर लड़ कर 88 सीटें जीती। वहीं भाजपा 102 सीटों पर लड़ कर 55 सीटें जीती। और तब कुल 143 विधायकों की संख्या के साथ सत्ता सुख भोगा। वर्ष 2010 में जदयू के लिए स्वर्णिम काल रहा। तब जदयू 141 सीटों पर लड़ी और 115 सीटें जीती। भाजपा तब 102 सीटों पर लड़ी और 91 सीटें जीती। कुल 206 विधायकों के बल पर सरकार चलाई। वर्ष 2015 में जदयू ने राजद के साथ गठबंधन बना डाला। इस बार एनडीए में भाजपा के साथ लोजपा, रालोसपा और हम पार्टी साथ थी। तब सरकार महागठबंधन की बनी। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू एक बार फिर एनडीए में शामिल हुआ। तब भाजपा को 74, जदयू को 43, वीआईपी और लोजपा को चार-चार सीटों पर जीत मिली। कुल 125 विधायकों के साथ सरकार चलाई।
वर्ष 2025 का चुनावी जंग
अभी तक आगामी विधानसभा चुनाव 2025 एनडीए के प्लेटफार्म से भाजपा, जदयू, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के साथ लड़ने जा रही है। अभी तक सीटों को ले कर बंटवारा नहीं हुआ है। पर जीतनराम मांझी। ने नंबर गेम की राजनीति करते 25 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की। लगे हाथों नीतीश कुमार ने भी एनडीए की बैठक में अबकी बार वर्ष 2010 में हासिल 206 सीटों के मुकाबले 225 का टारगेट फिक्स कर मनोवैज्ञानिक बाजी मार ली। विपक्ष को अभी से तनाव दे दिया है। बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए ज्यादा से ज्यादा सीटों पर विजयी होगा, इसका टारगेट पहले ही नीतीश कुमार ने दे दिया।
वोटरों पर नंबर का दबाव
दरअसल, पूरी चुनाव प्रक्रिया भी फेज वाइज एक युद्ध की तरह है। और नंबर गेम की यह राजनीति खास कर नए वोटर, युवा वोटर और नए कार्यकर्ताओं के दिमाग पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह बात एनडीए के रणनीतिकार बेहतर समझ रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में नरेंद्र मोदी का 400 पार का नारा भी उसी साइकोलॉजिकल वार की सतह पर खेली गई सियासी बाजी थी। इस नंबर को छूने के लिए सभी मंत्रियों को 100 दिन का कार्यक्रम बनाकर क्षेत्र में भेजने का भी काम किया। दरअसल, इस मनोवैज्ञानिक वार का एक निहितार्थ यह भी है कि वोटरों में भी उत्साह हो और वे मतदान केंद्र तक पहुंचे।
विपक्ष पर दबाव बनाने का खेल
हालांकि, नीतीश कुमार ने 225 का नारा देने के पहले ही पेंडिंग पड़े कार्यों का लेखा- जोखा भी लेना शुरू कर दिया था। वह भी विभिन्न रूपों में। कहीं अधिकारियों पर उग्र रूप से बरसे तो कहीं आग्रह से काम चलाया। और 2025 से पहले कार्य कराने के लिए अधिकारियों का पैर तक छूने को राजी होते दिखे। यह सब विपक्ष को इतना दबाव में लाने की रणनीति के तहत है कि उसके रणनीतिकार सरकार बनाने के बदले इस बात पर आ टिके कि ज्यादा से ज्यादा सीटें कैसे हासिल हो।