जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है. पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर की देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अच्छी खासी प्रसिद्धि देखने को मिलती है. साल 2024 के पहले दिन 1 जनवरी से ही मंदिर में हॉफ पेंट, फटी जींस, स्कर्ट और बिना आस्तीन वाले कपड़े पहनकर आने वाले श्रद्धालुओं पर रोक लगा दी है. मंदिर पदाधिकारियों ने ड्रेस कोड लागू किया है. वहीं, पुरुषों को धोत-गमछा पहनकर प्रवेश करना होगा. वहीं, महिलाएं साड़ी, सलवार-कमीज आदि पहनकर ही मंदिर में प्रवेश कर पाएंगी.
12 वीं सदी का ये मंदिर अपने कई रहस्यों के लिए बहुत फेमस है, जो अभी तक राज ही बना हुआ है. मंदिर से जुड़ी कई ऐसी कहानियां हैं, जो अभी तक एक रहस्य बनी हुई हैं. ऐसा माना जाता है कि मंदिर के ऊपर से कोई विमान नहीं उड़ा सकता. इतना ही नहीं, पक्षी भी ऊपर उड़ते हुए डरते हैं. आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ रहस्यों के बारे मे.
समुद्र की लहरों की आवाज
बताया जाता है कि जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करते ही समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई नहीं देती. लेकिन जैसे ही कोई व्यक्ति मंदिर से बाहर आता है, तो लहरों की आवाज फिर से सुनाई देने लगती है. ऐसी कहा जाता है कि देवी सुभद्रा की ये इच्छा थी कि मंदिर में प्रवेश करते ही लोगों का मन शांति हो जाए.
मंदिर के ऊपर नहीं उड़ते पक्षी
वैसे तो पक्षियों के लिए आसमान में कोई सीमा या बाधा नहीं है. लेकिन ऐसा कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से न तो कोई पक्षी उड़ सकता है और न ही कोई विमान. इस रहस्य को मंदिर से जुड़ा रहस्य माना जाता है, और लोगों को आज तक इसका कारण नहीं चल पाया है.
मंदिर की छाया
जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा एक रहस्य ये भी है कि जगन्नाथ मंदिर की छाया दिखाई नहीं देती. अगर मंदिर पर सूर्य की रोशनी पड़ती भी है, तो इसकी छाया नजर नहीं आती. ये भी एक प्रकार का रहस्य है, जो मंदिर से जुड़ा है. इस रहस्य का पता अभी नहीं लगाया जा सका है.
जगन्नाथ मंदिर का चक्र
ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के ऊपर जो चक्र लगा हुआ है, वे तकरीबन एक टन का है. लेकिन इस चक्र से जुड़ा रहस्य ये है कि जो कोई भी इसे देखेगा, यह उसी तरफ मुड़ा दिखाई देगा. ऐसा बताया जाता है कि मंदिर के इस चक्र को 12 वीं सदी के लोगों ने लगाया था.
प्रसाद से जुड़ा है रहस्य
जगन्नाथ मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन को आते हैं. वहीं, रथ यात्रा के दौरान भी श्रद्धालु लाखों की संख्या में यहां पहुंचते हैं. इतनी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने पर प्रसाद न तो कम पड़ता है और न ही उसकी बर्बादी होती है.