देहरादून। यदि उत्तराखंड में गैर मुसलमान परिवारों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूल के बजाय मदरसों में भेजना पड़ रहा है तो यह निश्चित रूप से उत्तराखंड सरकार और उसकी शिक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है, यह कहना है उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी का।
रविवार को कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकारों के साथ वार्ता के दौरान दसौनी ने यह बात कही। दसौनी ने कहा कि देखा जाए तो मदरसों में शिक्षा या तो मदरसा बोर्ड या वक्फ बोर्ड के माध्यम से प्रदान की जाती है और यह दोनों ही सरकार के अधीन है ऐसे में यदि प्रदेश में ऐसे हालात उत्पन्न हो गए हैं कि गैर मुस्लिम परिवारों को अपने बच्चे मदरसों में पढ़ाई के लिए भेजने पड़ रहे हैं तो निश्चित रूप से यह उत्तराखंड सरकार के लिए आत्म अवलोकन का समय है।
दसौनी ने कहा कि यह है उत्तराखंड भाजपा का नया हिंदुत्व मॉडल। गरिमा मेहरा दसौनी ने कहा कि निश्चित रूप से उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि आज यदि राज्य के 30 मदरसों में 749 हिंदू बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे है, और कुल छात्रों की संख्या 7399 है तो इसका मतलब दस प्रतिशत छात्र ग़ैर मुस्लिम है।
ये बच्चे ग़रीब परिवारों से है पर सवाल ये है कि क्या उत्तराखंड में शिक्षा के अधिकार क़ानून का पालन ठीक से नहीं हो रहा है ? यदि होता तो इन बच्चों को किसी न किसी विद्यालय में दाखिला मिला होता।
दसौनी ने कहा की वैसे तो उत्तराखंड के प्रमुख सचिव अल्पसंख्यक कल्याण एल फेनई को राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने 9 नवंबर को शाम 4 बजे तलब किया है, पर क्या शिक्षा मंत्री को तलब नहीं किया जाना चाहिए। दसौनी ने कहा की भाजपा के दावे और ज़मीनी हक़ीक़त में बड़ा फ़ासला है।
जिस राज्य में 2017 से यानी पिछले सात सालों से भाजपा का शासन है और हिंदुत्व की बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं वहां यह नया खुलासा निश्चित रूप से सरकार की स्थिति और राज्य की शिक्षा व्यवस्था बताने के लिए काफी है।