भांग में कई तरह के औषधीय गुण पाए जाते है, जिससे इसका उपयोग बहुत सी चीजों को बनाने में होता है. वहीं, आपको जानकर हैरानी होगी कि भांग वार्निस इंडस्ट्री में बड़ी अहममियत रखती है. इसके बीजों के तेल का यूज वार्निश उद्योगों में अलसी के तेल के विकल्प के तौर पर होता है.
साबुन के निर्माण में भी भांग का उपयोग किया जाता है. इसमें मौजूद कई तरह के औषधीय गुण साबुन को मुलायम बनाते हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कृषि में स्वदेशी तकनीकी ज्ञान की अपनी लिस्ट में भांग के विभिन्न उपयोगों को डॉक्यूमेंट किया है.
भांग का पौधा मुख्य रूप से गंगा के मैदानी इलाकों जैसे हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में पाए जाते हैं. देश के अलग-अलग राज्यों में इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे तेलुगु में गंजाई, तमिल में गांजा और कन्नड़ में बंगी कहते हैं. बंजर भूमि पर भी बड़े आराम से उगने वाली भांग से मुख्य तौर पर तीन तरह के उत्पाद फाइबर, तेल और नशीले पदार्थ बनते हैं.
भांग की राख से जानवरों को होने वाली कई बीमारियों के इलाज किया जाता है. आईसीएआर के अनुसार जानवरों में हेमेटोमा बीमारी में भांग की राख कारगर है. इस बीमारी में खून के थक्के जम जाते हैं, इसलिए इसकी राख उनकी त्वचा पर लगाई जाती है.
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा के छोटा/बड़ा भंगाल और मंडी जिले के करसोग में इसकी खेती होती है. इससे मिलने वाले फाइबर और बीज के लिए राज्य भांग की नियंत्रित खेती की मंजूरी देती है. फसल के सूखने के बाद बीजों को इकट्ठा कर तने और शाखाओं से रेशे अलग कर लिए जाते हैं. ये रेशा जूट से भी ज्यादा मजबूत होता है.
आईसीएआर केअनुसार जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले के सोलकी क्षेत्र के किसानों द्वारा धान की नर्सरी में थ्रेडवर्म को कंट्रोल करने के लिए भांग के पौधे इस्तेमाल में लिए जाते हैं.
मधुमक्खी के काटने पर भांग का इस्तेमाल किया जाता है. ततैया या मधु मक्खी के काटने से हुई सूजन वाली जगह पर भांग की पत्तियों को गर्म कर पेस्ट बनाकर इसे लगाया जाता है. फिर कपड़े से लपेट देते हैं. इससे जलन और दर्द से राहत मिलती है.