पुणे की दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगभग 82 किलोमीटर की दूरी पर, रोहिडखोरे की भोर तहसील में, सह्याद्रि की सुरम्य वादियों के बीच, समुद्र तल से लगभग 4694 फीट ऊंचाई पर घने जंगलों में श्री रायरेश्वर गढ़ स्थित है। यह हिन्दवी स्वराज्य का दुर्ग नहीं है, परंतु सह्याद्रि की यही वह पवित्र पहाड़ी है, जो हिन्दवी स्वराज्य के शुभ संकल्प की साक्षी बनी। सह्याद्रि की पर्वत शृंखलाओं में सांय-सांय करती हवा पर कान धरा जाए तो आज भी वीर बालक शिवा की प्रतिज्ञा की वह गूंज सुनी जा सकती है, जिसने धर्मद्रोही मुगलिया सल्तनत को उखाड़ फेंक दिया था।
श्री रायरेश्वर के विस्तृत पहाड़ पर वह प्राचीन शिवालय आज भी है, जहाँ एक किशोर ने अपने कुछ मित्रों के साथ ‘स्वराज्य’ की शपथ ली, जिसकी कल्पना करना भी उस समय कठिन था। मुगलिया सल्तनत के अत्याचारों के चलते हिन्दू आत्म विस्मृत हो चला था। उसके मन में यह विचार ही आना बंद हो गया था कि यह भारत भूमि उसकी अपनी है। वह यहाँ मुगलों की चाकरी क्यों कर रहे हैं? देश में गो-ब्राह्मण, स्त्रियां और धर्म सुरक्षित नहीं रह गया था। हिन्दू समाज को इस अंधकार से बाहर निकालने और उसके मन में एक बार फिर आत्मगौरव की भावना जगाने का संकल्प शिवाजी महाराज ने लिया था। हम कह सकते हैं कि हिन्दवी स्वराज्य की संकल्पना का यहीं प्रथम उद्घोष हुआ।
प्रकृति के अनेकविध रूपों का दर्शन करानेवाले सह्याद्रि के रमणीय उतुंग शिखर पर स्वयंभू महादेव विराजे हैं। नानाप्रकार के पुष्पों के पौधे एवं लताएं, यहाँ सघन वन का सौंदर्य बढ़ाती हैं। विविध प्रकार के पक्षियों के कलरव से भी मन का आनंद बढ़ता है। सोच कर हैरान था कि एक किशोर अपने साथियों के साथ पुणे से इस दुर्गम पठार पर स्थित शिवालय में संकल्प के लिए आया। उस समय शिवाजी 15-16 वर्ष के किशोर थे। उनके साथ बारह मावल प्रांतों से कान्होजी जेधे, बाजी पासलकर, तानाजी मालुसरे, सूर्याजी मालुसरे, येसाजी कंक, सूर्याजी काकडे, बापूजी मुदगल, नरसप्रभू गुप्ते, सोनोपंत डबीर भी थे। वीर बालक शिवाजी ने स्वयंभू श्री रायरेश्वर महादेव के समक्ष इन सिंहसमान महापराक्रमी मावलों के मन को कुछ इस तरह झकझोरा होगा- “मुगलों की पराधीनता हम कब तक सहेंगे? चंद जागीरों की खातिर हम कब तक धर्म पर घात होने देंगे? गो-ब्राह्मण और स्त्रियों पर अत्याचार आखिर कितने दिन तक सहते रहेंगे? मैं अब यह सब नहीं सह सकता। मैंने एक संकल्प कर लिया है”।
शिवाजी के ओजस्वी वाणी से मावलों में एक तरंग दौड़ गई होगी और उन्होंने कहा होगा कि महाराज अपनी इच्छा प्रकट कीजिए। जैसा आप कहेंगे, हम वैसा ही करेंगे। हाँ, हम वैसा ही करेंगे। मावलों के इस प्रकार के उत्तर से निश्चित ही महाराज उत्साहित हुए होंगे और उन्होंने कहा होगा, तो आओ, हम सब महादेव श्री रायरेश्वर के समक्ष प्रतिज्ञा करें कि “हम अपना राज्य स्थापित करेंगे। अब से हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना ही हमारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य होगा। हम सब प्रकार के कष्ट उठाएंगे, प्रत्येक परिस्थिति में हम एक-दूसरे का साथ देंगे। श्री रायरेश्वर को साक्षी मानकर हम प्रतिज्ञा करते हैं कि स्वराज्य की स्थापना के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देंगे”। वीर शिवाजी ने ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की संकल्पना में अपने साथियों के विश्वास को और पक्का करने के लिए कहा कि यह मेरी इच्छा नहीं है अपितु “हिन्दवी स्वराज्य ही श्रींची इच्छा”। अर्थात् यह हिन्दवी स्वराज्य की इच्छा ईश्वर की इच्छा है।
ओजस्वी वाणी के कंपन और शुभ संकल्प की ऊर्जा से शिवालय का वातावरण प्रेरक हो गया था। मावलों के मन में यह बात बैठ गई कि हिन्दवी स्वराज्य का सपना किसी एक शिवाजी का नहीं है, यह हम सबका सपना है और हम ईश्वरीय कार्य के काम आनेवाले रणबांकुरे हैं। वीर बालक शिवा ने 26 अप्रैल 1645 को श्री रायरेश्वर महादेव का अभिषेक अपनी अंगुली के रक्त से करके हिन्दवी स्वराज्य के संकल्प के प्रति अपने समर्पण को प्रकट किया और महादेव का आशीर्वाद लिया। इस शपथ विधि के बारे में स्वयं शिवाजी महाराज ने ही 1645 में अपने एक राजमुद्रांकित पत्र में उल्लेख किया है।
श्री रायरेश्वर में शंभुमहादेव के सामने कसम खाने की रोहिड़खोरे में पुरानी परिपाटी थी। अपनी श्रीशिव छत्रपति दुर्ग दर्शन यात्रा के दौरान जब हम अपने मित्रों के साथ श्री रायरेश्वर पहुंचे तो हमने भी हिन्दवी स्वराज्य की प्रतिज्ञा भूमि श्री रायरेश्वर के पवित्र प्रांगण में छत्रपति शिवाजी महाराज का पुण्य स्मरण कर, उसी दिव्य शिवलिंग के समक्ष प्रतिज्ञा की- “मैं अपने दायित्वों को पूरी निष्ठा से निभाऊंगा, पर्यावरण के संरक्षण हेतु तत्पर रहूँगा एवं दूसरों को भी आग्रह करूंगा, भोजन का एक कण भी व्यर्थ नहीं होने दूंगा, भारतीय उत्पादों के उपयोग को वरियता दूंगा, अन्याय का सदैव प्रतिकार करूंगा, भारतीय कालगणना का स्मरण करूंगा, देश का गौरव का बढ़े ऐसा काम करूंगा, भारतीय समाज के हित में कार्यरत रहते हुए निरंतर राष्ट्रधर्म का पालन करूंगा। भारत माता की जय। हिन्दू धर्म की जय। छत्रपति महाराज की जय”। हमने श्री रायरेश्वर महादेव से आशीर्वाद माँगा कि इस प्रतिज्ञा के निर्वहन का सामर्थ्य प्रदान करे।
हिन्दवी स्वराज्य की प्रतिज्ञा की स्मृति को बनाए रखने के लिए श्री रायरेश्वर मंदिर के प्रथम मण्डप में एक बड़ा चित्र लगा है, जिसमें महादेव के समक्ष शिवाजी महाराज को अपने साथियों के साथ प्रतिज्ञा कर रहे हैं। गर्भगृह में आज भी वह शिवलिंग स्थापित है, जिनके समक्ष प्रतिज्ञा करके शिवाजी सोये हुए समाज को जगाने निकल पड़े थे। गर्भगृह में लघु आकार का दिव्य शिवलिंग प्रकाशमान है। यहाँ भी सामने की दीवार पर हिन्दवी स्वराज्य की प्रतिज्ञा को प्रदर्शित करता बड़े आकार का चित्र है। इस स्थान पर मन में अध्यात्म का भाव जगाने के साथ ही साहस देनेवाली ऊर्जा की अनुभूति होती है।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं।)