अगर कोई प्रोडक्ट बंद हो गया है, तो अब उसके स्पेयर पार्ट्स नहीं मिल पाएंगे. आने वाले दिनों में ऐसा जवाब इलेक्ट्रॉनिक्स (Electronics) और ऑटोमोबाइल (Automobiles) क्षेत्र की कंपनियां नहीं दे पाएंगी. क्योंकि कंपनियों को ग्राहकों को बताना होगा कि अमुक उत्पाद का मॉडल पांच साल तक के लिए वैध है या यूं कहें कि किसी कार, फ्रिज, एयर कंडीशन या घड़ी के मॉडल की एक्सपायरी डेट (Expiry Date) क्या है. जैसे खाद्य उत्पादों या दवाइयों पर मुहैया कराई जाती है. ऐसे में ग्राहक खुद को ठगा हुआ महसूस नहीं करेंगे और कंपनियां भी मनमर्जी नहीं कर सकेंगी.
केंद्र सरकार जल्द अमेरिका, यूरोपीय संघ के देशों की तर्ज पर राइट टू रिपेयर का नियम लागू करेगी. ताकि अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कंपनियों के अचानक मॉडल बंद करने की कारगुजारी से भारतीय ग्राहकों को बचाया जा सके. यही नहीं सरकार यह भी तय करेगी कि मॉडल बंद किए जाने के कितने साल बाद तक कंपनी बेचे हुए उत्पाद को ठीक करेगी देगी, यानी प्रोडेक्ट पर सर्विस कब तक मुहैया कराएगी या फिर उसके स्पेयर पार्ट्स बाजार में उपलब्ध रहेंगे.
उदाहरण के आपने एक डिजिटल वॉच खरीदी, जिसकी एक साल की वॉरंटी मिली और डेढ़ साल बाद वह खराब हो गई. जब ऑप वॉच कंपनी के सर्विस सेंटर पहुंचे तो पता चला मॉडल बंद हो गया. ऐसे में कंपनी उसे ठीक करने से इंकार कर देगी और आपकी महंगी घड़ी कबाड़ हो गई, क्योंकि कंपनी के पास दो टूक जवाब है कि उसने स्पेयर पार्ट्स बनाने बंद कर दिए. ऐसे में भारत में जुगाड़ तंत्र लोग अपनाते हैं, लेकिन हकीकत ये हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे कंपनियों का जिम्मेदारी से पीछे हटना कहते हैं. वाणिज्य मंत्रालय की सिफारिश पर उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा तैयार किया जा रहा राइट टू रिपेयर नियम लागू होने पर कंपनियों का पीछे हटना संभव नहीं होगा.
कंपनियों पर लागू किया जाएगा राइट-टू-रिपेयर नियम
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के मुताबिक राइट-टू-रिपेयर के नियम कंपनियों पर अनिवार्य तौर पर लागू किया जाएगा. ऐसे में मोबाइल, गैजेट्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल, ऑटोमोबाइल कंपनियां और कृषि क्षेत्र के मशीनी उपकरणों पर भी यह नियम लागू होंगे. मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक यह कदम आम लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण और सुविधाजनक होगा.
मंत्रालय राइट टू रिपेयर नियमों को लागू करने के लिए एक वेबसाइट शुरू करेगा. इसमें हरेक प्रोडेक्ट के संबंध में कंपनियों को सर्विस और मॉडल की एक्सपायरी की जानकारी देनी होगी. साथ ही कंपनियों को अपने सर्विस सेंटर और सेल्फ रिपेयर के मैन्युअल भी उपलब्ध कराने होंगे. शिकायत होने पर उपभोक्ता नियमों के तहत कार्रवाई और उसके साथ ही न्यायिक समीक्षा का भी हकदार होगा.
जानिए क्या है राइट टू रिपेयर | What is Right to Repair Kya Hai
राइट-टू-रिपेयर एक ऐसे अधिकार अथवा कानून को संदर्भित करता है, जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को अपने स्वयं के उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत करना और उन्हें संशोधित करने की अनुमति देना है, जहां अन्यथा ऐसे उपकरणों के निर्माता उपभोक्ताओं को केवल उनके द्वारा प्रस्तुत सेवाओं के उपयोग करने की अनुमति देते हैं.
जब ग्राहक कोई प्रोडक्ट खरीदते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि उनके पास उस वस्तु पर पूर्ण स्वामित्व हो जाता है, जिसके लिये उपभोक्ताओं को मरम्मत हेतु निर्माताओं द्वारा आसानी से और उचित लागत पर उत्पाद की मरम्मत और संशोधन करने में सक्षम होना चाहिये. राइट-टू-रिपेयर का विचार मूल रूप से अमेरिका से उत्पन्न हुआ था, जहां मोटर व्हीकल ओनर्स राइट-टू-रिपेयर एक्ट, 2012 किसी भी व्यक्ति को वाहनों की मरम्मत करने में सक्षम बनाने के लिये वाहन निर्माताओं के लिये सभी आवश्यक दस्तावेज और जानकारी प्रदान करना अनिवार्य बनाता है.
इस नियामक ढांचे के तहत निर्माताओं के लिये अपने उत्पाद विवरण को ग्राहकों के साथ साझा करना अनिवार्य होगा ताकि वे मूल निर्माताओं पर निर्भर रहने के बजाय स्वयं या तीसरे पक्ष द्वारा उनकी मरम्मत करा सकें. कानून का उद्देश्य मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) और तीसरे पक्ष के खरीदारों तथा विक्रेताओं के बीच व्यापार में सामंजस्य स्थापित करने में मदद करना है, साथ ही इस प्रकार नए रोजगार का सृजन भी करना है.