नई दिल्ली। भारत अगले 10 साल के लिए चाबहार पोर्ट को अपने हाथों में लेने के लिए तैयार हो गया है. भारत के केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल एग्रीमेंट पर साइन के करने के लिए सोमवार को ईरान के लिए रवाना हो सकते हैं. यह पहली बार होगा कि जब भारत विदेश में किसी पोर्ट को मैनेज करेगा. इस पोर्ट के माध्यम से भारत पाकिस्तान और चीन के मंसूबों पर भी नजर रख सकेगा. चाबहार को इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपार्ट कोरिडोर से जोड़ने की भी योजना है जो भारत को ईरान के रास्ते रूस से डायरेक्ट कनेक्ट करेगा.
पाकिस्तान और चीन पर रखी जा सकेगी नजर
इस बंदरगाह को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और बड़े यूरेशियन क्षेत्र के लिए भारत की प्रमुख कनेक्टिविटी लिंक के रूप में देखा जाता है, जो पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के साथ-साथ चीन की बेल्ट एंड रोड पर नजर बनाए रखने में मदद करेगा. चाबहार को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) से जोड़ने की योजना है जो भारत को ईरान के जरिए रूस से जोड़ता है. बता दें कि यह बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए सक्षम बनाएगा. इसके लिए अब पाकिस्तान की जरूरत नहीं पड़ेगी.
विदेश मंत्रालय ने अप्रैल में बंगाल की खाड़ी में म्यांमार के सिटवे बंदरगाह पर परिचालन संभालने के लिए इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. विशेषज्ञों का कहना है कि सोनोवाल एक महत्वपूर्ण चुनाव अभियान के दौरान यात्रा कर रहे हैं, जो पिछले कुछ वर्षों से बन रहे समझौते के महत्व को दर्शाता है. यह समझौता भारत को उस बंदरगाह को चलाने में सक्षम बनाएगा, जिसके विस्तार के लिए उसने फंड का मैनेजमेंट किया है. ऐसे समय में यह डील हो रहा है, जब पश्चिम एशिया में संकट की स्थिति देखने को मिल रही है.
पहले भी होता रहा है इसका जिक्र
लंबे समय से चले आ रहे संबंध पिछले साल अगस्त में दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में और बाद में नवंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ईरानी राष्ट्रपति के बीच बातचीत में चाबहार मैनेजमेंट का रास्ता निकलकर सामने आया है. जब उन्होंने गाजा संकट पर फोन पर बात की. 2016 में मोदी की ईरान यात्रा के दौरान भी इस पोर्ट का जिक्र किया गया था. उस समय भी चाहबहार को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. 2018 में जब ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति हसन रूहानी ने भारत का दौरा किया था, तब बंदरगाह पर भारत की भूमिका के विस्तार का मुद्दा प्रमुखता से उठा. यह तब भी सामने आया जब विदेश मंत्री एस जयशंकर जनवरी 2024 में तेहरान में थे.