गौरव अवस्थी
नई दिल्ली। इस हेडलाइन को पढ़ने के बाद आपके मन में स्वाभाविक तौर पर एक सवाल उपजा होगा, आखिर वह कौन है? पढ़ाई लिखाई की उम्र में ऐसा कौन है जो मंच पर पहली बार दिखा और सभा में मौजूद लोगों के मन मस्तिष्क में उसका रूप और भाव भंगिमा छा गई। पहली बार मंच पर दिखने के 11 साल बाद वही शख्सियत फिर एक मंच को साझा करती है और सार्वजनिक रूप से अपना पहला भाषण देकर चुनाव की बाजी ही पलट देती है। सिर्फ इतना पढ़ने के बाद ही आपकी व्यग्रता उस शख्सियत के नाम को लेकर और बढ़ ही गई होगी। आपको याद नहीं आ रहा है न! चलिए, बता ही देते हैं।
यह शख्सियत भारतीय राजनीति में प्रियंका गांधी के नाम से जानी जाती है। उनका हेयर स्टाइल, लंबी नोकदार नाक, भाषण के तेवर और बॉब कट बाल। लोग प्रियंका में इंदिरा का अक्स देखते हैं। इसीलिए लोग उन्हें ‘दूसरी इंदिरा’ मानते हैं।1988 में प्रियंका गांधी को आश्चर्यजनक रूप से एक मंच पर लोगों ने पहली बार देखा। मंच पर दिखने के 4 साल पहले दादी इंदिरा गांधी की हत्या और 3 साल बाद पिता राजीव गांधी का बलिदान। इसके 8 साल बाद तक प्रियंका को फिर कहीं किसी ने नहीं देखा।
पति राजीव गांधी की शहादत के बाद सोनिया गांधी ने लंबे अंतराल तक 10 जनपद से बाहर नहीं झांका। राजनीति से भी दूरी बनाए रखी लेकिन नेताओं कार्यकर्ताओं के अनुनय-विनय पर उन्होंने कांग्रेस को मजबूत करने के लिए 1999 में राजनीति में कदम रखा। अमेठी से चुनाव लड़ने को तैयार हुईं। प्रियंका सार्वजनिक रूप से दुबारा अमेठी में तभी दिखीं लेकिन पर्दे के पीछे चुनाव मैनेजर के रूप में। अमेठी में अपने मजबूत चुनावी प्रबंधन कौशल से प्रियंका गांधी ने सबको हैरान कर दिया। दादी के नैन नक्श वाली प्रियंका ने लोगों में उसी साल इससे बड़ी हैरानी रायबरेली के चुनावी सभाओं के दौरान पैदा की।
1999 में ही पिता राजीव गांधी के बाल सखा कैप्टन सतीश शर्मा रायबरेली से भाग्य आजमा रहे थे। भाजपा से सामने थे खानदान के अरुण नेहरू। वह तारीख थी 29 सितंबर। हमेशा मुस्कुराते रहने वाली प्रियंका का चेहरा उस दिन गुस्से से लाल था। उनके भाषण की पहली ही लाइन थी-‘ परिवार की पीठ में छुरा घोंपने वाले गद्दार (अरुण नेहरू) को आपने रायबरेली में घुसने कैसे दिया?’ बस इस एक वाक्य से रायबरेली में कांग्रेस की हारी हुई बाजी जीत में बदल गई। उस एक दिन में प्रियंका ने 20 छोटी बड़ी चुनावी सभाएं कीं। करीब 200 किलोमीटर लंबी दूरी तय की। महज 25 साल की उम्र में रायबरेली में अपना पहला सार्वजनिक भाषण देकर प्रियंका ने तभी रायबरेली के लोगों के दिलों में स्थाई स्थान बना लिया। यह राज आज तक कायम है।
तमाम खूबियों वाली प्रियंका तब लोगों के और आकर्षण का केंद्र बन जाती हैं जब पिता के हत्यारे को वह माफी देती हैं। सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में व्यस्तता के बावजूद मां सोनिया गांधी के लिए खुद को अच्छी बेटी और बच्चों ( रेहान एवं मिराया) के लिए अच्छी मां के रूप में पेश करती हैं। तभी तो रायबरेली में मंच पर मां सोनिया गांधी के गाल पर चिकोटी काटती दिखती हैं और चुनाव में मतदान के बाद बच्चों को रिक्शे पर लेकर घूमने भी निकल पड़ती हैं। बेटी और मां ही नहीं बहन के रोल में भी प्रियंका प्रियंका ही हैं। भाई राहुल के लिए ही वह अब तक अपने को चुनावी राजनीति से अपने को दूर रखती चली आ रही हैं।
राजनीति में कांग्रेस के इस नाजुक मुकाम और हर तरफ से चुनाव लड़ाने की डिमांड के बावजूद सक्रिय चुनावी राजनीति में उतरने के सवाल को मां और भाई के निर्णय पर छोड़कर प्रियंका गांधी अपनी परिपक्वता का परिचय देती हैं। कोई कितने ही आक्षेप उन पर लगाए लेकिन प्रियंका गांधी के पास हर आरोप और सवाल का जवाब हर वक्त अपनी ‘मधुर मुस्कान’ में मौजूद रहता है। इसीलिए लोगों को यकीं है कि यह मुस्कान ही कांग्रेस का वक्त बदलेगी और देश की राजनीति भी। अब जब गांधी परिवार की तीसरी पीढ़ी की प्रतिनिधि के तौर पर प्रियंका गांधी वायनाड से चुनावी राजनीति की शुरुआत करने जा रहीं हैं तब जनसभाओं की तरह संसद भी उनके तेवर वाली स्पीच सुन सकेगी। सिर्फ हमें ही नहीं देश के करोड़ लोगों को विश्वास है कि भाई-बहन की यह जोड़ी संसद के अंदर भी कमाल दिखाएगी।