कोरोना काल ने पूरे देश व विश्व का हिलाकर रख दिया है। हर व्यक्ति और सरकारें आर्थिक तंगी की मार झेल रहे हैं। कोरोना के इस भयावह दौर में खत्म होती इंसानियत और संक्रमण के खौफ के बीच एक शख्स ऐसा भी है, जिसने इंसानियत को भी मरने नहीं दिया है जो जरूरतमंदों के लिए देवदूत बन गए हैं। ऐसी शख्सियत हैं नवी मुंबई के उत्तराखंड भवन वाशी में संपत्ति अधिकारी के रूप में कार्यरत ओमप्रकाश बडोनी जी l जिन्होंने कोरोना वायरस के बढते खौफ और अस्पताल में दम तोड़ते लोगों को बेड से लेकर ऑक्सिजन, दवाई से लेकर एंबुलेंस जैसी तमाम तरह की सुविधा मुहैया करवा सरकारी सेवा के साथ मानवता की ऊंची मिसाल कायम की है l ओमप्रकाश बडोनी जी ने कोरोना काल में जहां मुंबई में फंसे हजारों लोगों को उनके गांव तक पहुंचाने की राह आसान की वहीं, जरूरतमंदों को राशन, भोजन बांटकर उनकी समस्याएं कम की l
पारिवारिक पृष्ठभूमि
राज्य संपत्ति अधिकारी ओमप्रकाश बडोनी जी की पारिवारिक पृष्ठभूमि सैन्य परिवार से होने के कारण उन्हें देश सेवा व जनसेवा के संस्कार बचपन में घर से ही मिले हैं. पिता स्व. श्री दयानंद बडोनी जी सेना में रहे हैं और संयुक्त परिवार की जिम्मेदारी पिता जी कंधों पर होने के होने के कारण ओमप्रकाश बडोनी जी की प्राथमिक शिक्षा भी टिहरी जनपद के गांव बुड़ाकोट, पट्टी चंद्रबदनी में हुई.
बचपन में ही पड़ाई में कुशाग्र बुद्धि के कारण ओमप्रकाश बडोनी जी ने कक्षा 5वीं में 18 स्कूलों को टाप कर पहला स्थान हासिल किया. ओमप्रकाश बडोनी जी कक्षा 5वीं में पढ़ाई में इतना बुद्धिमान थे कि 5वीं की किताबें सब कंठस्थ रट डाली थी और अपनी किताब उस गरीब सहपाठी को दान कर दी जो किताबें खरीदने में सक्षम नहीं था. 5वीं में बेटे के टाप करने की बात सेना में कार्यरत उनके पिता ने अपने सहयोगियों को बात बताई. उनके कर्नल साहब को यह बात पता चली तो उन्होंने अपने हवलदार के बेटे को मथुरा लाने की सलाह दी और ओमप्रकाश बडोनी जी का 1970 में कक्षा 6 में केंद्रीय विद्यालय मथुरा में प्रवेश दिला दिया.
6ठी की एक साल की पड़ाई में ओमप्रकाश बडोनी जी ने केंद्रीय विद्यालय मथुरा में अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान हासिल कर लिया, किंतु 1971 की लड़ाई के कारण स्व. श्री दयानंद बडोनी जी की ड्यूटी लड़ाई में लग गई और ओमप्रकाश बडोनी जी को फिर अपने गांव बुड़ाकोट वापस लौटना पड़ा. यहां फिर 7वीं की पढ़ाई गांव से 5 किलोमीटर दूर हिंडोलाखाल स्कूल से की. लेकिन तब बार बार बदलते स्कूलों के कारण पढ़ाई पर इसका प्रभाव पढ़ने लगा और पिता ने यह बात समझकर ओमप्रकाश बडोनी जी को अपने रिश्तेदारों के यहां भेजकर कक्षा 8वीं में गौचर में भर्ती करा दिया. ओमप्रकाश बडोनी जी यहां भी सिर्फ 1 साल रहे और कक्षा 9वीं में देहरादून आ गए. फिर देहरादून में पढ़ाई जारी रही और यहीं से मास्टर आफ साइंस की पढ़ाई करने के बाद पर्यटन में डिप्लोमा किया.
गढ़वाल मंडल विकास निगम में सेवा, राज्य निर्माण में भी अहम योगदान
पर्यटन में डिप्लोमा करने वाले ओमप्रकाश बडोनी जी 1989 में गढ़वाल मंडल विकास निगम में जनसंपर्क अधिकारी के रूप में शामिल हुए और 1993 तक दिल्ली में सेवा के बाद फिर गढ़वाल मंडल विकास निगम जयपुर में रहकर यहां आने वाले पर्यटकों को उत्तराखंड की तरफ मोड़ा. ओमप्रकाश बडोनी जी जयपुर के बाद गढ़वाल मंडल विकास निगम लखनऊ में 1999 में पदासीन हुए और इसी दौर में नवंबर 2000 में उत्तर प्रदेश से अगल होकर उत्तराखंड राज्य निर्माण हुआ. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बीच बंटवारे के दौरान गढ़वाल मंडल विकास निगम लखनऊ के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी थी, यहीं से प्रत्येक विभाग की पत्रावलियां अलग अलग कर उत्तराखंड भेजी गई.
ओमप्रकाश बडोनी जी ने बताते हैं कि अपने राज्य अलग होने की इतनी खुशी थी कि हम दिन रात इस कार्य को करते कभी थके नहीं. गढ़वाल मंडल विकास निगम के कर्मचारियों ने इस दौर में दिन रात कार्य कर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों की पत्रावलियों को छांटकर लगभग 60 हजार से भी अधिक उत्तराखंड की पत्रावलियों को कई गाड़ियों में उत्तराखंड भेजा. इस प्रकार से उत्तराखंड राज्य के लिए उस समय गढ़वाल मंडल विकास निगम लखनऊ में कार्यरत कर्मचारियों का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. अपने उत्कृष्ट कार्य के लिये वर्ष 1992, एवं 2016 में शीर्ष प्रबंधन से प्रशस्ति पत्रों से भी सम्मानित किया गया l मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा भी मुम्बई के कार्यों की सराहना की गई l
चारधाम यात्रा यात्रा के जरिए राज्य की आर्थिकी सुधारने में भी योगदान
लखनऊ के बाद ओमप्रकाश बडोनी जी उत्तराखंड राज्य संपत्ति विभाग में लौटे. यहां मुख्यसचिव के ओएसडी पद पर रहने के बाद उत्तराखंड की आर्थिकी सुधार के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले पर्यटन विभाग के लिए ओमप्रकाश बडोनी जी को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भेजा गया, जहां से बडोनी जी ने उत्तराखंड पर्यटन और चारधाम यात्रा के लिए करोड़ों का बिजनेस देकर राज्य की आर्थिकी सुधारने में अपना अहम योगदान दिया, जो लगातार जारी है. ओमप्रकाश बडोनी जी बताते हैं कि हमारा ध्येय उत्तराखंड के पर्यटन को बढ़ाने के पीछे यही रहता है कि एक पर्यटक जब उत्तराखंड जाता है तो वहां पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों को इसका सीधा लाभ होता है.
मुंबई में सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियों में भी निभाई सक्रिय भागीदारी
ओमप्रकाश बडोनी जी उत्तराखंड के पर्यटन बढ़ाने के साथ ही मुंबई में लाखों उत्तराखंडियों के बीच सामाजिक सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिए उत्तराखंड की लोक संस्कृति के प्रचार प्रसार व संरक्षण के लिए भी कार्य कर रहे हैं. मुंबई में सबसे पहले कौथिग महोत्सव की नींव रखकर प्रवासी उत्तराखंडियों के सफल सांस्कृतिक आयोजन का श्रेय भी बडोनी जी को जाता है. तत्कालीन पर्यटन मंत्री स्व. प्रकाश पंत जी के सहयोग से मुंबई में पहला भव्य कौथिग आयोजित हुआ, जिसमें उत्तराखंड से लगभग 140 विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग एवं 700 के करीब कलाकारों ने महारास्ट्र् की धरती पर उत्तराखंड की सांस्कृतिक छटा बिखेरी.
नवी मुंबई में उत्तराखंड भवन का सपना साकार करने किए अथक प्रयास
ओमप्रकाश बडोनी जी ने मुंबई में उत्तराखंड की लोक संस्कृति के प्रचार प्रसार के साथ ही लाखों प्रवासी उत्तराखंडियों की भावना के प्रतीक उत्तराखंड भवन के लिए भी अथक प्रयास किए. पूर्व विधायक गणेश गोदियाल जी की संकल्पना और सतत प्रयास को ओमप्रकाश बडोनी जी ने वाशी नवी मुंबई में उत्तराखंड भवन के रूप में साकार करने में प्रमुख भूमिका निभाई.
उत्तराखंड भवन को बनाने ओमप्रकाश बडोनी जी उत्तराखंड सरकार, महाराष्ट्र शासन और नवी मुंबई शहर को बसाने वाले सिडको के बीच अहम कड़ी बने और इस संदर्भ में सैकड़ों बार सिडको और महाराष्ट्र शासन के सरकारी कार्यालयों की विजिट की. सिडको द्वारा उत्तराखंड भवन के लिए अच्छे लोकेशन वाले भूखंड के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख से भी मिले. इस दैरान सालों तक निर्माण कार्य नहीं होने के कारण उत्तराखंड भवन भूखंड पर बड़ी राशि का टैक्स माफ करा कर भी बडोनी जी ने उत्तराखंड सरकार का धन बचाया. अंतत: बडोनी जी व उत्तराखंड सरकार के अथक प्रयास से श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी ने इस भव्य इमारत का लोकार्पण कर मुंबई में उत्तराखंड भवन का सपना साकार किया.
कोरोना की पहली लहर में उत्तराखंड भवन बना गरीबों का सहारा
प्रवासी उत्तराखंडियों के भावना का प्रतीक वाशी नवी मुंबई में उत्तराखंड भवन अपने लोकार्पण के बाद ही उत्तराखंड के पर्यटन विकास और उत्तराखंडियों की सेवा के लिए समर्पित है. इस भवन में राज्य संपत्ति आधिकारी के रूप में व्यस्थापन और कामकाज का जिम्मा ओमप्रकाश बडोनी जी पर है. नवी मुंबई में उत्तराखंड भवन बनकर तैयार हुआ था कि पिछले साल कोरोना की पहली लहर ने हाहाकार मचा दिया. मुंबई में बड़ी संख्या में उत्तराखंड के लोग जो अस्थाई नौकरियों, होटल आदि में काम करते थे ट्रेनें बंद होने से मुंबई में ही फंस गए. इस दौर में उत्तराखंड भवन मुंबई नवी मुंबई में ऐसे मजबूर, गरीब लोगों का सहारा बना और हालातों से निपटने उत्तराखंड सरकार व महाराष्ट्र के बीच सेतु बनकर लोगों के लिए राशन, भोजन की व्यवस्था के साथ ही उत्तराखंड के लिए स्पेशल ट्रेने चलावा कर लोगों की मदद की गई.
इस दौरान हर कोई गांव भागने की जल्दी में था और उत्तराखंड सरकार ने भी लाकडाउन की हालातों में अपने राज्यवासियों की मदद के लिए अपने अधिकारियों को हर मोर्चे पर सक्रिय कर दिया था. कोरोना काल में मुंबई में बड़ी संख्या में प्रवासियों के फंसे होने के कारण उत्तराखंड भवन एक तरह से नियंत्रण कक्ष में तब्दील हो गया और आईएएस सचिन कुर्वे, डा. के.एस. पंवार, जनसंपर्क अधिकारी ओमप्रकाश बडोनी, प्रबंधक चंद्रशेखर लिंगवाल आदि ने उत्तराखंड भवन में दिन रात कार्य कर प्रवासियों को सुरक्षित गांव पहुंचाने, जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध कराने में अपनी जिम्मेदारी का पालन किया. इस दौरान मुंबई में फंसे लोगों की सेवा के साथ ही उत्तराखंड में कोरोना के उपचार में लगे स्वास्थ्यकर्मियों के लिए पीपीई किट भी सबसे पहले मुंबई से भेजे गए.
पिता की अंत्येष्टि के दिन भी कर रहे थे लाकडाउन में फंसे लोगों की सेवा
ओमप्रकाश बडोनी जी बताते हैं कि इस दौरान 14 अप्रैल 2020 को उनके पिता का देहांत हो गया और वे पिता की अंत्येष्टि के लिए हरिद्वार गए. लेकिन मुंबई में फंसे लोगों को स्पेशन ट्रेनों से उनके घर तक पहुंचाने और जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी इतनी बड़ी थी कि जब एक तरफ पिता की चिता जल रही थी और दूसरी तरफ ओमप्रकाश बडोनी बगल में पेड़ के नीचे बैठकर मोबाइल से ही मुंबई की व्यवस्थाओं को निपटाने में लगे थे. ओमप्रकाश बडोनी ने पिता के स्वर्गवास होने के शोक के बावजूद प्रवासियों के प्रति अपनी संवेदना और दायित्वों का सफल निर्वहन किया.
उत्तराखंड अब भवन से दिला रहे सरकार को लाखों का राजस्व
कोरोना में जब उत्तराखंड का पर्यटन तीर्थाटन चौपट हो गया ऐसे दौर में उत्तराखंड भवन मुंबई ने करीब 27 लाख का राजस्व बटोरा. वाशी में यह भवन महाराष्ट्र सरकार ने क्वारंटाईन सेंटर के रूप में लिया और इसके एवज में 27 लाख के राजस्व के साथ 32 व लाख का भवन कर भी माफ होने से उत्तराखंड सरकार का धन बचाया. उत्तराखंड पर्यटन के लिए भवन के कार्यालय से 45 लाख से सवा करोड़ के व्यवसाय की बुकिंग थी, जो कोरोना के कारण कैंसिल हुई, जिसमें कुछ बुकिंग स्थगित होकर आगे के लिए सुरक्षित हैं. नवी मुंबई के इस भवन में गढ़वाल मंडल विकास निगम के कार्यालय में अधिकतर बुकिंग या पूछताछ चारधाम यात्रा, औली, चौपता और ट्रेकिंग से संबंधित आती हैं.
50 से ज्यादा लोग भवन में रहकर करा चुके हैं कैंसर का इलाज
उत्तराखंड भवन में कार्यरत सभी स्टाफ का शत प्रतिशन कोरोना वैसीनेशन किया गया है. उत्तराखंड भवन नवी मुंबई की भव्य इमारत में दो कमरे उत्तराखंड से कैंसर का इलाज कराने मुंबई आने वाले लोगों के लिए रिर्जव हैं. इन कमरों में उत्तराखंड का कोई भी व्यक्ति संपत्ति विभाग की अनुमति लेकर 15 दिनों के लिए कैंसर के इलाज के दौरान निशुल्क रह सकता है. भवन बनने के बाद उत्तराखंड के करीब 50 से ज्यादा लोग यहां रहकर सरकार की इस सुविधा का लाभ ले चुके हैं.
उत्तराखंड भवन में उत्तराखंड के हस्तशिल्प, आर्गेनिक उत्पाद, फिल्म डिविजन और इंडस्ट्रीयल इन्वेस्टमेंट के कार्य आगे बढ़ाकर उत्तराखंड सरकार, पर्यटन व्यवसाय आदि से जुड़े लोगों की आर्थिकी बढ़ाने की योजनाएं हैं, जो उम्मीद की जा रही है कि कोरोना कम होने, लोगों के शत प्रतिशत कोरोना वैक्सीनेट होने के बाद फिर से पटरी पर आ सकेगा.