विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने भाषण की शुरुआत में भारत की आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने का ज़िक्र किया. इसके बाद उन्होंने अपने 16 मिनट के बेहद कसे हुए भाषण में भारत की कूटनीति को लेकर कई बड़े संकेत दिए. उन्होंने इशारों-इशारों में भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की पुरानी मांग को भी उठाया लेकिन दिलचस्प बात यह भी रही कि रूस के विदेश मंत्री ने भी संयुक्त राष्ट्र में भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने की अपील कर दी.
हालांकि, जयशंकर ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर का ज़िक्र करते हुए कहा कि इससे तेल, खाद्य और उर्वरक की उपलब्धता पर असर होगा और इसकी क़ीमतें बढ़ेंगी. संयुक्त राष्ट्र की 77वीं महासभा में जयशंकर ने कहा, “इस संघर्ष का जल्द से जल्द समाधान निकालना संयुक्त राष्ट्र के अंदर और बाहर हम सभी के सामूहिक हित में है.”
भाषण के दौरान एस. जयशंकर ने चीन-ताइवान तनाव और पाकिस्तान का नाम लिए बिना आतंकवाद और क़र्ज़ जैसे बड़े मुद्दों पर अपनी बात कही. भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रूस-यूक्रेन संघर्ष पर कहा कि ‘जैसा कि यूक्रेन संघर्ष जारी है, हमसे अक्सर पूछा जाता है कि हम किस ओर हैं? तो हर बार हमारा सीधा और ईमानदार जवाब होता है कि भारत शांति के साथ है और वो वहाँ पर हमेशा रहेगा. हम उस पक्ष के साथ हैं जो यूएन चार्टर और इसके संस्थापक सिद्धांतों का पालन करता है. हम उस पक्ष के साथ हैं जो बातचीत और कूटनीति के ज़रिए ही इस हल को निकालने की बात करता है.”
जयशंकर ने इसके बाद भी रूस-यूक्रेन संघर्ष पर बोलना जारी रखा. उन्होंने कहा कि ‘हम उन लोगों के पक्ष में हैं जो अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, भले ही वे बढ़ते खाने, तेल और उर्वरक के दामों को ताक रहे हैं.’ इसके बाद भारत के विदेश मंत्री ने चीन-ताइवान तनाव का भी ज़िक्र किया लेकिन उसका सीधे-सीधे कोई नाम नहीं लिया. उन्होंने कहा कि भारत-प्रशांत क्षेत्र में भी स्थिरता और शांति को लेकर भारत चिंतित है.
एस. जयशंकर ने कोरोना महामारी के बाद बढ़े आर्थिक दबाव को लेकर भी अपने भाषण में बात कही. उन्होंने श्रीलंका की आर्थिक हालत का सीधे तौर पर कोई ज़िक्र नहीं किया लेकिन उन्होंने कहा कि विकासशील देशों की क़र्ज़ की स्थिति ख़तरनाक है.
“दुनिया के हालात को बेहतर करने में भारत योगदान देता रहा है. हम अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में तेज़ी से आ रही (आर्थिक) गिरावट को पहचानते हैं. महामारी के बाद आर्थिक वसूली की चुनौतियों को लेकर दुनिया पहले से जूझ रही है. विकासशील देशों के क़र्ज़ के हालात ख़तरनाक हैं.”
संयुक्त राष्ट्र में भाषण के दौरान एस. जयशंकर ने भारत की लंबे समय से चली आ रही सुरक्षा परिषद के विस्तार की मांग को उठाया. हालांकि उन्होंने सीधे-सीधे इस पर कुछ नहीं बोला. उन्होंने भारत को बेहद ज़िम्मेदार देश बताते हुए कहा कि वो बड़ी ज़िम्मेदारियां लेने के लिए तैयार है.
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि ‘दुनिया में दक्षिण (देशों) के साथ हो रहे अन्याय को सही तरीक़े से देखा जाए.’ उन्होंने कहा कि भारत की अपील है कि महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर ईमानदारी के साथ गंभीर बातचीत को आगे बढ़ाया जाना चाहिए और विकासशील देशों को संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रियात्मक रणनीति से रोका नहीं जाना चाहिए.
इसके साथ ही उन्होंने उन देशों पर भी निशाना साधा जो संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई में रुकावट डालते हैं. उन्होंने कहा कि विरोध करने वाले आईजीएन (इंटर-गवर्नमेंटल नेगोसिएशंस) की प्रक्रिया को अनंत काल तक बंधक नहीं बना सकते हैं.
उन्होंने कहा कि भारत की सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता जल्द ही समाप्त होने वाली है और ‘हमारे कार्यकाल में, हमने परिषद के सामने आने वाले कुछ गंभीर मुद्दों पर एक सेतु के रूप में काम किया है. हमने समुद्री सुरक्षा, शांति बहाली और आतंकवाद का मुक़ाबला करने जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया.’
रूस ने भारत का किया समर्थन
एस. जयशंकर ने भारत के लिए जहां इशारों-इशारों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता को लेकर अपनी बात कही वहीं रूस ने सीधे तौर पर भारत का नाम लेकर भारत को संयुक्त राष्ट्र का स्थायी सदस्य बनाने की अपील की है. रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत के साथ-साथ ब्राज़ील का नाम भी सुझाया.
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़ ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण के दौरान ये बात कही है. उन्होंने कहा, “सुरक्षा परिषद की शक्तियों को कुछ देश कमज़ोर कर रहे हैं, जिसको लेकर हम चिंतित हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र को पूरी तरह से आज की वास्तविकताओं के साथ समायोजित किया जाना चाहिए. हम संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों के लोकतांत्रीकरण की संभावनाएं देख सकते हैं, ख़ास तौर से जिसमें अफ़्रीकी, एशियाई और लातिन अमेरिकी देशों का व्यापक प्रतिनिधित्व हो.”
इसके बाद रूसी विदेश मंत्री लावरोफ़ ने सीधे तौर पर भारत और ब्राज़ील का नाम लेकर कहा कि ‘हम भारत और ब्राज़ील को मुख्य अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों और परिषद के स्थायी सदस्यों के लिए योग्य उम्मीदवारों के तौर पर देखते हैं’, इसके साथ ही अफ़्रीका का भी एक देश अनिवार्य रूप से देखते हैं.
बुधवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए बाइडन ने कहा था कि समय आ गया है कि इस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को और समावेशी बनाया जाए ताकि वो आज की दुनिया की ज़रूरतों को बेहतर तरीक़े से पूरा कर सके. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का ख़ासतौर पर ज़िक्र करते हुए कहा था, “अमेरिका समेत सुरक्षा परिषद के सदस्यों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर की रक्षा करनी चाहिए और सिर्फ़ बहुत ही विषम परिस्थितियों में वीटो का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ताकि परिषद विश्वसनीय और प्रभावी बनी रहे.”
अपने संबोधन में बाइडन ने कहा था, “यही वजह है कि अमेरिका सुरक्षा परिषद में स्थायी और अस्थायी, दोनों तरह के सदस्यों की संख्या बढ़ाने का समर्थन करता है. इनमें वे देश भी शामिल हैं, जिनकी स्थायी सीट की मांग का हम लंबे समय से समर्थन करते आ रहे हैं और अफ़्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देश भी शामिल हैं.”
हालांकि बाइडन ने अपने संबोधन में किसी भी देश का नाम नहीं लिया था.
वहीं एस. जयशंकर के भाषण की कई लोग तारीफ़ कर रहे हैं तो कई लोगों का कहना है कि उनका भाषण बहुत मुश्किल से ही साहसिक कहा जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक यूरोपियन काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशंस के को-चेयर कार्ल बिल्ट ने ट्वीट किया कि ‘बड़े पैमाने पर रूस की आक्रामकता का विरोध करते हुए भारत अब यह कहने में कामयाब हो गया है कि वो शांति और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के पक्ष में है. यह एक ऐसी स्थिति है जिसे मुश्किल से ही साहसी बताया जा सकता है.’
भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सीधे तौर पर किसी भी देश का नाम नहीं लिया लेकिन इशारों-इशारों में उन्होंने पड़ोसी देशों को कठघरे में खड़ा किया. उन्होंने पाकिस्तान और चीन का नाम लिए बीना सीमा पार आतंकवाद का मुद्दा भी इस दौरान उठाया.
उन्होंने कहा, “कई दशकों से सीमा पार आतंकवाद का ख़ामियाज़ा भुगतने के बाद, भारत इसको लेकर ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ के दृष्टिकोण का दृढ़ता से समर्थन करता है. हमारा मानना है कि आतंकवाद को हम किसी भी आधार पर उचित नहीं ठहरा सकते हैं. कोई भी लफ़्फ़ाज़ी बात ख़ून के धब्बों को नहीं भर सकती है.”
“संयुक्त राष्ट्र आंतकवाद का जवाब उसके साज़िशकर्ताओं पर प्रतिबंध लगाकर देता है. जो भी यूएनएससी 1267 की प्रतिबंध व्यवस्था का राजनीतिकरण करते हैं, वो कभी-कभी घोषित आतंकवादियों का बचाव करने की हद तक अपने जोखिम पर ऐसा करते हैं. मेरा विश्वास करिए कि इसके ज़रिए वे न तो अपने हितों को और न ही वास्तव में अपनी प्रतिष्ठा को आगे बढ़ाते हैं.”
जयशंकर के इस बयान को सीधे पाकिस्तान और चीन पर निशाना माना जा रहा है क्योंकि हाल के महीनों में चीन ने पाकिस्तान स्थित कई चरमपंथियों के ख़िलाफ़ प्रस्तावों पर रोक लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया है.