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देश का एक ऐसा गांव, जिसे आज भी हैं एक डॉक्टर का इंतजार

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
04/07/21
in राष्ट्रीय, समाचार
देश का एक ऐसा गांव, जिसे आज भी हैं एक डॉक्टर का इंतजार

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मारगाव l भारत में दूर-दराज के गांवों तक पहुंचने वाले कोविड के टीके लगाने वालों की तस्वीरें हजारों लोग फॉरवर्ड कर रहे हैं। रिमोट इलाकों में जाकर कोविड वैक्सीनेशन हो रहा है, लेकिन यह खबर आपको हैरान कर देगी। देश में एक ऐसा गांव है जहां वैक्सीनेशन तो दूर, आजतक लोगों ने डॉक्टर तक नहीं देखा। यह गांव है गोवा के मडगांव से लगभग 30 किलोमीटर दूर पड़ता है।

गांव के भोमो गांवकर ने बताया कि वह 94 साल के हैं, उन्होंने आज तक डॉक्टर को नहीं देखा। उनके बाएं पैर के ऊपर घाव है लेकिन वह हर्बल पेस्ट लगाकर उसे ठीक कर रहे हैं, जो उनकी पत्नी ने तैयार किया है। उन्होंने बताया, ‘मेरे पास डॉक्टर के पास जाने का कोई रास्ता नहीं है। मैं दो कदम भी नहीं चल सकता, और हमारे गांव में कोई वाहन नहीं आ सकता है।’

गांव में रहते हैं लगभग 100 लोग
मडगांव से लगभग 30 किमी दूर, संगुम तालुका के नेत्रावली रेंज के जंगलों में बनी 20 झोपड़ियों में लगभग 100 लोग रहते हैं। गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त हुए 60 साल पूरे हो गए है लेकिन यह गांव अभी भी जंगलों में प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली पारंपरिक जड़ी-बूटियों पर निर्भर हैं। यहां से सबसे पास का अस्पताल लगभग 25 किमी दूर क्यूपेम या कर्चोरेम का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है।

स्कूल जाने में लगता है 40 मिनट से ज्यादा
वाहन चलने लायक सड़क गांव से चार किलोमीटर दूर है। चार किलोमीटर की दूरी संकरे, खड़े और घुमावदार रास्ते से होकर पहुंचता है। छात्रों के लिए निकटतम प्राथमिक विद्यालय काजुर में है, और निकटतम हाई स्कूल मैना में है। हाई स्कूल के लगभग 10 छात्र अपने स्कूल जाने के लिए एक वैकल्पिक रास्ता अपनाते हैं जो घने जंगलों और पहाड़ियों से होकर गुजरता है। छात्रों को स्कूल पहुंचने में लगभग 40 मिनट से डेढ़ घंटे का समय लग जाता है।

कठिन रास्तों से होकर पहुंचते हैं स्कूल और कॉलेज
स्नातक की छात्रा भारती गांवकर ने कहा कि उन लोगों के पास सड़क, पानी और बिजली जैसे मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। उसने कहा कि जंगल से होकर गुजरने के दौरान कई बार उसे जंगली जानवरों का सामना करना पड़ा। जंगल के रास्ते पर पिरला तक पहुंचती है। यहां से मैना के लिए बस मिलती है और फिर बस से वह अपने कॉलेज पहुंचती है।

बारिश में बढ़ जाता है और जोखिम
मॉनसून के दौरान यह जोखिम भरा हो जाता है क्योंकि रास्ते में हमेशा पानी भर जाता है और चट्टानें फिसलन भरी हो जाती हैं। इंटरनेट कनेक्टिविटी एक और समस्या है जिससे छात्रों को जूझना पड़ता है। छात्रों ने ऑनलाइन कक्षाएं अटेंड करने के लिए कई जगह मचान लगाए हैं जहां मोबाइल नेटवर्क आता है।

गांव का कुआं बुझाता है प्यास
गांव के लिए पीने के पानी का एकमात्र स्रोत दूर का कुआं है। ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय काजू की खेती है। आसवनी को काजू फेनी और खरीद एजेंसियों को काजू के बीज बेचना इन आदिवासियों की आजीविका का प्राथमिक स्रोत है। कुछ अपनी अल्प आय को पूरा करने के लिए काजूर या आसपास के गांवों में धान के खेतों में भी काम करते हैं।

इस गांव में अच्छाई यह है कि यहां के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। उनका मानना है कि यही एक रास्ता है जिससे वे इस गांव से निकलकर अपने और अपने परिवार के लिए कुछ कर सकते हैं।

नेता आते हैं लेकिन देते हैं आश्वासन
हाल ही में आदिवासी कल्याण मंत्री गोविंद गौड़े ने स्थानीय विधायक प्रसाद गांवकर के साथ इस गांव का दौरा किया और उनकी समस्याओं को समझने के लिए आदिवासी उप-योजना के तहत बुनियादी ढांचे के काम करने का आश्वासन दिया।


खबर इनपुट एजेंसी से

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