आर मोहन
टी-20 वर्ल्ड कप 2022 के दूसरे सेमीफाइनल मुकाबले में इंग्लैंड के खिलाफ भारतीय टीम का खेल आईसीसी टूर्नामेंट में नॉकआउट मैचों के दौरान खराब प्रदर्शनों में सबसे निचले स्तर पर था. एडिलेड ओवल में गेंदबाज इतने स्तरहीन नजर आए कि एलेक्स हेल्स ने आक्रामक तो चतुर कप्तान जॉस बटलर ने शांत और सरल तरीके से उनका सफाया कर दिया. दरअसल, 169 रन के लक्ष्य का पीछा इतनी बेरहमी से किया जा रहा था. ऐसे में मजाक-मजाक में पूछा गया पहला सवाल था – टी-20 सेमीफाइनल में भारत के लिए विकेट लेने वाला आखिर गेंदबाज कौन था? आंकड़े बताते हैं कि सही जवाब विराट कोहली है.
आंकड़ों पर गौर किया जाए तो 2016 के सेमीफाइनल में जब वेस्टइंडीज के खिलाड़ी टीम इंडिया को रौंद रहे थे, तब विराट कोहली ने विकेट चटकाया था. सेमीफाइनल में भारत को मात देने के बाद वेस्टइंडीज ने खिताबी मुकाबले में इंग्लैंड के खिलाफ हैरतअंगेज जीत दर्ज की थी. अब टी-20 वर्ल्ड कप 2022 के सेमीफाइनल में इंग्लैंड की 10 विकेट की जीत से भारतीय गेंदबाजों की सामूहिक विफलता सामने आ गई.
इस बार टीम इंडिया को सिर्फ गेंदबाजों की वजह से असफलता का सामना करना पड़ा. हालांकि, यह कहकर इसका बचाव किया जा सकता है कि क्रिकेट के इस वर्जन में गेंदबाजों के साथ खिलवाड़ होता है. खासतौर पर ऑस्ट्रेलिया में हुए इस टूर्नामेंट में पावरप्ले के दौरान रन सिर्फ अनिच्छा से बने, लेकिन जसप्रीत बुमराह की गैरमौजूदगी में भारतीय गेंदबाजी पुरानी रखी हुई बियर की तरह एकदम सपाट नजर आई.
युवा अर्शदीप एडिलेड ओवल की सपाट परिस्थितियों में ढलने के लिए संघर्ष करते दिखे, क्योंकि यह एक ऐसी जगह थी, जहां गेंदबाजों के लिए स्विंग और बाउंस की कमी थी. लेकिन भुवनेश्वर और बाकी स्पिनर ऐसे लगे, जैसे उन्हें खरीदकर काम पर लगा दिया गया. हालांकि, इससे हेल्स की शानदार प्रतिभा को नकारा नहीं जा सकता, जिन्होंने भारतीय गेंदबाजी को सेकेंड डिविजन काउंटी चैंपियनशिप जैसा साबित कर दिया.
यह एक ऐसा मौका था, जिसमें बल्लेबाजों ने बोर्ड पर अच्छा-खासा स्कोर खड़ा किया. इतनी अच्छी बल्लेबाजी की परिस्थितियों के बावजूद 169 रन का लक्ष्य मजाक उड़ाने लायक नहीं था. टीमों को पता होता है कि पावरप्ले के दौरान न सिर्फ तेजी से रन बनाने की जरूरत होती है, बल्कि छह ओवरों के बाद भी आठ रन प्रति ओवर से ज्यादा की दर बरकरार रखने की जरूरत होती है. हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि पावरप्ले के दौरान भारतीय बल्लेबाजों ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया.
अगर पहले सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड के गेंदबाजों के खिलाफ पाकिस्तान के प्रदर्शन को छोड़ दिया जाए तो सलामी बल्लेबाजों के लिए यह टूर्नामेंट मुश्किल भरा रहा. ऑस्ट्रेलिया में असली लेकिन तेज पिचों पर गेंदबाजों को थोड़ा अतिरिक्त उछाल और रफ्तार मिलती है, जिससे उन्हें खेलना मुश्किल होता है. दरअसल, लक्ष्य का पीछा करने की तुलना में खेल के शुरुआत में पिच पर ताजगी के कारण ऐसा ज्यादा होता है.
शुरुआत में केएल राहुल की धीमी बल्लेबाजी और रोहित शर्मा के जल्दी आउट होने की दिक्कतों ने टीम इंडिया के दूसरे बल्लेबाजों के लिए मुश्किलें बढ़ाईं, भले ही सलामी बल्लेबाजों ने अर्धशतक क्यों न बनाया हो. दरअसल, टूर्नामेंट के दौरान केएल राहुल ने दो और रोहित शर्मा ने एक अर्धशतक जड़ा. टीम में सिर्फ एक ही ऐसा खिलाड़ी दिखा, जिसने इस बड़े मौके को भुनाया और उस दिन फर्क दिखाया. वह खिलाड़ी हार्दिक पांड्या थे.
ऐसे क्रिकेटर को पूरे नंबर दिए जाने चाहिए, जो सबसे मुश्किल वक्त में धैर्य दिखाते हुए लड़ना पसंद करता हो. हार्दिक ने न केवल यह सुनिश्चित किया कि वह आखिर तक पिच पर टिके रहे, बल्कि आखिरी ओवरों में टीम का स्कोर भी बढ़ाया. दरअसल, वह जानते थे कि कोहली बड़े हिट नहीं लगा पाएंगे, क्योंकि वह टीम का आधार मजबूत करने के लिए खेल रहे थे. पंड्या टीम का स्कोर 150 रन के पार ले गए, जो कोहली की धाराप्रवाह, लेकिन नपी-तुली पारी की वजह से असंभव लग रहा था. हार्दिक ने टीम इंडिया को वह मौका दिया, जिससे वह लक्ष्य का पीछा करते वक्त इंग्लैंड के बल्लेबाजों पर दबाव बनाया जा सके.
पावरप्ले के दौरान भारत को दोहरी असफलता से जूझना पड़ा. बल्लेबाजी के दौरान रन नहीं बने और गेंदबाजी के दौरान विपक्षी टीम को रन बनाने से नहीं रोक पाए. इसका सीधा मतलब यह है कि इस तरह की हार का सामना आने वाले वर्षों में भी करना पड़ सकता है.
फिलहाल हम 10 नवंबर से पहले 23 अक्टूबर की बात करते हैं, जब सुपर 12 में सीरियस क्रिकेट की शुरुआत हुई थी. उस दौरान पाकिस्तान के खिलाफ खेल के शुरुआती लम्हों में भारत ने जब नई गेंद से गेंदबाजी की, तब हालात एकदम अलग थे. उस वक्त अर्शदीप ने लहराती गेंदों से अपनी चमक दिखाई थी.
चूंकि टीम इंडिया ने नॉकआउट में पहुंचने के लिए काफी कुछ किया था और ऐसा लग रहा था कि सभी खिलाड़ी अपना दम दिखाने के लिए तैयार हैं. यही वजह थी कि सेमीफाइनल स्टेज के दौरान सट्टेबाजों ने खिताब के दावेदार के रूप में भारत को पहले पायदान पर रखा था. इंग्लैंड को दूसरे नंबर पर रखा गया था, जबकि पाकिस्तान चौथे पायदान पर था. शायद सट्टेबाजों ने यह उम्मीद टूर्नामेंट में भारतीय टीम के प्रदर्शन को देखकर ही लगाई होगी और उन्होंने इंग्लैंड में चैंपियंस ट्रॉफी 2013 की खिताबी जीत के बाद पिछले नौ साल के दौरान नॉकआउट मुकाबलों में भारत के दयनीय रिकॉर्ड को नजरअंदाज कर दिया होगा.
कड़वी सच्चाई यह है कि टीम इंडिया को लेकर काफी ज्यादा उम्मीदें कर ली गई थीं, क्योंकि रिकॉर्ड बुक के आंकड़ों से ज्यादा किस्सों पर भरोसा जताया गया. जब भी बड़े मुकाबलों की बात होती है तो भारतीय टीम हमेशा कमजोर मिली है. हकीकत में अगर याद्दाश्त पर थोड़ा जोर डालें तो चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में इंग्लैंड अचानक लड़खड़ा गया था, जबकि वह काफी मजबूत स्थिति में था. गौर करने वाली बात यह है कि आईसीसी के प्रमुख टूर्नामेंट्स पर नजर डालें तो भारत का आखिरी दमदार प्रदर्शन वर्ल्ड कप 2011 के फाइनल में दिखा, जब उसने मुश्किल लक्ष्य का सफलतापूर्वक पीछा किया था.
2022 में मिली असफलता का मतलब यह है कि टीम को दोबारा बनाने के लिए सिर्फ आंकड़ों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में खिलाड़ियों को मापने के लिए नए मानदंडों को अपनाना होगा. व्हाइट बॉल वाली इस टीम में काफी लोग ऐसे हैं, जो बाहर जाने वाले हैं या जिन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाना है. ऐसे में व्हाइट बॉल की नई पीढ़ी को ढूंढने के लिए सूर्य कुमार यादव के सांचे का इस्तेमाल करना होगा और उन्हें तराशना होगा. हालांकि, कोहली के पास यह चुनने के लिए विशेषाधिकार होगा कि वह टीम से कब अलग होंगे. फिलहाल सूर्यकुमार यादव, अर्शदीप सिंह और जसप्रीत बुमराह तीन ही ऐसे खिलाड़ी हैं, जो किसी भी टी-20 टीम का हिस्सा हो सकते हैं.
ये लेखक के अपने निजी विचार है.