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भारतीय समाज ही कर सकता है भारतीय सनातन संस्कृति का विस्तार

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
23/10/23
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय
भारतीय समाज ही कर सकता है भारतीय सनातन संस्कृति का विस्तार

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प्रहलाद सबनानीप्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक


प्राचीनकाल में भारत का इतिहास गौरवशाली रहा है। इस खंडकाल में समस्त प्रकार की गतिविधियां चाहे वह सामाजिक क्षेत्र में हों, सांस्कृतिक क्षेत्र में हों, आर्थिक क्षेत्र में हों अथवा किसी भी अन्य क्षेत्र में हों वह भारतीय सनातन संस्कृति का पालन करते हुए ही सम्पन्न की जाती थीं। समाज में किसी भी प्रकार के कर्म को धर्म से जोड़कर ही किया जाता था एवं अर्थ को भी धर्म से जोड़ दिया गया था। कर्म, अर्थ एवं धर्म मिलकर मानव को मोक्ष प्राप्त करने की ओर प्रेरित करते थे। सामान्यतः राष्ट्र के नागरिकों में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं के बराबर ही रहती थी और समस्त नागरिक आपस में मिलकर हंसी खुशी अपना जीवन यापन करते थे।

भारत के वेद एवं पुराणों में विभिन्न प्रकार की समस्याओं को हल करने के उपाय बताए गए हैं। विभिन्न युगों में अलग अलग शक्तियों को प्रधानता दी गई है, इन शक्तियों के माध्यम से ही विभिन्न समस्याओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

“त्रेतायां मंत्र-शक्तिश्च, ज्ञान शक्ति: कृत्ते-युगे। द्वापरे युद्ध शक्तिश्च, संघेशक्ति कलौयुगे।।

सतयुग में ज्ञान शक्ति, त्रेता युग में मंत्र शक्ति, द्वापर युग में युद्ध शक्ति एवं कलयुग में संगठन शक्ति को प्रधानता दी गई है। परंतु, त्रेता युग में भी भगवान राम ने वानर सेना सहित समाज को संगठित करते हुए असुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने में सफलता हासिल की थी एवं रावण का संहार किया था। द्वापर युग में भी महाभारत का युद्ध पांडवों ने संगठन भाव के कारण एक उद्देश्य को सामने रखकर जीता था। जबकि, कौरवों की सेना के महारथी अपने व्यक्तिगत संकल्पों, प्रतिज्ञा एवं प्रतिशोधों के लिए लड़े और युद्ध हारे थे।

इसी प्रकार कलयुग में कालांतर में जब छोटे छोटे राज्य स्थापित होने लगे तब इन राज्यों के बीच आपस में संगठन का स्पष्ट तौर पर अभाव दृष्टिगोचर होने लगा और वे आपस में ही लड़ने लगे थे। संगठन का अभाव एवं सनातन संस्कृति के छूटने के कारण ही आक्रांता के रूप में मुगलों एवं अंग्रेजों को भारत के छोटे छोटे राज्यों पर अपना आधिपत्य स्थापित करने में कोई बहुत अधिक कठिनाई नहीं हुई थी।

कलियुग में हिंदू समाज में संगठन शक्ति के जागरण के उद्देश्य से वर्ष 1925 में विजय दशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार ने की थी। जो आज अपने 98 वर्ष पूर्ण कर एक विशाल वट वृक्ष के रूप में हमारे सामने खड़ा है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज पूरे विश्व में सबसे बड़ा सांस्कृतिक संगठन माना जाता है। संघ का मुख्य कार्य स्वयंसेवकों में राष्ट्र भाव जागृत करना एवं समाज में सामाजिक समरसता स्थापित करना है। संघ द्वारा शाखाओं के माध्यम से स्वयंसेवकों का शारीरिक, बौद्धिक एवं व्यक्तित्व विकास किया जाता है। इन शाखाओं में स्वयंसेवक तैयार किए जाते हैं जो समाज में जाकर सामाजिक समरसता का भाव विकसित करने का प्रयास करते हैं एवं देश के नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करते हैं। इस प्रकार भारतीय समाज को संगठित करने का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा शाखाओं एवं स्वयंसेवकों के माध्यम से किया जा रहा है।

भारतीय समाज की एकजुटता के कारण ही आज भारत में रामसेतु का विध्वंस रुक सका है, जम्मू एवं कश्मीर में लागू धारा 370 एवं धारा 35ए हटाई जा सकी है, 500 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद श्री राम का भव्य मंदिर अयोध्या में निर्मित हो रहा है, जिसका उद्घाटन जनवरी 2024 में पूज्य संत महात्माओं के साथ भारत के प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेंद मोदी जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न होना प्रस्तावित है। जी-20 देशों के समूह की अध्यक्षता आज भारत के पास है और भारत इस समूह के समस्त देशों को एकजुट बनाए रखने में सफल रहा है। भारत ने चन्द्रयान को चन्द्रमा के दक्षिणी भाग पर सफलता पूर्वक उतारने में सफलता हासिल की है एवं चन्द्रमा की सतह पर “शिवशक्ति” को अंकित करने में भी सफलता पाई है। भारत आज अपनी सीमाओं की मजबूती के साथ सुरक्षा करने में सफल हो रहा है। खेलों के क्षेत्र में भी नित नए झंडे गाड़े जा रहे हैं, हाल ही में चीन में सम्पन्न हुई एशियाई खेल प्रतियोगिताओं में भारत ने 106 पदकों को हासिल कर एक रिकार्ड बनाया है।

इस प्रकार वर्तमान में वैश्विक स्तर पर भारत एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। विभिन्न क्षेत्रों में भारत आज पूरे विश्व को राह दिखा रहा है। एक ओर तो रूस-यूक्रेन युद्ध एवं इजराईल-हमास युद्ध अपने चरम पर है एवं विश्व के विकसित देश कई प्रकार की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं एवं इन देशों में सामाजिक तानाबाना छिन्न भिन्न हो चुका है वहीं दूसरी ओर भारत आर्थिक क्षेत्र में चंहुमुखी प्रगति कर रहा है एवं आज भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गई है। भारत की यह प्रगति कई देशों को नहीं सुहा रही हैं एवं कुछ देश भारत के नागरिकों में आपसी फूट पैदा करने एवं भारत की कुटुंब व्यवस्था को छिन्न भिन्न करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि न केवल भारत की आर्थिक प्रगति विपरीत रूप से प्रभावित हो सके बल्कि भारत का सामाजिक ताना बाना भी छिन्न भिन्न किया जा सके।

यह देश भारतीय सनातन संस्कृति, हिंदुत्व, भारत एवं संघ पर प्रहार कर रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों के बीच भारतीय नागरिकों पर आज महत्ती जिम्मेदारी आ जाती है कि कुछ देशों के भारतीय समाज को बांटने के कुत्सित प्रयासों को विफल करें। भारतीय समाज आपस में सामाजिक समरसता का भाव विकसित करें एवं कोई भी कार्य करने के पहिले राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखें। आज की विपरीत परिस्थितियों के बीच भारतीय समाज को आपस में एकता बनाए रखना भी अति आवश्यक है। सामाजिक बराईयों को दूर करने के प्रयास भी आज हम सभी को मिलकर करने चाहिए। भारतीय समाज को आज की विपरीत परिस्थितियों के बीच जागृत होना ही होगा।

लगभग 10 वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने कहा था कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नए मतदाताओं का शत प्रतिशत पंजीयन होना चाहिए, शत प्रतिशत मतदान होना चाहिए एवं समाज द्वारा राष्ट्रहित के मुद्दों पर मतदान करना चाहिए। आज इन समस्त बातों का ध्यान भारतीय समाज को रखना होगा।

श्री यदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक “शिवाजी एंड हिज टाइम” में उल्लेख किया है कि प्रयाग में मुगलों ने एक अक्षय वट वृक्ष को काट कर उस पर एक बड़ा तवा इस उद्देश्य से रख दिया था कि अब वृक्ष चूंकि कट चुका है अतः स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। किंतु, कुछ समय पश्चात उस अक्षय वट वृक्ष में फिर से कपोलें फूट आईं, उसी प्रकार से भारतीय समाज की सनातन शक्ति को रोकने का सामर्थ्य दुनिया में किसी का नहीं है।

 

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