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पर-पीड़ा—(लघु कहानी)

Manoj Rautela by Manoj Rautela
11/06/20
in साहित्य
पर-पीड़ा—(लघु कहानी)

किरन सिंह

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-पर-पीड़ा-

मिसेज सिंह सुबह-सुबह अपनी बालकनी में बैठी चाय की चुस्कीयाँ व अखबार में आज की ताजा-ताजा खबरों का मजा ले रही थीं। तभी उनकी नजर सामने वाले घर में कुछ लोगों पर पड़ी। उस घर में मिस्टर चोंपड़ा व उनकी पत्नी रहते है बड़े ही सज्जन लोग है। शादी के कई साल बाद उनके घर में बेटी की किलकारीयां गुंजी थी। मिसेज सिंह का उनके घर पर इतना आना-जाना नही था, लेकिन फिर भी आमना-सामना होने पर हाय हैलो हो जाती थी। दो मिनट रूक कर हाल-चाल भी हो जाता था। आज उस घर में कुछ अजीब सा माहौल था। कुछ बुझा-बुझा सा। मिस्टर चोपड़ा बाहर आंगन में सिर पर हाथ रखकर बहुत ही दुखी लग रहे थे। उनके दो भतीजे जो उनके पास ही रहकर पढ़ते हैं, वह भी हाथ बांघकर एक तरफ खड़े थे। उनके मुँह भी लटके लग रहे थे। माजरा क्या है, कुछ समझ नही आ रहा है ? मिसेज सिंह बड़ी पशोपेश में पड़ गई। फिर देखती क्या है, ‘‘कि मिस्टर चोपड़ा भारी मन से उठ कर अंदर चले गये।

अभी वह कुछ समझ पाती, उनकी आँखें विस्मय से फैल गई। देखा मिस्टर चोपड़ा सफेद कफन में लिपटायें गोद में किसी को लिये बाहर निकले, मिसेज चोपड़ा रो रही थी। मिस्टर चोपड़ा के हाथों से उनकी मिसेज ने उसे अपनी गोद में लिया, फिर उसे खुब प्यार किया, चूमा, मिस्टर चोपड़ा के हाथों में पकड़ा दिया। उनके दोनो भतीजे एक हाथ में कुदाल लेकर अपने चाचा संग चल दिये। मिसेज सिंह ने यह सीन देखा, उनका दिल ही धक से रह गया। उनके मुँह से निकला ‘‘हे ईश्वर! ये क्या किया बेचारे चोपड़ा परिवार कितनी मन्नतो के बाद, कितने सालों के बाद ईश्वर ने उनको औलाद दी, अभी आठ दिन हुआ उनके घर में खुशीयाँ आये, ‘‘बेटी की मौत हो गई’’।

मिसेज सिंह को चोपड़ा दम्पति के लिये गहरा दुख हुआ। इस दुख को वह उनके घर जाकर सांझा करना चाहती थी। लेकिन वह कभी तो उनके घर गई नही, फिर क्या किया जाये ? उनको याद आया, कि दो मकान छोड़कर मिसेज गर्ग से उनकी ठीक-ठाक पटती है। वह उनकी किटी फ्रैन्ड भी है, और उनका मिसेज चोपड़ा के घर आना-जाना है। उनके साथ ही मै उनके घर पर जा कर शोक मना आउँगी। ये सोच कर मिसेज सिंह को तसल्ली हुई। लेकिन उसके पहले वह किसी को बताना चाहती थी। पतिदेव भी घर पर नही थे, वह बिजनेश के सिलसिले में दिल्ली गये थे। फिर भी पतिदेव को फोन लगाकर सुबह-सुबह मिसेज सिंह ने खबर सुना ही दी। पतिदेव ने भी अफसोस किया, उनके घर पर जाकर शोक मनाने का मशविरा भी दिया।

अब मिसेज सिंह का समय ही नही कट रहा, वह बहुत दुखी है। इस दुख में उन्होंने नाश्ता भी नही किया, वैसे भी वह अकेली है। पति बाहर गये है, बच्चे दोनो हास्टल में रहते है। कैसे-कैसे मिसेज सिंह ने दो तीन घंटे काटे। वह आज अपनी जॉब पर भी नही गई। आखिर मौहल्ले का मामला हे, वह भी इतना बड़ा दुख का पहाड़ टूटा है। वह भी बताना चाहती है, कि इस मुहल्ले के हर दुख-सुख में उनका भरपूर सहयोग है। हल्के कलर की साड़ी पहन वह मिसेज गर्ग के यहाँ यह दुख भरी खबर पहुँचाने पहुँच गई। ‘‘भाभी जी-क्या आपको पता है, मिसेज चोपड़ा के साथ कितना बुरा हुआ’’? क्या हुआ मुझे कुछ नही पता ? आज सुबह उनकी बेटी की मृत्यु हो गई। ‘‘ओह नो, ये कब हुआ ? मै तो कल ही उनके यहाँ गई थी, उसकी बरही पर वह लोग एक बड़े जलसे की तैयारी कर रहे थे। फिर ये एकाएक कैसे हो गया ? कल तक तो ठीक थी। पूरे बारह साल बाद उनके यहाँ औलाद हुई थी। भगवान ने वह भी छीन ली यह तो बहुत ही दुख की बात है’’। मिसेज गर्ग भी शोक में डूब गई, मिसेज सिंह ने मिसेज गर्ग को बालकनी से आँखों देखा हाल बया किया, और यह भी कि इस दुख मे वह इतनी दुखी है कि आज वह अपने काम पर से छुटृटी ले ली है। दोंनो ने दोपहर को उनके घर चलकर शोक मनाने का सोचा ।

जैसे-तैसे कर दोपहर आ गई। मिसेज गर्ग मिसेज सिंह के यहाँ पहुँच गई। दुखो में डूबी दो महिलायें मिसेज चोपड़ा के यहाँ पहुँच गई। अंदर से मिसेज आई, दोनों ड्ाइंग रूम में बैठी। मिसेज चोपड़ा का मुँह लटका हुआ था, चेहरा बता रहा था वह कितनी उदास थी। थकी-थकी लग रही थी। दोनों महिलायें करूणा से भर उठी। तीनों ही खामोश थी। मिसेज गर्ग ने ही बात शुरू की। मुझे तो पता ही नही था’’ मिसेज सिंह ने बताया, इन्होनें अपनी बालकनी से देखा। वरना मुझे तो पता ही नही चल पाता, भाभी जी- यह कैसे हुआ ? अभी तक तो सब ठीक-ठाक ही था, फिर हुआ क्या था ? भारी मन से मिसेज चोपड़ा ने मुँह खोला- क्या बताये बहन- बस ये समझ लीजिये कि हमारी औलाद थी वह, हाँ..हाँ ‘‘बहन जी, आपकी ही औलाद थी वह’’ पर, उसे अचानक हुआ क्या था,? अचानक क्हाँ ? वह तो कई दिन से बीमार चल रही थी। इघर आठ दस दिनो से ब्रेड खाना थी छोड़ दिया था। कई बार डाक्टर को भी दिखाया वह भी कुछ समझ नही पाये। दोनों महिलाओं का दिमाक ठनका आठ दिन की बच्ची ब्रेड खायेगी। वह एक दूसरे का मुँह देखने लगी।

मिसेज चोंपड़ा बता रही थी, कि उनकी कुतिया जूली जब वह बीस दिन की थी, उनके पति अपने एक मित्र के यहाँ से लाये थे। उसे वह दोनों औलाद की तरह मानते थे। वह उनके घर के लिये इतनी लकी थी, कि उसके आने के बाद वह औलाद का सुख पा सकी। मिसेज चोपड़ा अपनी कुतीया जूली के आने से लेकर उसके उस लोक में जाने तक का किस्सा सिलसिलेवार बताना शुरू की, तो चुप होने का नाम ही नही ले रही। वह क्या बोल रही थी, वहाँ उपस्थित दोनों महिलायें कितना सुन रही थी, उन दोनो को बस ये पता है कि दोनों के कान भाँय-भाँय बोल रहे थे। मिसेज गर्ग मिसेज सिंह को लगातार घूर रही थी। किसी तरह किस्सा जूली का खत्म हुआ। दोनों महिलायें उठ खड़ी हुई, नमस्ते कर बाहर आई। मिसेज सिंह अपने आपको ठेलती हुई किसी तरह अपने घर में घुसी, जोर से दरवाजा भेड़ते हुये।

लेखक :

-किरन सिंह बैस-
बनारस

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