गौरव अवस्थी
राम सर्वत्र हैं। राम मंदिर सर्वत्र हैं। अयोध्या में भव्य- दिव्य राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा की गूंज दुनिया भर में सुनाई दे रही है पर अयोध्या से मात्र दो सौ किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसी भी जगह है, जहां राम का कोई काम नहीं है। यहां जनकनंदिनी मां जानकी का मंदिर है। उनके वीर पुत्र लव और कुश की पुत्र रूप प्रतिमाएं हैं पर राम नहीं हैं। यह दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां जानकी बिना भगवान राम के सुशोभित हैं।
परि-हरि का मतलब है परित्याग। कथानुसार, भगवान राम ने माता सीता का यहीं परित्याग किया। उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर यह स्थान अपभ्रंश रूप में अब परियर के रूप में जाना जाता है। गंगा के किनारे बसे इस स्थान पर ही महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था। धोबी के कहने पर परित्याग के बाद मां जानकी को महर्षि वाल्मीकि ने अपने इसी आश्रम में आश्रय दिया। माना जाता है कि यहीं मां जानकी ने लव और कुश को जन्म दिया। इसी आश्रम में रहते हुए ही वह पले और बढ़े। यहीं आश्रम में शिक्षा प्राप्त की और युद्ध कला का प्रशिक्षण भी।
इस स्थान की महत्ता केवल इतनी ही नहीं है। भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को सूर्यवंशी लव और कुश द्वारा पकड़ कर बांधने की कथा भी यहीं से जुड़ी बताई जाती है। अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को पकड़े जाने पर भगवान राम के अनुज लक्ष्मण और उनकी सेना से लव-कुश का युद्ध पास के ही बंधावा गांव के मैदान में हुआ माना जाता है। यज्ञ के घोड़े को बांधने के कारण ही इस गांव का नाम ही बंधावा पड़ा। युद्ध में भगवान राम की सेना परास्त हुई। यहीं भगवान राम का भी अपने पुत्रों से युद्ध में आमना-सामना हुआ।
इस स्थान पर स्थापित मंदिर में मां जानकी के साथ लव और कुश की प्रतिमाएं स्थापित हैं। महर्षि वाल्मीकि की प्रतिमा के साथ-साथ इस स्थान का 112 वर्ष पहले जीर्णोद्धार करने वाले बाबा रामशरण दास की प्रतिमा भी स्थापित है। आश्रम में मंदिर के ठीक सामने वह विशाल वटवृक्ष आज भी है, जिसमें लव और कुश ने महाबली हनुमान को भी पकड़ कर बांध दिया था। मान्यता है कि तब माता जानकी ने ही रामभक्त हनुमान की महत्ता बताते हुए उन्हें बंधन मुक्त कराया था। करीब 50 मीटर का फैलाव लिए हुए यह वटवृक्ष अपनी अतिप्राचीनता और पौराणिकता का प्रमाण देता है। वटवृक्ष के नीचे लगा एक बोर्ड हनुमान को इसी पेड़ से बांधने की कथा को दोहराता चलता है। फाल्गुनी एकादशी पर कानपुर के बिठूर धाम की चौदह कोसी परिक्रमा इसी वटवृक्ष से प्रारंभ होती है।
मंदिर के बगल में स्थित जानकी कुंड भी दर्शनीय है। यहां प्रतिदिन मां जानकी और उनके पुत्रों की पूजा, स्तुति और वंदना होती है। जानकी जयंती पर मंदिर में उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। माता सीता के परित्याग से जुड़े इस स्थान पर रोज सैकड़ो भक्तों का आना-जाना होने लगा है। गंगा पर पुल बन जाने की वजह से उसे पर से भी तमाम भक्त इस बार आकर परियार तीर्थ स्थल पर माथा टेकने आते हैं।
कभी उपेक्षित से महसूस होने वाला यह वाल्मीकि आश्रम अब अब काफी विकसित हो चुका है। मंदिर के विशाल परिसर में भक्तों के लिए गदाधारी हनुमान जी की 20 मीटर ऊंची विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। भक्तों के लिए यह प्रतिमा आकर्षण का केंद्र है और दूसरे अर्थों में सेल्फी प्वाइंट भी। दूसरे कोने पर भगवान राम के आराध्य भगवान शिव का मंदिर भी स्थापित किया गया है पर जैसे यहां भगवान राम की प्रतिमा का निषेध है।
गंगा के एक तरफ परियर का वाल्मीकि आश्रम है और दूसरी तरफ बिठूर में भी मां जानकी और लवकुश के मंदिर के साथ-साथ एक प्राचीन किले पर वाल्मीकि मंदिर, सीता रसोई और मां जानकी के पाताल प्रवेश का स्थान है। हालांकि, इसे अब बंद कर दिया गया है। यहां भक्त फूल, प्रसाद और दक्षिणा जरूर चढ़ाते हैं। गंगा के दोनों किनारों पर माता सीता के परित्याग से जुड़े स्थान भक्तों को थोड़ा अचरज में डालते हैं लेकिन श्रद्धा भाव में डूबे रहने वाले भक्त कोई सवाल नहीं उठाते।
भले ही परियर के वाल्मीकि आश्रम में भगवान राम की प्रतिमा न हो लेकिन 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के वक्त वाल्मीकि आश्रम और जानकी मंदिर भी जगमगाएगा। मंदिर के पुजारी रमाकांत तिवारी बताते हैं कि जानकी के बिना राम अधूरे हैं और राम के बिना जानकी। इसलिए प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के दौरान मंदिर को रोशनी से जगमग किया जाएगा। प्राण प्रतिष्ठा के दिन विशेष उत्सव की तैयारी है।
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