मुंबई : महाराष्ट्र में मंत्रालय के विभागों के बंटवारे में जिस तरह से एनसीपी ने बाजी मारी है उससे भविष्य की राजनीति की परछाई भी दिख रही है. हालांकि सीएम शिंदे के इस जख्म पर देवेंद्र फडणवीस भावनाओं का मलहम लगाते दिखे, तो उनके उस बयान को ही आधार बताकर उद्धव गुट के संजय राउत वही राग अलाप रहे हैं. फिलहाल CM पोस्ट के साथ शिंदे गुट नंबर एक पर है, जोकि उन्हें खुश रखने का कारण हो सकता है, लेकिन विभागों के मामले में नंबर 3 पर पहुंच गया है. इसकी चिंता और असंतोष का कारण बना रहेगा.
महाराष्ट्र के महाभारत में दिल्ली ने दखल जरूर दिया, लेकिन फायदा अजित पवार कैंप को हुआ. अजित पवार और उनके समर्थक मंत्रियों के विभागों के बंटवारे में जो मिला वो महायुति में उनकी अहमियत बताती है. उसके बारे में विस्तार से बताएंगे, लेकिन उसकी एक तस्वीर तब सामने आ गई जब विभागों के बंटवारे के पहले ही अजित पवार शुक्रवार को मंत्रालय पहुंचकर फाइनेंस मिनिस्ट्री के अधिकारियों के साथ बैठक करने लगे, जो ये बता रही थी कि उन्होंने बीजपी के सामने जिन शर्तों को रखा वो पूरी कर दी गई हैं. साथ ही साथ अपने समर्थक विधायकों को भी मनमाफिक मंत्रालय दिलाया.
खुद अजित वित्त मंत्री बने. अपने कोटे के मंत्रियों को भी सब कुछ दिलवाया, जो वे चाहते थे, जबकि शिंदे खेमा चाहकर भी उसे रोक नहीं सका. मुंबई में 3 बैठकों के बाद भी बात नहीं बनी. दिल्ली में अजित पवार अमित शाह से मिले और फिर गुरुवार रात अमित शाह का संदेशा लेकर देवेंद्र फडणवीस ठाणे में एकनाथ शिंदे के पास पहुंचे. शिंदे के पास मानने के सिवा दूसरा कोई चारा भी नहीं था. उसके बाद फडणनवीस का बयान आया कि सीएम शिंदे और शिवसेना से भावनात्मक रिश्ता है, जबकि एनसीपी और अजित पवार से कूटनीतिक राजनीतिक रिश्ते है.
फडणवीस के बयान पर संजय राउत का पलटवार
देवेंद्र फडणवीस के इस बयान के आते ही संजय राउत भी मैदान में आ गए. उन्होंने फडणवीस को ही कोट किया कि अगर एनसीपी के साथ बीजपी का जाना कूटनीति है तो वही तो हमने भी 2019 में किया. कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाई. हमारी बेईमानी कैसे हुई और उनकी कूटनीति कैसे हुई?
अब आपको बताते हैं कि अजित पवार कैंप को क्या मिला? खुद अजित पवार वित्त मंत्री बने तो उन्होंने सहकारिता, महिला व बाल विकास , फूड एंड सिविल सप्लाई जैसे विभाग एनसीपी को दिलवाए. अजित पवार को फाइनेंस एंड प्लानिंग, छग्गन भुजबल को फूड एंड सिविल सप्लाई एंड कंजुमर प्रोटेक्शन, दिलीप वासले पाटिल को सहकारिता मंत्रालय, हसन मुश्रीफ को मेडिकल एजुकेशन, धनंजय मुंडे को कृषि, धर्मराव आत्रम को फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन, अदिति तटकरे को महिला व बाल विकास, संजय बनसोडे को पोर्ट और यूथ वेलफेयर, अनिल पाटिल को राहत एवं पुनर्वास और आपदा प्रबंधन विभाग मिला है. यानी कि हर वो विभाग जो मलाईदार है और उसकी अहमियत है.
शिंदे गुट के पास एक मंत्रालय के अलावा कोई दूसरा विभाग नहीं
अन्य विभागों की अपेक्षा दूसरे नबंर पर बीजेपी है. होम, ऊर्जा, जल संपदा, रेवेन्यू, फॉरेस्ट, हायर एजुकेशन, ग्राम विकास पंचायत, रोजगार, पीडब्ल्यूडी, हाउसिंग जैसे मंत्रालय बीजेपी ने अपने पास रखे हैं. मंत्री पद में टॉप पर, लेकिन विभागों के बंटवारे में सबसे नीचे तीसरे नंबर पर शिंदे ग्रुप ही है. सीएम एकनाथ शिंदे गुट के पास मुख्यमंत्री, शहरी विकास ट्रांसपोर्ट पर्यावरण के अलावा कोई और बड़ा मंत्रालय नहीं है. ऐसे में आने वाले दिनों में राजनीतिक कलह महाराष्ट्र में न दिखाई दे ऐसी स्थिति बनती नहीं दिख रही है. इस पर ही आज जब अजित पवार से पूछा गया तो उनका कहना था कि इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है और न ही कोई नाराज है, बल्कि ऐसी खबरों का ठीकरा मीडिया पर फोड़ दिया.
एनसीपी के सरकार में शामिल होने के बाद असंतोष सिर्फ शिवसेना में नहीं बढ़ा है बल्कि बीजेपी के विधायक भी नाराज चल रहे हैं. खुद राज्य के बीजेपी अध्यक्ष कह रहे हैं कि तीन पार्टी की सरकार है, तो छोटी-मोटी बातें होती रहेंगी इसलिए तीनों सत्ताधारी पार्टी के बीच तालमेल बनाए रखने के लिए 12 सदस्यों की समन्वय समिति का गठन किया गया है, जबकि गिरीश महाजन का कहना है कि मंत्रालय आज नहीं तो कल जाना ही था, विस्तार हुआ नहीं था.
वहीं 3 पार्टी का संसार नहीं चलने वाला है, ऐसा दावा करने वाले विपक्ष को भी सवाल उठाने के लिए एक के बाद एक मौके मिल रहे हैं. शरद पवार गुट ने सवाल किया है कि जिस सहकारिता क्षेत्र में बीजेपी एनसीपी पर करप्शन का आरोप लगाती थी, वही सहकारिता मंत्रालय बीजेपी ने एनसीपी को दिया है. अब उस पर BJP को रुख साफ करना चाहिए
तीनों पार्टियों के बीच तालमेल बैठना आसान नहीं
राज्य में महाविकास आघाडी की सरकार के गठन के दौरान भी तीनों पार्टियों द्वारा आपसी तालमेल बिठाने और सरकारी कामकाज के लिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का ऐलान किया गया था, लेकिन इसके बावजूद महाविकास आघाडी के तीनों पार्टियों में मतभेद खुलकर सामने आते रहे थे. अब राज्य में महायुति की सरकार है और इसमें भी तीन पार्टी के भागीदार हैं. तालमेल बिठाने के लिए समन्वय समिति बनाने का ऐलान जरूर हुआ है, लेकिन अजित पवार के साथ शिवसेना और बीजेपी की शुरुआत को देखकर लगता नहीं की ताल मेल बिठाना आसान होगा.