डा. बुद्धिनाथ मिश्र | सनातन धर्म के परम उद्धारक आदिशंकराचार्य जी ने अपने छोटे-से जीवन काल में इतनी यात्राओं और इतने ग्रंथों के लेखन के साथ-साथ जो भी महान कार्य किए, उनमें से एक है, विभिन्न देवी-देवताओं के लिए स्तोत्र की रचना। शब्द, भाव और अध्यात्म की दृष्टि से उनके द्वारा रचित स्तोत्र- साहित्य विपुल, उच्च स्तरीय और अतुलनीय है। भावों की गहराई में इतना डूबकर किसी आचार्य ने स्तोत्र नहीं रचा है। इस क्रम में मात्र पुष्पदंत का ‘शिवमहिम्न स्तोत्र’ आता है, जो विषय, शिल्प और भाव की दृष्टि से अद्वितीय है। सनातन धर्म में ईश्वर की परिकल्पना जिन विभिन्न देवी-देवताओं के रूप में की गयी है, उनका सुंदरतम स्वरूप इन संस्कृत स्तोत्र में अभिव्यक्त हुआ है। शंकराचार्य जी की ‘सौन्दर्य लहरी’ तो तांत्रिक दृष्टि से देवी की उपासना के लिए भी विशेष चर्चित है। विश्व का कोई भी स्तोत्र साहित्य इस ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाया।
जब तक मुद्रण का आविष्कार नहीं हुआ था, तब तक भारत में वाङ्मय का वर्चस्व था। छंदों और सूत्रों के माध्यम से पूरा वेद-पुराण, पूरा साहित्य कंठस्थ रखने की परंपरा थी। गुरु-शिष्य परंपरा में निबद्ध होने के कारण इसमें किसी अयोग्य व्यक्ति का हस्तक्षेप नहीं हो पाता था। चूंकि योग्य-अयोग्य पाठक की पहचान पुस्तकें नहीं कर सकतीं और वे सबके लिए सुलभ हैं, इसलिए हमारे शास्त्रों में विकृतियां आने की आशंका बढ़ गई है। इससे बहुत अधिक हानि संस्कृत साहित्य को हुई है, क्योंकि उसको न जानने वाले लोगों ने अज्ञानतावश उसके शब्दों की हत्या ऐसे की है कि वह बड़ा पाप हो गया है। इसके उदाहरण के रूप में मैं याद करता हूं आदि शंकराचार्य रचित ‘अच्युताष्टकम्’ को, जिसमें भगवान विष्णु के दो अवतार-वरिष्ठ श्रीराम और श्रीकृष्ण को एक साथ मिलाकर बहुत ही सुमधुर छंद में स्तवन किया गया है।
स्तोत्र का पहला श्लोक
अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्णदामोदरं वासुदेव हरिम्।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे।
इसमें राम और कृष्ण के विभिन्न नामों को कर्म कारक में पिरोते हुए अंत में ‘भजे’ क्रिया के द्वारा वंदना की गयी है। यदि इस श्लोक से ‘भजे’ क्रिया को हटा दें तो पूरा श्लोक बिना इंजन की 12 डब्बों वाली मालगाड़ी बन जाएगी। वहीं अब वर्तमान समय में गाए जाने वाले भजन को पढ़िए, जिसमें भाव और अर्थ दोनों को बदल दिया है-
अच्युतं केशवं कृष्ण दामोदरं
रामनारायणं जानकीवल्लभम्।
इसमें कहीं कोई क्रिया नहीं है। इसके बाद शुरू हो जाता है-
कौन कहते हैं भगवान आते नहीं
तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं।
आदि आदि..
यह हाइब्रिड भजन ही आज लोकप्रिय है, जिसे अनूप जलोटा, अलका याग्निक, सुरेश वाडेकर आदि न जाने कितने नामी-गिरामी गायकों ने बड़ी-बड़ी कंपनियों के बैनर तले गाया है। किसी भी गायक-गायिका ने देखने-परखने का कष्ट नहीं किया कि वह क्या गा रहे हैं! वे जो गा रहे हैं, उसका कोई अर्थ भी है या नहीं। यह बहुत चिंता और ग्लानि की बात है। यूट्यूब पर उपलब्ध वीडियो में मात्र गायिका माधवी मधुकर झा का भजन शुद्ध संस्कृत में और सही उच्चारण के साथ है। इनके अलावा कुछ और वीडियो हैं, जिनमें पूरा संस्कृत स्तोत्र है, लेकिन उनके ऊपर हिंदी भजन लिखा है। संस्कृत और हिंदी को मिलाकर भी गाया जा सकता है, मगर विवेक के साथ। उसका व्याकरण सही हो और उससे कोई अर्थबोध होता हो। पूज्य शंकराचार्य जी का यह संस्कृत स्तोत्र इतने सुंदर शब्दों और भावों में रचित है कि पूरा स्तोत्र बार-बार सुनने को जी करता है। ऐसे स्तोत्र की विकृति का यह अपराध मंदिर के स्थापत्य को तोड़ने जैसा ही जघन्य है।