गौरव अवस्थी
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में 13 नए मेडिकल कॉलेज खोले गए हैं लेकिन नए नियमों के आधार पर इनमें प्रवेश की अनुमति नहीं मिल रही थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कोशिशें के चलते केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 7 मेडिकल कॉलेज में प्रवेश की अनुमति प्रदान कर दी।
सात नए मेडिकल कॉलेज मिलने की खुशी के साथ ही उत्तर प्रदेश के पहले मेडिकल कॉलेज की स्थापना का इतिहास भी जानना जरूरी है। इस मेडिकल कॉलेज की स्थापना के बारे में 1905 में ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम ने अपने लखनऊ भ्रमण के दौरान विचार किया था। उनके इस विचार को जहांगीराबाद नरेश सर तसद्दुक रसूल खां ने आगे बढ़ाया। 22 मार्च 1906 को यूपी गवर्नमेंट के सेक्रेटरी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर कहा था कि लखनऊ में एक ऐसे मेडिकल कॉलेज की स्थापना होनी चाहिए जो पूर्व की दुनिया में अद्वितीय हो।
आगरा और अवध के राजा, रईसों, जमीदारों और ताल्लुकेदारों ने मेडिकल कॉलेज के लिए बढ़चढ़कर अनुदान दिया।
1906 में ही लखनऊ मेडिकल कॉलेज की नींव रखी गई।
1911 के अक्टूबर माह में लखनऊ मेडिकल कॉलेज में पहला सत्र प्रारंभ हुआ।
27 जनवरी सन 1912 को सर जाॅन हैवेट ने नई इमारत का उद्घाटन किया।
सम्राट की ताजपोशी पर आयोजित दरबारी जश्न में मेडिकल कॉलेज के साथ उनका नाम जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया।
मेडिकल कॉलेज भवन के निर्माण पर तब 30 लाख रुपए का खर्च आया था। भारत सरकार ने 10 लाख रुपए का अनुदान दिया था।
सबसे पहले 18 लाख रुपए की लागत से प्रशासनिक ब्लॉक की महलनुमा सुंदर इमारत बनकर तैयार हुई।
मेडिकल कॉलेज के गगनचुंबी इमारतों का नक्शा सर जैकब ने तैयार किया था। उन्होंने अवध के स्थापत्य को जिंदा रखने की हर संभव कोशिश की। प्रारंभ में 231 बेड के साथ मेडिकल कॉलेज की शुरुआत हुई थी।
प्रारंभ में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबंध रहा बाद में लखनऊ विश्वविद्यालय एक्ट बन जाने पर इसे 1921 में लखनऊ यूनिवर्सिटी से जोड़ दिया गया।
इतिहासकार डॉ योगेश प्रवीन की पुस्तक ‘लखनऊ नामा’ से साभार