अमवस्या को धर्म ग्रंथों में पर्व कहा गया है। इस तिथि पर पितरों की विशेष पूजा की जाती है। ज्योतिष के नजरिये से इस दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में आ जाते हैं। इन दोनों के ग्रहों के बीच का अंतर 0 डिग्री हो जाता है। हर महीने की अमावस्या पर कोई न कोई व्रत या पर्व मनाया जाता है। ये तिथि पितरों की पूजा के लिए खास मानी जाती है। इसलिए इस दिन पितरों की विशेष पूजा करने से सुख और समृद्धि बढ़ती है।
पितृ अमावस्या पर करते हैं अमृत पान
इस तिथि में पितृ अमृतपान कर के एक महीने तक संतुष्ट रहते हैं। इसके साथ ही पितृगण अमावस्या के दिन वायु के रूप में सूर्यास्त तक घर के दरवाजे पर रहते हैं और अपने कुल के लोगों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं। इस दिन पितृ पूजा करने से उम्र बढ़ती है। परिवार में सुख और समृद्धि बढ़ती है।
विष्णु, मत्स्य और गरुड़ पुराण में बताया गया है कि कृष्णपक्ष की द्वितिया से चतुर्दशी तिथि तक देवता चंद्रमा से अमृतपान करते हैं। इसके बाद चंद्रमा सूर्य मंडल में प्रवेश करता है और सूर्य की अमा नाम की किरण में रहता है। तो वो अमावस्या तिथि कहलाती है।
मत्स्य पुराण: अमावसु पितर के कारण पड़ा अमावस्या नाम
मत्स्य पुराण के 14वें अध्याय की कथा के मुताबिक पितरों की एक मानस कन्या थी। उसने बहुत कठीन तपस्या की। उसे वरदान देने के लिए कृष्णपक्ष की पंचदशी तिथि पर सभी पितरगण आए। उनमें बहुत ही सुंदर अमावसु नाम के पितर को देखकर वो कन्या आकर्षित हो गई और उनसे विवाह करने की इच्छा करने लगी। लेकिन अमावसु ने इसके लिए मना कर दिया। अमावसु के धैर्य के कारण उस दिन की तिथि पितरों के लिए बहुत ही प्रिय हुई। तभी से अमावसु के नाम से ये तिथि अमावस्या कहलाने लगी।
अमावस्या से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
सालभर की सभी अमावस्याओं पर पितरों के लिए श्राद्ध किया जा सकता है। इस तिथि में पितरों के उद्देश्य से किया गया तीर्थ स्नान, दान और श्राद्ध अक्षय फल देने वाला होता है। इस तिथि पर भगवान शिव और देवी पार्वती की विशेष पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। सोमवार या गुरुवार को पड़ने वाली अमावस्या को शुभ माना जाता है। वहीं, इस बार बुधवार को अमावस्या होना भी अशुभ नहीं रहेगा। सिर्फ रविवार को अमावस्या का होना अशुभ माना जाता है।
खबर इनपुट एजेंसी से