जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी पर बहुत सारी समस्या देखने को मिलने मिल रही हैं. लेकिन जब भी बात उससे निपटने की होती है तो उसके लिए ग्रीनहाउस गैसों, उसमें विशेषतौर पर कार्बन डाइऑक्साइड प्रमुख कारण माना जाता है. इसीलिए दुनिया भर के देशों को जीरो कार्बन नीति अपनाने को प्रेरित किया जा रहा है. इसीलिए वैज्ञानिक और उनके शोध भी वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2 Reduction form Atmosphere) को कम करने के प्रयासों पर जोर देने की बात कर रहे हैं. इसी के लिए इंजीनियरों ने कार्बन डाइऑक्साइड को गहरे समुद्र में दफनाने (Burying CO2 in Oceans) का एक महत्वाकांक्षी प्रस्ताव दिया है.
कई विकल्पों में से
शोधकर्ता अब कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से कम कर ने के बहुत ही बड़े तरीकों को खोजने के लिए प्रेरित हो रहे हैं जिनमें महासागरों को एक तरह की खाद प्रदान करने जैसी तकनीक विकसित करना शामिल है जिससे भारी मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड हवा से कम की जा सके.
गहरे महासागरों में
अमेरिका के ऊर्जा विभाक के पेसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लैबोरेटरी के अर्थ साइंटिस्ट माइकल होचेला का कहना है कि अबी इसी तरह का समाधान समय की जरूरत है. बढ़ते तापमान से लड़ने केलिए हमें कार्बनडाइऑक्साइड के स्तरों को वैश्विक स्तर पर कम होना होगा. सभी विकल्पों, जिसमें महासागरों को कार्बन डाइऑक्साइड के भंडार गर्त भी शामिल है, पर विचार करने के बाद हमें हमारे ग्रह को ठंडा करने का सबसे अच्छा मौका मिल गया है.
प्राकृतिक रूप से भी
ऐसा नहीं है कि महासागरों की गहराइयों में कार्बन डाइऑक्साइड जाती नहीं है. बल्कि प्राकृतिक रूप से ऐसा होता भी है. महासागरों की सतह पर रहने वाले कई तरह के सूक्ष्मजीवी जिन्हें पादप प्लवक या फायटोप्लैंकटॉन (Phytoplankton) कहते हैं. ये सूक्ष्मजीवी ही वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं और उन्हें गहरे समुद्र में पहुंचाने प्रक्रिया का प्रमुख हिस्सा बनते हैं.
खनिजों की कमी
सूक्ष्मजीवों को बहुगुणित होने के लिए लोहे जैसे खनिजों की जरूरत होती है. लेकिन पानी की सतह पर तैरते हुए जीवों के लिए यह सीमित मात्रा में उपलब्ध होता है, इसकी वजह से पदाप प्लवक के विकसित होना सीमित हो जाता है. इसलिए जिस तरह खाद का उपयोग कर जमीन पौधों के प्रकाश संश्लेषण करने वाले जीवों को पनपाया जाता है, उसी तरह सैद्धांतिक तौर पर महासागरों में भी ऐसा किया जाना संभव हो सकता है.
व्हेलों की कमी के कारण
एक समय में व्हेल बहुत सारा प्राकृतिक महासागरीय खाद अपशिष्ट के तौर पर निकालती थीजो कि इन प्लवकों के भोजन के रूप में काम आता है. लेकिन व्हेलों की संख्या कम होने से पहले पादप प्लवक 20 लाख टन का कार्बन डाइऑक्साइड हर साल इस प्रक्रिया में वायुमंडल से कम हो जाया करता था जो अब केवल 2 लाख टन तक रह गया है.
कृत्रिम खाद हो सकता है समाधान
इसलिए कृत्रिम खाद को डालने से इन सूक्ष्मजीवों का पनपना तेज हो जाएगा जिससे उनके संख्या बढ़ने लगेगी और उनके मरने के साथ ही हवा से कार्बनडाइऑक्साइड और ज्यादा मात्रा में महासागरों में जाने लगेगी. ऐसे मे बहुत सारी कार्बनडाइऑक्साइड महासागरों के तल पर जाने लगेगी जो अधिकांशतः इंसानी गतिविधियों द्वारा उत्सर्जित है. इस तरह से हम उस कमी को पूरा कर सकते हैं. यह कमी कार्बनडाइऑक्साइड के चक्र को हमारे द्वारा तोड़ने से पैदा हुई है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि यहां ऐसे पोषकतत्वों की जरूरत है जो पानी की सतह परलंबे समय तक रह सकें जैसे आयरन ऑक्साइड जैसे नैनोपार्टिकल प्राकृतिक तरीके से खाद का काम करते हैं. लीड्स यूनिवर्सिटी की बोयोजियोकैमिस्ट पेमैन बाबाखानी और उसने साथियों ने 123 अध्ययनों की समीक्षा कर कुछ अतिसूक्ष्म कणों की खोज की है जो प्राकृतिक रूप से मिलने वाले इन नैनोपार्टिकल का काम कर सकते हैं.