नासिर अहमद सिकंदर
“सुख एकम दुःख” इस संकलन में संकलित शरद कोकास की सुख दुःख इन छोटी कविताओं का रचनाकाल बहुत बाद का है । उस समय उन का पहला काव्य संग्रह ‘गुनगुनी धूप में बैठकर’ (1993) प्रकाशित हो चुका था । इस संकलन में उनकी वर्गीय चेतना, सामाजिक सरोकार और प्रतिबद्धता तो थी ही साथ ही यह बिम्बों की कला की कविताएं भी थीं । इस संग्रह की काव्यकला मूलतः बिंबों और रुपक की कला थी।
वे वर्गीय चेतना से लैस होकर अब तक दार्शनिक विचारों में नहीं आए थे अतः इस संकलन में बारिश, बेटी, विदाई, औलाद, घर, बड़बोला, बहुसंख्यक आदि कविताएँ लगभग इसी चेतना से सम्बद्ध रहीं।
तत्पश्चात उन्होंने जब ‘सुख दुःख काव्य श्रृंखला’ प्रारंभ की और उसे विस्तारित किया तो वे सीधे बौद्ध दर्शन के करीब पहुँचे । उन्होंने इस बीच राहुल सांकृत्यायन को भी पढ़ा और शायद नागार्जुन की जीवनी तक भी आए।
यह सर्वविदित है कि इस दर्शन के बीसवीं सदी के पहले अनुयायियों में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर भी शामिल थे। कहने का तात्पर्य यह है कि वे अब सुख दुःख के तमाम दर्शन के बहुत करीब पहुँच चुके थे।
बुद्ध ने कहा भी था कि “इस संसार में ऐसा कोई प्राणी नहीं जिसे दुख न हो लेकिन दुःख है तो उसका कारण है, दुःख का निग्रह है और दुख निवारण के उपाय भी हैं।” बुद्ध के अनुसार “दुख वह मानसिक पीड़ा है जो हम तब झेलते हैं जब सुख को थामे रखने की हमारी प्रवृत्ति जीवन की क्षणभंगुर प्रवृत्ति से टकराती है।”
हम देख सकते हैं कि इस संकलन की कविताओं में ‘इस्तेमाल’ शीर्षक कविता में आए ‘दया’ और ‘सहानुभूति’ जैसे शब्द महात्मा बुद्ध के ‘करुणा’ के दर्शन से ही जुड़ते हैं।
“दुख के लिए उसने हाथ जोड़ें
आंसू बहाए
दया बटोरी
इकठ्ठा की सहानुभूति
दया और सहानुभूति का सुख पाकर वह सुखी हो गया।”
उनकी ‘दुख’ शीर्षक कविता भी पौराणिकता और मिथ से विलग होकर इस दर्शन को बहुत गहरे अर्थों में आत्मसात करती है।
“अब दुःख/
कुबेर का खजाना तो नहीं
जो मिलने पर छुपाएं
क्यों न करें ऐसा
कहें एक दूसरे से
अपने अपने दुःख
डाल से टूटे
पीले पत्ते से दुःख ”
शरद कोकास का यह संकलन ‘सुख एकम दुःख’ दुःख सुख के दर्शन के पठन पाठन की सृजनात्मकता का संकलन है । ऐसा कम ही हो पाता है कि दर्शन कविता में काव्यात्मक रूप ले जो इस संकलन की कविताओं में दिखाई देता है।
मुझे यकीन है कि समकालीन कविता के पाठकों को यह संकलन ‘‘सुख एकम दुःख” एक नए आस्वाद का विलक्षण आनंद प्रदान करेगा तथा समकालीन कविता के भीतर कविता रचने का एक नया जाविया बनेगा।
यह संकलन न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन हॉल 2,3 स्टाल नंबर M 04 पर उपलब्ध है।