सीमा “मधुरिमा”
लखनऊ
कविता लिखी नहीं जाती
बल्कि फूट जाती है
अन्तस् में कहीं
जब मिलता है अथाह प्रीत
जब होती है आत्मा की जीत
कविता फूट ही जाती है
जब रोती है अन्तरात्मा
और शब्द हो जाते हैं मौन
तब लेकर कविता का रूप
फूट पड़ती है
आत्मा और लगती है
विचरण करने
घने जंगलों के बीच
तलहटी में समुन्द्र के
ढूँढती हैं ख़जाने
और दे देती है
आने वाली पीढ़ियों को
जीवन की रीति
कविता लिखी नहीं जाती
यह फूट पड़ती है यूँही अचानक…