बिहार में सियासी बदलाव के बाद से ही 2024 के लोकसभा चुनाव की राजनीतिक बिसात बिछाई जा रही है. राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं तो उसकी सियासी तपिश बिहार में भी दिख रही है. बिहार की सियासत में यात्रा निकालने की होड़ मची हुई है. राजनीति में अपने पैर जमाने निकले प्रशांत किशोर सुराज यात्रा कर रहे हैं तो कांग्रेस हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा बिहार में निकाल रही है. वहीं, महागठबंधन में वापसी के बाद सूबे में सियासी मिजाज की थाह लेने सीएम नीतीश कुमार भी समाधान यात्रा पर निकल पड़े हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि इस कड़ाके की ठंड में नीतीश, पीके और कांग्रेस आखिर क्यों पसीना बहा रहे हैं?
बिहार की थाह लेने निकले नीतीश
नीतीश कुमार को बिहार की सियासत में यात्राओं का बादशाह कहा जाता है. पिछले दो दशक में नीतीश करीब डेढ़ दर्जन यात्राएं बिहार में कर चुके हैं और हर बार उन्होंने राजनीतिक फिजा को अपनी ओर मोड़ा है. नीतीश ने जब से बीजेपी का साथ छोड़कर महागठबंधन में वापसी की है, उसके बाद से शराबबंदी से लेकर तमाम मुद्दों पर उन्हें घेरा जा रहा है. बीजेपी नीतीश की असफलता को जनता के बीच ले जा रही है. ऐसे में सीएम नीतीश कुमार अपने खिलाफ बन रहे नेरेटिव को तोड़ने और राजनीतिक फिजा को अपनी ओर मोड़ने के लिए बिहार की यात्रा पर निकल पड़े हैं.
नीतीश कुमार ने गुरुवार को पश्चिम चंपारण जिले के दरुआबारी गांव से समाधान यात्रा की शुरुआत की. यात्रा के दौरान नीतीश सरकारी कामकाज का जायजा लेंगे और विकास योजनाओं की समीक्षा करेंगे. वह शराबबंदी को लेकर जागरूकता अभियान चलाएंगे. यात्रा के दौरान सीएम नीतीश कुमार की कई जनसभाएं करेंगे. इस तरह समाधान यात्रा का पहला चरण 29 जनवरी तक चलेगा, जिसके जरिए 18 जिलों को कवर करेंगे. इस तरह से नीतीश ने 2024 के चुनाव से पहले सीधे जनता से करने की कवायद शुरू की है.
नीतीश कुमार के समाधान यात्रा में किसी प्रकार की सभा का कार्यक्रम नहीं रखा गया है. मुख्यमंत्री नीतीश अपनी इस यात्रा के दौरान किसी प्रकार का भाषण भी नहीं देंगे बल्कि सीधे जनता के बीच जाकर उनकी परेशानी जानने की कोशिश करेंगे और उसका लगे हाथ समाधान करेंगे. राज्य सरकार की योजनाओं का कितना लाभ उन्हें मिल रहा है, ये जानने की कोशिश करेंगे.
बता दें कि नीतीश कुमार पहली बार बिहार की यात्रा पर नहीं निकले हैं बल्कि उन्होंने 2005 से लेकर अभी तक दर्जन भर से ज्यादा यात्रा कर चुके हैं. 2005 में न्याय यात्रा, 2009 जनवरी में विकास यात्रा, जून 2009 में धन्यवाद यात्रा, सितंबर 2009 में प्रवास यात्रा, अप्रैल 2010 में विश्वास यात्रा, 9 नवंबर 2011 में यात्रा, सितंबर 2012 में अधिकार यात्रा, मार्च 2014 में संकल्प यात्रा, नवंबर 2014 मे संपर्क यात्रा, नवंबर 2016 में निश्चय यात्रा, 2017 में समीक्षा यात्रा, 2019 में जल-जीवन-हरियाली यात्रा, 2021 में समाज सुधार यात्रा और अब समाधान यात्रा के जरिए 2024 का समाधान तलाशेंगे.
कांग्रेस की हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा भले ही बिहार से नहीं गुजर रही, लेकिन पार्टी ने यहां हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा पिछले एक सप्ताह से शुरू कर रखी है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद के नेतृत्व में यात्रा चल रही है. गुरुवार को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी शिरकत की है. खड़गे बांका जिले में सभा को संबोधित करेंगे. उन्होंने करीब 7 किलोमीटर पैदल यात्रा भी की. बिहार में हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा 20 जिलों में 1200 किलोमीटर की दूरी तय करेगी. ये यात्रा पहले चरण में 5 जनवरी से शुरू होकर 10 जनवरी तक चलेगी, जो बांका, भागलपुर और खगड़िया तक जाएगी.
कांग्रेस बिहार में भले ही महागठबंधन का हिस्सा है, लेकिन वह अपने सियासी आधार को मजबूत करने में जुट गई है. कांग्रेस बिहार की सियासत में अभी छोटे भाई की भूमिका में है जबकि आरजेडी और जेडीयू बड़े भाई के तौर पर है. राहुल गांधी की यात्रा से लबरेज कांग्रेस को बिहार में भी अपनी संभावना दिखने लगी है और सीधे जनता के साथ कनेक्ट होने के लिए हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा शुरू कर रही है ताकि अपने खोए हुए सियासी आधार को मजबूत कर सकें. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस इस यात्रा के जरिए महागठबंधन में अपना कितना सियासी वजूद कायम कर पाती है?
पीके की जन सुराज यात्रा
बिहार के सियासत में राजनीतिक राह तलाश रहे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) भी गांधी जयंती के दिन यानी 2 अक्टूबर 2022 से जन सुराज यात्रा पर हैं. तीन महीने से पदयात्रा कर रहे प्रशांत किशोर सबसे ज्यादा हमलावर सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर है. पीके की यह जन सुराज यात्रा बिहार के सभी जिलों से गुजर रही और 3000 किलोमीटर की यात्रा तय करेगी. इस पदयात्रा को पूरा करने में लगभग एक से डेढ़ साल तक का समय लगेगा. इस यात्रा के जरिए पीके महागठबंधन के खिलाफ सियासी माहौल बनाने में जुटे हैं, क्योंकि उनके निशाने पर सिर्फ नीतीश की सरकार है.