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रानी दुर्गावती के सहारे आदिवासियों को लुभाने की कोशिश में राजनितिक दल

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
23/06/23
in राज्य, समाचार
रानी दुर्गावती के सहारे आदिवासियों को लुभाने की कोशिश में राजनितिक दल
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भोपाल : मध्य प्रदेश में एक बार फिर से रानी दुर्गावती महत्वपूर्ण हो गई हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने उन्हें अपने एजेंडे में रखा हुआ है. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने उन्हीं का नाम लेकर पिछले दिनों चुनावी अभियान का श्रीगणेश किया तो बीजेपी उनके सम्मान में पांच दिनों की यात्रा निकाल रही है. इस गौरव यात्रा का शुभारंभ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को करना था, लेकिन मौसम खराब होने के कारण वे पहुंच नहीं पाए. अब 27 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस गौरव यात्रा का समापन करेंगे.

दरअसल, रानी दुर्गावती चुनाव के मौके पर पहले भी महत्वपूर्ण रही हैं. मध्य प्रदेश की राजनीति में वे आगे भी इसी तरह महत्वपूर्ण रहने वाली हैं. रानी दुर्गावती भले ही शासक थीं, लेकिन आज गोंड आदिवासी समुदाय से आते हैं. मतलब, सरकारी दस्तावेजों में उन्हें एसटी का दर्जा मिला हुआ है. 230 सीटों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में यूं तो आदिवासी समुदाय का असर पूरे राज्य में है.

जिस ओर जाएगा आदिवासी समाज, उसी की बनेगी सरकार!

हालांकि 85 सीटों पर ये निर्णायक भूमिका में हैं. 47 विधानसभा क्षेत्र तो आदिवासी समुदाय या यूं भी कहें कि एसटी के लिए आरक्षित हैं. ऐसी मान्यता है कि आदिवासी समुदाय जिसकी ओर गया, एमपी में सीएम उसी का बनेगा और यह मान्यता एक दिन में नहीं बनी है. लंबा इतिहास है और प्रामाणिक तौर पर राजनीतिक समझ रखने वाले ऐसा कहते हैं.

रानी दुर्गावती इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि राजनीति प्रतीकों के सहारे होती है. इस मामले में सभी दल बराबर हैं. रानी दुर्गावती का मतलब आज की राजनीति में यह हुआ कि वे एमपी में महत्वपूर्ण हैं तो उत्तर प्रदेश में भी उनका महत्व बना हुआ है. रानी दुर्गावती का जन्म बांदा जिले के कालिंजर किले में हुआ था. उनके पिता कीरत राय का शासन था. उनके पति दलपत शाह गोंडवाना के राजकुमार थे. दलपत शाह गोंड समुदाय से आते थे.

आजाद भारत में भी रानी दुर्गावती का महत्व, आखिर क्यों?

उनके निधन के बाद रानी दुर्गावती ने 15 वर्ष तक शासन किया. राज्य की जनता के लिए वे हमेशा उपलब्ध रहीं. उनके काम को इतिहास में आज भी सराहा जाता है. बाद में अकबर की सेना के साथ युद्ध में रानी दुर्गावती शहीद हो गईं. आजाद भारत में भी रानी का महत्व बना हुआ है और आगे भी इसकी पूरी संभावना है. आज भी रानी के नाम पर विश्वविद्यालय से लेकर अनेक प्रतीक एमपी में उपलब्ध हैं, जो अलग-अलग समय पर कांग्रेस और बीजेपी सरकारों ने तैयार किए हैं.

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और जयस भी आदिवासियों को लुभाने पर लगे

असल में एमपी की राजनीति में कांग्रेस-बीजेपी महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं. यहां चुनाव लड़ने के लिए बसपा, सपा भी पहुंचती रही हैं, लेकिन कुछ खास नहीं हासिल कर पाईं. आदिवासी समुदाय के हितों पर काम करने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और जयस भी कुछ खास प्रभाव अकेले-अकेले नहीं छोड़ पाए, जबकि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की उम्र 32 वर्ष और जयस की उम्र नौ साल है. दोनों ही दल सत्ता में भागीदारी को अभी भी संघर्ष कर रहे हैं. इस बार इनके कांग्रेस से गठबंधन की उम्मीद जताई जा रही है.

रानी दुर्गावती राजनीतिक दलों के लिए इतनी महत्वपूर्ण क्यों?

साल 2018 के चुनाव में जयस ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के सिंबल पर ही एक सीट जीतने में कामयाबी भी मिली थी. आइए, अंकगणित के हिसाब से समझते हैं कि रानी दुर्गावती राजनीतिक दलों के लिए इतनी महत्वपूर्ण क्यों हैं? असल में आदिवासी समुदाय के लिए वे देवी समान हैं. इस समाज की नजर में वे शान का प्रतीक हैं. उन्हें लोग गौरव के रूप में देखते हैं. जब भी उनका नाम राजनीतिक दलों के बड़े नेता लेते हैं तो आदिवासी समुदाय प्रफुल्लित होता है, गर्वित होता है.

  • मध्य प्रदेश में 47 विधानसभा सीटें एसटी समुदाय के लिए आरक्षित हैं.
  • यूं तो इनका प्रभाव पूरे राज्य में है, लेकिन करीब 85 सीटों पर यह समाज निर्णायक भूमिका में है.
  • पिछले चुनाव में 47 में से 30 सीटों पर कांग्रेस और 16 सीटें बीजेपी के खाते में आई थीं.
  • 2013 के चुनाव में 31 सीटें बीजेपी और 15 कांग्रेस को मिल पाई थीं.
  • साल 2008 में भाजपा 29 और कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं.
  • वर्ष 2003 में आदिवासी समुदाय के लिए 41 सीटें रिजर्व थीं, तब बीजेपी को 37, कांग्रेस को दो और गोंगपा को दो सीटें मिली थीं.
  • बीजेपी ने जोड़-तोड़कर बनाई सरकार, इसी को हवा दे रही कांग्रेस

ये सभी आंकड़े यह बताने को पर्याप्त हैं कि आदिवासी समुदाय जहां गया, सत्ता वहीं घूम गई. इसीलिए रानी दुर्गावती भी महत्वपूर्ण हैं और आदिवासी समुदाय भी. चूंकि, बीजेपी ने कांग्रेस की सरकार जोड़-तोड़कर गिराई थी, इसलिए उसका निगेटिव असर भी देखा जा रहा है. कांग्रेस उसे हवा भी खूब दे रही है. आदिवासी समुदाय के लिए बीजेपी की मौजूदा सरकार ने अनेक योजनाएं भी शुरू कर रखी हैं, लेकिन देखना रोचक होगा कि रानी दुर्गावती के ये वंशज इस बार किसे सत्ता सौंपते हैं. जोर तो दोनों ओर से बराबर लगाया जा रहा है.

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