कौशल किशोर
नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संघीय बजट में आयुष्मान भारत योजना के लिए ₹7,300 करोड़ का आवंटन किया गया है। पिछले साल इसके लिए ₹6,800 करोड़ का आवंटन किया गया था। इसमें ₹500 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है। भाजपा के घोषणापत्र में वरिष्ठ नागरिकों को आयुष्मान भारत योजना के तहत मुफ्त व गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा का वादा किया गया था। इस बजट में 70 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा के लिए पात्र घोषित किया गया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह बढ़ोतरी बुजुर्गों के स्वास्थ बीमा के लिए ही किया गया हो। वरिष्ठ नागरिकों की इस पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं भी आने लगी हैं।
कल्याणकारी राज्य ने आयुष्मान भारत योजना के तहत कमजोर नागरिकों की मदद के लिए चिकित्सा बीमा शुरु किया। मोदी की गारंटी सुनिश्चित करने के क्रम में प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना के तहत इसे खूब प्रचारित किया जाता है। पूरी दुनिया में सार्वजनिक वित्त पर पोषित सबसे बड़ा स्वास्थ्य बीमा योजना इसे माना जाता है। आबादी के निचले तबके के लगभग 55 करोड़ लाभार्थियों अथवा 12 करोड़ परिवारों को अस्पताल में भर्ती होने की दशा में द्वितीयक और तृतीयक देखभाल की सुविधा इसके तहत प्रदान किया जाता है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को यह ₹5 लाख तक का कवरेज प्रदान करती है।
बुजुर्ग लोग मतदाताओं के बीच शारीरिक रूप से सबसे कमजोर लोगों का समूह होते हैं। अच्छी खासी संख्या के बावजूद इस योजना के तहत उन्हें कवर नहीं किया गया था। आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल करने के लिए वरिष्ठ नागरिकों की ओर से बराबर मांग किया जाता है। चुनाव से पहले नीति आयोग ने बुजुर्गों के मुद्दे पर एक स्थिति पत्र प्रकाशित किया था। राजनीतिक जमात इस वर्ग के 16 करोड़ मतदाताओं की स्थिति से अनभिज्ञ नहीं है। अक्सर बीमार रहने के बावजूद भारतीय लोकतंत्र और परिवार को बेहतर बनाने में इनकी भूमिका को खारिज भी नहीं कर सकते हैं। पिछले साल बुजुर्गों के लिए स्वास्थ सेवा की बात नीति आयोग की रिपोर्ट में दर्ज किया गया था। 2024 के आर्थिक सर्वेक्षण में अन्य मुद्दों के साथ इसे भी शामिल किया गया था।
वित्तीय वर्ष 2024-2025 में ₹48,20,512 करोड़ के खर्चे का प्रविधान किया गया है। पिछले साल के वास्तविक व्यय से यह 8.5 प्रतिशत अधिक अनुमानित है। इस वर्ष कुल संग्रह ₹32.07 लाख करोड़ और शुद्ध कर से प्राप्ति ₹25.83 लाख करोड़ अनुमानित है। राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 4.9 प्रतिशत होगा। स्वास्थ्य सेवा को सकल घरेलू उत्पाद का 1.5 प्रतिशत आवंटित किया गया है। हालांकि भाजपा ने चुनाव के दौरान इसे बढ़ाकर 2.5 प्रतिशत करने की घोषणा किया था। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के लिए ₹90,958.63 करोड़ व आयुष मंत्रालय के लिए ₹3,712.49 करोड़ आवंटित किया गया है। पिछले साल इन दोनों मंत्रालयों के लिए ₹80,517.62 करोड़ और ₹3,647.50 करोड़ आवंटित किया गया था।
विकसित भारत के सपनों को पंख लगाने वाले इस बजट में नौ प्राथमिकताएँ तय है। इनमें कृषि में उत्पादकता और लचीलापन, रोजगार और कौशल, समावेशी मानव संसाधन विकास और सामाजिक न्याय, विनिर्माण और सेवाएँ, शहरी विकास, ऊर्जा सुरक्षा, बुनियादी ढाँचा, नवाचार, अनुसंधान और विकास तथा अगली पीढ़ी के सुधार जैसे अहम कार्यक्रम शामिल किए गए हैं। हालांकि स्वास्थ्य इन नौ मुख्य स्तंभों में शामिल नहीं है। लेकिन इसमें 70 वर्ष से अधिक की आयु के वरिष्ठ नागरिकों को आयुष्मान भारत योजना का लाभ देने की बात अवश्य कही गई है। लेकिन इसके लिए कोई फंड आवंटित नहीं किया गया है। दरअसल वरिष्ठ नागरिकों को आयुष्मान भारत बीमा योजना में शामिल करने के लिए ₹4,000 से ₹5,000 करोड़ के अतिरिक्त आवंटन की आवश्यकता है। केंद्रीय केबिनेट द्वारा इसका अनुमोदन नहीं किया गया है। इसलिए यह बजट में महत्वपूर्ण अंतर को दर्शाता है। इससे चुनावी घोषणा पत्र में वादा किए गए स्वास्थ सेवा योजना से बुजुर्ग लोग वंचित रह सकते हैं।
बीते फरवरी में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए अंतरिम बजट में आयुष्मान भारत के लिए 7,500 करोड़ रुपये आवंटन का प्राविधान किया गया था। इसमें 200 करोड़ की कटौती की गई है। आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) के लिए अतिरिक्त 646 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया था। वरिष्ठ नागरिकों द्वारा मेडिक्लेम सेवाओं पर 18 प्रतिशत जीएसटी को वापस लेने के लिए भी मांग किया गया था। लगभग 15 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों को रेलवे रियायत के पुनः बहाल होने की उम्मीद थी। यह एक ऐसी सुविधा है, जिसे 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान वापस ले लिया गया था। यह रियायत बुजुर्गों की जरूरी यात्रा और गतिशीलता के लिए महत्वपूर्ण थी। इसलिए रेलयात्रा रियायत की कमी और स्वास्थ्य बीमा की फंडिंग के अभाव में देश के गरीब वरिष्ठ नागरिक निराश हैं। समय रहते इस निराशा को दूर करने का उचित प्रयास सरकार को करना चाहिए।
वरिष्ठ नागरिक के समूहों ने राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) के तहत वृद्धावस्था पेंशन में केंद्रीय योगदान को संशोधित करने की मांग उठाई। गैर सरकारी संगठन भी 60 वर्ष से अधिक आयु वालों के लिए मौजूदा ₹200-500 से बढ़ाकर ₹1,000 प्रति माह और 80 वर्ष से अधिक आयु वालों के लिए ₹1,500 करने की वकालत करते आ रहे हैं। राज्य की ओर से इसमें योगदान कर इसे बढ़ाकर ₹1,500 से ₹3,000 प्रति माह किया जाना भी आवश्यक है। स्मृतिलोप के रोग (डिमेंशिया) पर राष्ट्रीय नीति भी आज वरिष्ठ नागरिकों से जुड़ा आवश्यक मुद्दा है। अल्जाइमर और संबंधित विकार सोसायटी ऑफ इंडिया सितंबर 2019 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को डिमेंशिया इंडिया रणनीति रिपोर्ट सौंपने के बाद से सरकार के साथ लगातार संपर्क में है। वित्त मंत्री बजट भाषण में इस मुद्दे पर चुप्पी बनाए रखती हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) व इन योजनाओं को लागू करने वाली अन्य एजेंसियों को ₹10,000 से ₹15,000 करोड़ की अतिरिक्त आवश्यकता है। पारंपरिक भारतीय परिवार बच्चों और बुजुर्गों की समय पर उचित देखभाल के लिए सबसे अच्छी जगह साबित होती है। दुनिया भर में इस वजह से भारतीय परिवार को सम्मान की नजर से देखा जाता है। खंडित परिवारों के युग में केंद्र सरकार को वरिष्ठ नागरिकों की बेहतर देखभाल सुनिश्चित करने हेतु पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देने और सहयोग करने की जरूरत है।