कौशल किशोर
नई दिल्ली: केरल के वायनाड में इस बरसात में 300 लोग मारे गए हैं। असम समेत पूर्वोत्तर के पहाड़ी राज्यों में भीषण बारिश और बाढ़ का प्रकोप है। इस साल राजस्थान और मध्य पूर्व के मरुस्थलीय क्षेत्र में बाढ़ की समस्या खड़ी हुई। पिछले एक महीने की बरसात में केवल हिमाचल प्रदेश में 15 पनबिजली परियोजनाओं को नुकसान पहुंचा है। बाढ़ के मौसम में यमुना चर्चा का विषय बनती है। राष्ट्रीय राजधानी में इसके लिए समर्पित नेताओं और बाबुओं के साथ नागरिक समाज की बैठकों का दौर चल रहा। साथ ही चर्चा है कि दिल्ली में बाढ़ नियंत्रण की सर्वोच्च निकाय की बैठक पिछले दो सालों से नहीं हुई। हाल में उपराज्यपाल वीके सक्सेना के दफ्तर और आतिशी तथा सौरभ भारद्वाज के नेतृत्व वाली सरकार में आरोप-प्रत्यारोप इसी बात पर चल रहा था।
दूसरी बात पर दिल्ली उच्च न्यायालय में बहस चल रही है। राज्य सरकार जल के स्रोतों की संख्या का रिकॉर्ड दुरुस्त करती है। 1,367 जल स्रोतों का आंकड़ा प्रस्तुत किया है। इसमें झील, तालाब, जोहड़, आदि शामिल हैं। राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में पहले यह आंकड़ा 1,045 था। सैटेलाइट सिस्टम से नए आंकड़े जुटाने में मदद मिली है। न्यायालय वास्तविक दशा का भी आकलन करने का निर्देश देती है। पश्चिमी दिल्ली में विकास पुरी के समीप स्थित बुधेला जोहड़ इसी चर्चा का हिस्सा रही। इसकी पड़ताल से पता चलता है कि कैसे दिल्ली सरकार की एजेंसी साहित्य कला परिषद और भारत सरकार के अधीन काम करने वाली दिल्ली विकास प्राधिकरण इसके विनाश में भूमिका निभा रही है। इसका रहस्य समझने में साइकिल का पता चलता है।
संसदीय स्थाई समिति की 27वीं रिपोर्ट लोक सभा चुनाव से ठीक पहले फरवरी में जारी किया गया था। बनासकांठा से लोक सभा सांसद रहे प्रभात भाई पटेल की अध्यक्षता में समिति गठन के बाद से ही इसका इंतजार था। सरकारी एजेंसियों ने इसमें तथ्यों को विकृत करने का काम किया है। समिति के समक्ष उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश व राजस्थान जैसे राज्यों का असहयोग साफ दिखता। दिल्ली की दोनों सरकारों ने जमीन पर कुछ ऐसा ही रुख अख्तियार किया है। सरकारी मिथ्यावाद का षडयंत्र सुरक्षा, समृद्धि व विकास सुनिश्चित करने के नाम पर तकनीक की मदद से जारी है। हिमांशु ठक्कर और भीम सिंह रावत जैसे विशेषज्ञों द्वारा इस रिपोर्ट में वर्णित झूठ और विकृतियों को उजागर किया गया है। कम से कम जल के संदर्भ में यह अस्वस्थ रवैया बर्दाश्त करने योग्य नहीं है। धरती पर जीवन की शुरुआत से ही जल शुद्ध करने और धोने वाले तत्वों में सर्व प्रमुख है। संसदीय स्थाई समिति और इससे जुड़े अन्य हितधारकों को इस मूलभूत सत्य को ध्यान में रखना चाहिए। रथ की धुरी इसी समझ पर टिकी है। यह चेतना ही अतीत और भविष्य की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि का कारक हो सकती है।
चैतन्य की इस अवस्था में दो महत्वपूर्ण बात साफ महसूस किया जा सकता है। औपनिवेशिकता की खुमारी से उपजी परेशानियों और भारतीय संस्कृतियों में सन्निहित प्रायश्चित और तपस्या की अवधारणा इसमें शामिल है। इस संदेश के साथ पानी बाबा (अरुण कुमार जी), स्वामी सानंद (प्रो. जी.डी. अग्रवाल) और अन्य विभूतियों ने जीवन समर्पित कर दिया। फिर भी यह न ही राजनीतिक जमीन की सतह को छू सका है और न ही ऊपर अपनी पहचान बना सका है। प्रो. अग्रवाल जैसे प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और पानी बाबा जैसे पत्रकार आज महाभारत के पात्रों को दोहराने के क्रम में धरती की छत पर आसन जमाए हैं। युधिष्ठिर और परीक्षक यक्ष दोनों एक साथ दुविधा में लटक रहे हैं। यह नेतृत्व की नपुंसकता को दर्शाता है। आम लोग विनाश और आपदाओं की अनंत श्रृंखला झेलने के लिए मजबूर हैं। अक्सर दोहराने के बाद भी इन्हें कृत्रिम नहीं बल्कि एक प्राकृतिक आपदा के रूप में संदर्भित करते हैं।
गंगा बेसिन के पांच राज्यों में जिलास्तरीय गंगा समितियों के माध्यम से रखवाली की बात पर यमुना अधिकार कार्यकर्ता बोल रहे हैं। गंगा से तुलना में दिल्ली से बहने वाली यमुना के साथ सौतेला व्यवहार की चर्चा हो रही है। स्थाई समिति की रिपोर्ट में जिक्र है, स्वच्छ गंगा कोष (सीजीएफ) 169 जिला स्तरीय समिति का वित्त पोषण करती है। उत्तराखंड में 13, उत्तर प्रदेश में 75, बिहार में 38, झारखंड में 4 और पश्चिम बंगाल के 9 जिले शामिल हैं। इसके साथ ही डीडीए द्वारा वजीराबाद बैराज से ओखला बैराज तक यमुना की रक्षा का जिक्र किया है। इसे कवर करने हेतु गश्ती वाहनों के साथ 3 शिफ्टों में 134 सुरक्षा गार्ड तैनात किए गए। मलबा यमुना में फेंकने से रोकने के लिए करीब सौ सीसीटीवी कैमरे भी लगाए हैं। तीन सालों में (2019 से 2021) ₹2.41 करोड़ के 928 चालान जारी किया है और ₹46.87 लाख की वसूली की है। जून में लीन सीजन चरम स्थिति आने पर दिल्ली की जल मंत्री आतिशी ने कुख्यात टैंकर माफिया से जल की रक्षा हेतु 15 किलोमीटर लंबे मुनक नहर की गश्ती का प्रबन्ध किया था।
इस बीच नौकरशाह दिल्ली को खोई हुई एक नदी वापस देने का सपना देख रहे। उन्होंने मास्टरस्ट्रोक के तौर पर नजफगढ़ नाले का नाम बदलने का काम आरंभ किया है। इस तरह दिल्ली की सरकार आज केन्द्र सरकार और नगर निगम के साथ मिलकर साहिबी नदी की महिमा और गरिमा को बहाल करने का दावा कर रही है। राजस्थान में अलवर और जयपुर के बीच से निकलकर राष्ट्रीय राजधानी में यह यमुना में मिलती है।
यमुना और साहिबी दोनों ही नदियां अपने तटों पर रहने वाले लोगों के बारे में बताती है। आज साफ कह रही कि राजनीतिक जमात ने आम लोग और आस पास की जैवविविधता के साथ कितनी चालाकी से खिलवाड़ किया है। ऐसा लगता है कि तिब्बत के पठार पर खड़ा होकर मानवता अपने ही जूते सिर पर रखकर पोज देने में लग गई हो। वहीं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की जडवा जनजाति जीवित रहने की जद्दोजहद में लगी है। उन्होंने 2004 के अंत से पहले सुनामी जैसी आपदा से अपना बचाव कर बड़ा संदेश दिया था। गंगा और यमुना की संतानें इन दो चेतनाओं के बीच मझधार में फंसी है।
तिहाड़ जेल से चलती दिल्ली सरकार पर उपराज्यपाल ऑफिस की चुटकी यमुना पर भारी पड़ रही है। दिल्ली सरकार की दो बैठकों को सर्वोच्च निकाय की बैठक बताया गया है। एक बैठक जल मंत्री और लोक निर्माण मंत्री की संयुक्त अध्यक्षता में हुई और दूसरी बैठक संभागीय आयुक्त के नेतृत्व में। दरअसल इस निकाय के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होते हैं। भला उनकी अनुपस्थिति में इसकी बैठक कैसे बुलाया जाएगा? दिल्ली इसी व्यंग्य में उलझी है।
डीएसडब्लूए (दिल्ली स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी) और राजस्व विभाग ने एक नई कवायद शुरू किया है। उन्होंने अब तक खोजे गए 1,291 जल स्रोतों के बारे में प्रगति रिपोर्ट साझा किया। इनमें केवल 656 पाए गए शेष 635 जमीन पर नहीं हैं। नक्शे व अन्य रिकॉर्ड में भले उपलब्ध हों। लगभग आधे जल स्रोत विलुप्त हो गए। बुधेला जोहड़ संकट को परिभाषित करती है। गैर सरकारी संगठन साइकिल (सेंटर फॉर यूथ, कल्चर, लॉ एंड एनवायरनमेंट) और इसके सह-संस्थापक पारस त्यागी इसे गंभीरता से उठा रहे हैं। यह सूखा चुका जोहड़ कभी 1.5 एकड़ में फैला हुआ था। डीडीए ने इसे दिल्ली सरकार की सांस्कृतिक शाखा साहित्य कला परिषद को आवंटित कर दिया था। अगले साल दिल्ली उच्च न्यायालय आम जमीन के संरक्षण का आदेश देती। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने भी 2022 में इस आशय के निर्देश दिए हैं। इसके बाद भी राज्य सरकार निर्माण कार्य जारी रखती। इस प्रकार न्यायालयों की जान बूझ कर किया जा रहा है।
यमुना के लिए सक्रिय नागरिक परिषद के दृष्टिकोण की सराहना आवश्यक है। यह समय की कसौटी पर खरी अवधारणा पर ध्यान केंद्रित करती है। हम परस्पर विवाद न करें। इस सूत्र को साधने का प्रयास है। वैदिक ऋषियों ने इसे सर्वोपरि मान कर शांति पाठ का विधान किया था। डॉक्टर, पत्रकार और यमुना की सेवा में लगे लोगों का यह प्रयास कितना कारगर होगा ये तो वक्त ही बताएगा। विवाद के बदले संवाद से उपचार को महत्व देने पर यमुना और गंगा की संतानों को समाधान मिलेगा।
लेखक “दी होली गंगा” पुस्तक के लेखक और सिटिजन काउंसिल फॉर यमुना के सह-संयोजक हैं.